गंगा : सफाई तो दूर अब तो पानी का संकट

Update:2018-06-23 13:23 IST

लखनऊ: केंद्र में 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद मोक्षदायिनी मां गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने और निर्मल बनाने के लिए जोर-शोर से मुहिम शुरू की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन भी कर दिया गया। जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्री उमा भारती के नेतृत्व में इसे लेकर तमाम कवायद की गई, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। ऐसे में उमा को चलता कर गंगा सफाई का जिम्मा नितिन गडकरी को दे दिया गया। इसके बावजूद गंगा की स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है और इस मोर्चे पर गडकरी भी फेल होते दिख रहे हैं। गंगा में पानी लगातार कम हो रहा है और प्रदूषण में कमी नहीं आ रही है। हाईकोर्ट की फटकार के बावजूद गंगा में गिरने वाले नाले अभी तक बंद नहीं हो सके हैं। गंगा से भावनात्मक रूप से जुड़े तमाम लोगों का कहना है कि हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि अब गंगा का पानी नहाने लायक भी नहीं रह गया है।

नहीं बंद हुए गंगा-यमुना में गिरने वाले नाले

कौशलेन्द्र मिश्रा

इलाहाबाद: गंगा के कछारी इलाकों में भवनों के निर्माण और आबादी बढऩे के चलते विगत डेढ़ दशक में शहर में नालों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। न्यायालय की रोक के बावजूद गंगा और यमुना में गिरने वाले नालों को बंद नहीं कराया जा सका। संत-महात्मा और गंगा प्रेमी सनातन संस्कृति की प्रतीक ‘मां गंगा’ के जल में बढ़ते प्रदूषण और उसके अस्तित्व को लेकर खासे चिंतित हैं।

पानी सूखने का कारण

दरअसल मेजा थर्मल पावर प्लांट 90 क्यूसेक पानी गंगा से ले रहा है। करछना भी 54 क्यूसेक पानी गंगा से लेने की तैयारी में है। इलाहाबाद में ही बारा प्लांट हर दिन 96 क्यूसेक पानी यमुना नदी से निकाल रहा है। इसी प्रकार ससुर खदेरी नदी को अधिकारियों ने सीवर से सम्बद्घ कर समाप्त कर दिया जिससे यमुना में हर दिन 15 क्यूसेक पानी कम हो गया। नगर निगम का जलकल विभाग करैलाबाग में यमुना से 80 एमएलडी पानी हर दिन निकाल रहा है। किशनपुर कैनाल भी फतेहपुर में 400 क्यूसेक पानी यमुना से ले रहा है। भारत सरकार की नदियों को जोडऩे वाली महत्वाकांक्षी योजना के तहत केन व बेतवा सहायक नदियों को यमुना से जोड़ देने के बाद यमुना के जलस्तर में और कमी आने का अंदेशा जताया जा रहा है। इसका असर गंगा और यमुना के मिलन स्थल संगम तट पर पानी की कमी के रूप में दिखाई देगा।

गंगा-यमुना में गिर रहे 80 नाले

शहर में १५ साल पहले कुल 57 नाले चिन्हित किए गए थे, लेकिन इस बीच कछारी और दूसरे इलाकों में बेलगाम कंस्ट्रक्शन और आबादी बढ़ जाने के कारण गंगा और यमुना में गिरने वाले नालों की संख्या अब 80 हो गई है।

बिना साफ किए छोड़ा जा रहा पानी

गंगा और यमुना नदियों में गिरने वालों नालों के पानी की सफाई के लिये छह सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगााए गए हैं, लेकिन इनका कोई फायदा नहीं हो रहा है। कारण है कि इन प्लांटों को क्षमता से अधिक मिलने वाला पानी बिना साफ किये ही गंगा में छोड़ा जा रहा है। मिसाल के तौर पर सलोरी प्लांट की कुल क्षमता 43 एमएलडी है, लेकिन इसे 75 एमएलडी पानी मिल रहा है। राजापुर एसटीपी की क्षमता 60 एमएलडी है,लेकिन इसे 90 से 105 एमएलडी पानी मिल रहा है। कोडरा एसटीपी की क्षमता 25 एमएलडी है जबकि इसे 30 एमएलडी पानी मिल रहा है। नुमायाडीह एसटीपी की क्षमता 50 एमएलडी है, लेकिन इसे 70 एमएलडी पानी मिल रहा है। दूसरी ओर पोंगहट और नैनी स्थित एसटीपी को उसकी क्षमता क्रमश:10 एमएलडी और 80 एमएलडी के विपरीत कम पानी मिल रहा है। जहां ज्यादा पानी मिल रहा वह साफ ही नहीं किया जा रहा। अब नैनी, झूंसी और फाफामऊ क्षेत्रों में तीन और एसटीपी की स्थापना होनी है जिनकी क्षमता क्रमश: 50, 20 और 10 एमएलडी होगी। सच्चाई ये है कि इलाहाबाद में सीवरेज शोधित जल को लेकर कोई योजना नहीं है।

हर घाट पर कराह रहीं गंगा

आशुतोष सिंह

वाराणसी: अस्सी घाट : कोलकाता के रहने वाले तपन अपने परिवार के साथ लगभग पंद्रह साल बाद अस्सी घाट आए तो यहां के हालात देखकर दंग रह गए। नदी तो घाट की सीढिय़ों से सत्तर फीट दूर जा चुकी है। दोनों किनारों का फासला बेहद कम रह गया है। तपन कहते हैं कि मां गंगा का इतना गुस्सा पहले कभी नहीं देखा।

क रविदास घाट : गंगा प्रदूषण का सबसे बड़ा नमूना यहां दिखाई पड़ता है। नाले में तब्दील हो चुकी अस्सी नदी यहीं पर गंगा में मिलती है। जिस जगह दोनों नदियों का मिलन होता है, उसके आसपास की जगह काली पड़ चुकी है। कारखानों से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी के कारण किसी केलिए यहां पांच मिनट तक खड़ा रह पाना मुमकिन नहीं है।

धर्म और आस्था के सबसे बड़े केंद्र वाराणसी के हर घाट पर गंगा कराह रही हैं। भक्तों को तारणे वाली मोक्षदायिनी अब बेबस और लाचार हैं। जिस नदी के किनारे एक मुकम्मल सभ्यता बसती हो, जिसके किनारे देश की एक तिहाई आबादी रहती हो,उसका रूप अब डराने वाला है। नाले और सीवर की वजह से गंगा काली पडऩे लगी है। आचमन तो दूर अब श्रद्घालु गंगा में उतरने से भी कतराने लगे हैं। हाल के सालों में नदी का जलस्तर अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है। गंगा की धाराओं के बीच बालू के उभरते टीलों ने खतरे की घंटी बजा दी है। यकीनन मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल के कार्यकाल में लोगों को गंगा के अस्तित्व को बचाने के लिए कुछ ठोस प्रयास होता नहीं दिख रहा है।

न्यूनतम स्तर पर पहुंचा जलस्तर

गंगा के जलस्तर में लगातार घटाव का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक 15 जून को जलस्तर 55.51 मीटर था तो 18 जून को 56.84 मीटर रहा। असल में मार्च के बाद से ही जलस्तर में कमी होती जा रही है। जिला प्रशासन की ओर से गंगा में पानी छोडऩे के लिए सिंचाई विभाग को पत्र भी लिखा गया, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लिहाजा हालात भयावह दिखने लगे हैं। 84 में से 50 ऐसे घाट हैं जिनका किनारा गंगा छोड़ चुकी हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले कुछ सालों में अस्सी घाट की तरह लगभग हर घाट पर गंगा की स्थिति हो जाएगी।

केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक 2015 में गंगा का न्यूनतम जलस्तर 58.67 मीटर था, जबकि 2016 में इसमें और गिरावट दर्ज हुई और गंगा का जलस्तर 58.52 मीटर रिकॉर्ड किया गया। 2017 में ये घटकर 58.27 मीटर रह गया। जबकि इस साल वाराणसी में गंगा का जलस्तर आठ सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। कम जलस्तर के कारण घाटों को छोड़ चुकी गंगा अब आचमन के लायक भी नहीं रह गई हैं। प्रवाह बंद होने के कारण अस्सी से लेकर आदिकेशव घाट तक गंगा के पानी में डिजाल्व आक्सीजन की मात्र बेहद कम हो गई है।

प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी

तमाम कवायदों के बाद भी गंगा में प्रदूषण की मात्रा को रोका नहीं जा पा रहा है। वाराणसी में नगर निगम और जल प्रदूषण विभाग की खींचतान में गंगा का बेड़ा गर्क हो रहा है। अस्सी घाट और वरुणा संगम पर सीवेज लगातार गिर रहा है। पहले गंगा में प्रवाह के कारण मल-जल घुल जाता था, लेकिन जल और प्रवाह कम होने के कारण सीवेज घुल नहीं पा रहा है। नतीजा गंगा की तलहटी में लेड, कैडमियम, क्रोमियम, निकल आदि घातक तत्व एकत्रित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में या प्रदूषण के कारण पीएच में परिवर्तन होने पर ये तत्व सिल्ट से निकलकर जल में घुल जाते हैं और उसे जहरीला बना रहे हैं। यही वजह है कि जलीय जीव लगातार दम तोड़ रहे हैं। केंद्रीय जल आयोग का साफ कहना है कि गंगा की स्थिति बहुत ही बुरी हो चुकी है।

गंगा में पानी घटने का सबसे बड़ा कारण

गंगा के सूखने का मुख्य कारण उत्तराखंड समेत अलग-अलग हिस्सों में गंगा पर बने बांध हैं। इनकी वजह से गंगा में पानी का स्तर कम हो गया है। इसी कारण गंगा की धारा टूट रही है और बीच-बीच में रेत के टीले उभर आए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वाराणसी में गंगा में गिरने वाले सीवर के ट्रीटमेंट के लिए मात्र 102 एमएलडी क्षमता वाले तीन एसटीपी काम कर रहे हैं, जबकि वाराणसी में प्रतिदिन 350 एमएलडी सीवरेज गंगा में सीधे गिर रहा है। 350 एमएलडी में 75 एमएलडी औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषित जल है, जिसे रोकना बहुत ही जरूरी है।

गंगा स्वच्छता के लिए वाराणसी के दीनापुर में 80 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट है। इसके अलावा भगवानपुर में 12 एमएलडी और डीएलडब्ल्यू में 10 एमएलडी का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है। इन तीनों प्लांट की कुल क्षमता 102 एमएलडी है यानी गंगा में गिर रहे 350 एमएलडी सीवरेज के सापेक्ष सिर्फ 102 एमएलडी सीवरेज का ही ट्रीटमेंट हो रहा है जबकि शेष 248 एमएलडी सीवर गंगा में सीधे जा रहा है।

गंगा में नालों के गिरने को लेकर दावे महज कागजी हैं। यहां सीधे 33 बड़े और कई छोटे नाले गंगा गिर रहे हैं। नारायण घाट, जलासेन घाट, त्रिलोचन घाट, शिवाला, नगवा, राजेंद्र प्रसाद घाट, मणिकर्णिका, निषाद राज घाट, पांडेघाट आदि ऐसे घाट हैं जहां से सीधे गंगा में सीवरेज को गिराया जा रहा है।

पानी की तरह बहाया जा रहा है पैसा

अफसरों का दावा है कि नमामि गंगे योजना के तहत बनारस में 10 करोड़ 32 लाख रुपए की लागत से 26 घाटों की मरम्मत,जापानी कंपनी जायका की मदद से चल रही परियोजना के तहत 50 एमएलडी एसटीपी संयंत्र रमना में स्थापित किया जा रहा है। दीनापुर में 170 करोड़ की लागत से 140 एमएलडी का एक अन्य एसटीपी निर्माण की प्रक्रिया में है। वैसे ये दोनों ही प्रोजेक्ट संप्रग -2 के कार्यकाल में शुरू हुए थे। तब दोनों प्रोजेक्ट मिनिस्ट्री फार एन्वायरमेंट एंड फारेस्ट की निगरानी में थे जिसे मोदी सरकार ने आने के बाद मिनिस्ट्री फार वाटर एंड रिसोर्स में शिफ्ट कर दिया।

नहीं बंद हुआ गंगा में नालों का गिरना

सुमित शर्मा

कानपुर: 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा को साफ करने का वादा और ऐलान किया था। बनारस में उन्होंने कहा था कि न मंै यहां आया हूं और न मुझे किसी ने भेजा है, मुझे मां गंगा ने बुलाया है। केंद्र में सरकार बनने के बाद नमामि गंगे योजना प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार हो गई, लेकिन मोदी सरकार के चार साल बीत जाने के बाद भी गंगा की स्थिति जस की तस बनी हुई है। गंगा में भीषण गंदगी होने की वजह से पानी जहरीला हो गया है।

केंद्र सरकार की योजना थी कि 2019 के चुनाव से पहले गंगा में गिरने नालों में टेपिंग की जाए। कानपुर में बिठूर से लेकर जाजमऊ तक 23 नालों का पानी गंगा में गिरता है जिसमें सीसामऊ का नाला सबसे बड़ा है। इससे प्रतिदिन लगभग 140 एमएलडी पानी सीधे गंगा में जाता है। इस नाले को टेपिंग करने में सरकार को चार साल का वक्त लग गया, लेकिन अब भी काम पूरा नहीं हुआ है।

कानपुर शहर की आबादी लगभग 46 लाख के आसपास है। इतनी आबादी को मुख्य तौर पर पानी गंगा, लोअर गंगा और नलकूपों से सप्लाई करके दिया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 430 एमएलडी पानी प्रतिदिन सप्लाई किया जाता है।

गंगा में गिर रहा टेनरी का कचरा

गंगा को सबसे ज्यादा गंदा किया है चमड़ा उद्योग ने। कानपुर शहर में लगभग 400 टेनरी हैं। इनमें से 378 टेनरी ऐसी है जो गीला काम करती है जबकि 13 टेनरी सूखा काम करती है। फिलवक्त 264 टेनरी चल रही हैं जिनसे निकलने वाला पानी लगभग 10 एमएलडी सीधे गंगा में जाता है। इस गंदे पानी को गंगा में जाने से रोकने के लिए प्रदूषण बोर्ड व जिला प्रशासन ने दबाव बनाया तो टेनरी संचालकों ने चोर रास्ते होते हुए टेनरी से निकलने वाले पानी को गंगा में गिराना शुरू कर दिया।

भारतीय वन्यजीव संस्थान की टीम इन दिनों गंगा का निरीक्षण कर रही है। टीम ने दावा किया था कि फरुर्खाबाद से बिठूर के पास डाल्फिन मिलने के संकेत से यह साबित हो रहा है कि गंगा का पानी स्वच्छ हुआ है तथा गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी है। टीम के इस दावे के बाद ही कन्नौज के रानी घाट और उन्नाव के गंगाघाट में लाखों मछलियों की मौत ने पानी साफ होने की बात की हवा निकाल दी।

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