वाराणसी: गंगा के जलस्तर में कमी से बिगड़े हालात

Update:2018-06-30 13:31 IST

आशुतोष सिंह

वाराणसी: आसमान से शोले बरस रहे हैं। धरती बूंद-बूंद को प्यासी है। बारिश के इंतजार में लोग तड़प रहे हैं। किसान परेशान हैं तो आम इंसान के लिए पेयजल का संकट खड़ा हो गया है। मौसम के इस रूप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के लोगों को हैरान कर दिया है। हर ओर पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। आलम ये है कि वाराणसी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पूरे शहर में सप्लाई के पानी की मुसीबत खड़ी हो गई है। गंगा के गिरते जलस्तर से हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। जिस महकमे के कंधों पर पीने का साफ पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी थी अब उसके भी हाथ-पांव फूल रहे हैं। पूरे शहर में वॉटर अलर्ट घोषित कर दिया गया है। शहर के अधिकांश हिस्सों में पानी की सप्लाई पर प्रभाव पड़ा है। दो दर्जन ऐसे मुहल्ले हैं जहां सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए लोग टैंकों का इंतजार करते दिख जाते हैं।

शहर में वॉटर सप्लाई खराब होने की सबसे बड़ी वजह है गंगा के जलस्तर में कमी। जानकार बताते हैं कि जब कभी गंगा का जलस्तर दो सौ फीट से कम होता है तो पेयजल का संकट खड़ा हो जाता है। मौजूदा वक्त में जलस्तर 187 फीट तक पहुंच गया है। पिछले साल जून में पानी का स्तर 189 फीट था, इसके चलते शहर में पानी को लेकर संकट छा गया था। गिरते जलस्तर से ट्यूबवेलों ने पानी देना कम कर दिया है, वहीं गंगा में पानी की कमी के चलते जलकल विभाग के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। विभाग की ओर से वॉटर अलर्ट जारी कर दिया गया है। इसके मुताबिक गंगा में जलस्तर अत्यधिक कम होने के कारण भदैनी वॉटर पंपिंग स्टेशन से पंपिंग कम कर दी गई है. यहां पर दो कुंओं में पांच पंप लगे हैं। इनमें से एक बड़े कुएं में लगे एक पंप से आपूर्ति होती है, लेकिन गिरते जलस्तर के कारण सप्लाई रोक दी गई है। विभाग का कहना है कि 187 फीट पर पानी होने के कारण नीचे से गंदगी आ रही है जो अब परेशानी का सबब बन रही है, इसके चलते पेयजल आपूर्ति किया जाना संभव नहीं है।

पानी की बर्बादी रोकने की कोशिश

अगर शहर में पेयजल का संकट खड़ा हुआ है तो इसके लिए कहीं न कहीं यहां का सरकारी महकमा और लोग जिम्मेदार हैं। आंकड़ों के मुताबिक लापरवाही के कारण लगभग 30 फीसद से अधिक पानी आपूर्ति के दौरान ही बर्बाद हो जाता है। शहर के लोगों के लिए रोजाना जितने पानी की आपूर्ति की जाती है उसमें 70 फीसद से कम पानी लोगों के घरों तक पहुंच पाता है। इसके लिए जलकल और जल निगम के साथ ही आम आदमी भी जिम्मेदार है। अब अगर पानी की बर्बादी पर बात करें तो सबसे अधिक कारण पुरानी पाइपों की वजह से पानी बर्बाद होता है। शहर में जलकल विभाग की ओर से बिछाई गई पाइप लाइन करीब सौ साल पुरानी हो गई है।

जरुरत पडऩे पर इन पाइपों की मरम्मत की जाती है। यही नहीं जेएनयूआरएम के तहत जो नई पेयजल योजना है वह भी अभी धरातल पर नहीं आ सकी है। जलकल विभाग के महाप्रबंधक बीके सिंह कहते हैं कि पेयजल आपूर्ति संकट को देखते हुए सभी अभियंताओं और संबंधित कर्मचारियों को क्षेत्र में भ्रमण कर लीकेज देखने और उसे तत्काल दुरुस्त करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही सावर्जनिक स्थानों पर पानी गिरने पर उसे बंद करने को कहा गया है जिससे अधिक से अधिक पानी बचाया जा सके। जिन क्षेत्रों में पानी का संकट है, वहां टैंकर से पानी भेजा जा रहा है।

इन स्थानों पर है पेयजल संकट

बारिश न होने और गंगा के जलस्तर में रिकॉर्ड कमी के कारण शहर के अधिकांश हिस्सों में पानी की सप्लाई पर असर पड़ा है। लोग सुबह से लेकर शाम तक हैंडपंप या फिर टैंकर के पास नंबर लगाकर खड़े रहते हैं। चिलचिलाती धूप और ऊपर से पानी की कमी ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। शहर के कज्जाकपुरा, लल्लापुरा, सरैया, पीलीकोठी, रेवड़ीतालाब, दौलतपुर, बगवानाला, रानीपुर, माधवपुर, शिवपुर सहित कई ऐसे मोहल्ले हैं जहां पानी का संकट बना हुआ है। इन इलाकों में पानी की सप्लाई नाम मात्र की हो रही है। इसके अलावा कई ऐसे मोहल्ले हैं जहां दूषित जल की आपूर्ति हो रही है। क्षेत्रीय लोगों ने इस बाबत कई बार जलकल विभाग के कंट्रोल रूम में शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

खेतों में सूखे के हालात

बारिश न होने से किसान भी परेशान हैं। जैसे-तैसे धान की बुवाई तो कर ली, लेकिन बारिश न होने से सूखे के आसार दिख रहे हैं। अगर सूखे का यही आलम रहा तो धान की नर्सरी तैयार होना मुश्किल है। आलम ये है कि धान का कटोरा कहे जाने वाले चंदौली जिले में भी किसान पानी की कमी के कारण परेशान हैं। अधिकांश नहरों से पानी गायब है। किसान ट्यूबवेल से पानी दे रहा है, लेकिन डीजल की आसमान छूती कीमतों से यह भी कर पाना मुश्किल है। यही नहीं गर्मियों के सीजन में लगी सब्जियां भी अब पानी की कमी के कारण सूख रही हैं। किसानों की मानें तो अगर तीन या चार दिन में बारिश नहीं हुई तो हालात बिगड़ सकते हैं। पानी की कमी के कारण सब्जियां खेतों में ही सूख जा रही हैं, लिहाजा अब उनके रेट भी आसमान छूने लगे हैं।

नगर में पेयजल प्रबंधन

  • 335 एमएलडी (33 करोड़ 50 लाख लीटर) पानी का रोजाना उत्पादन
  • 1500 किमी लंबी पाइपलाइन
  • नदी के स्रोत से 133 एमएलडी
  • नलकूप स्रोत से 202 एमएलडी
  • पानी उत्पादन के लिए 142 नलकूप
  • मिनी नलकूप 80

मेरठ में भी कम नहीं जल संकट

सुशील कुमार

मेरठ: प्राचीन काल से ही गंगा-यमुना का दोआब स्वच्छ पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता है। गंगा के किनारे बसा मेरठ जिला सिंचाई के लिए नहरों की पर्याप्त संख्या के कारण जल सम्पन्न माना जाता था, लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई। कृषि भूमि पर ज्यादा अन्न पैदा करने की होड़ तथा ज्यादा पानी की आवश्यक्ता वाली गन्ने की खेती का मोह भी बढ़ता चला गया। इसके लिए नहरों के अलावा भारी संख्या में नलकूपों का सहारा लेना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप इस समय मेरठ जिले में करीब 46 हजार नलकूप मौजूद हैं। इसका सीधा असर यहां के भूजल स्तर पर पड़ता दिखाई दे रहा है और पानी के अत्यधिक दोहन के कारण जलस्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है। जलस्तर गिरने से न केवल नलकूपों की गहराई समय-समय पर बढ़ानी पड़ रही है, बल्कि भूमि की नमी और उपजाऊपन में भी कमी आ रही है। नतीजन फसलों को ज्यादा पानी देना पड़ रहा है यानी पानी का अधिक दोहन हो रहा है।

प्रदूषित जल भी बड़ी समस्या

समस्या सिर्फ गिरते जलस्तर की ही नहीं है, ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का प्रदूषित होना भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। फसलों में कीटनाशकों और रसायनों का बढ़ता उपयोग इसका एक कारण है। इसका दुष्प्रभाव मिट्टी की उत्पादकता में कमी के रूप में दिखाई दे रहा है। इसके कारण भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। पानी में नाइट्रेट और फ्लोराइड जैसे तत्व भारी मात्रा में मौजूद हैं। इसका समाधान ढूंढने के बजाय सरकार ने पानी का दोहन करने के लिए इंडिया मार्का 2 हैंडपंप लगवा दिए। कभी गांव के लोग कुओं के पानी पर ही निर्भर रहा करते थे, लेकिन आज स्थिति यह है कि मेरठ जिले में 1541 कुएं सूख गए हैं या फिर इन्हें कूड़ादान बना दिया गया है। प्राकृतिक जलस्रोतों की उपेक्षा के परिणामस्वरूप भूमिगत जलस्तर निरंतर नीचे गिरता चला जा रहा है जिसके कारण इस जिले के लोगों के सामने पानी का भयावह संकट खड़ा हो गया है। मेरठ जिले के खरखौदा, रजपुरा, मेरठ और सरूरपुर ब्लॉक के कुछ क्षेत्रों में तो नलकूपों ने पानी देना ही बंद कर दिया है। क्या यह समस्या मेरठ वालों को चौंकाने के लिए काफी नहीं? या फिर किसी और विपत्ति का इंतजार है।

बारिश में आई कमी

पिछले 10 साल की औसत वर्षा पर नजर डालें तो शुरू के 5 साल में वर्षा का औसत 854.44 मिमी था, जबकि बाद के 5 साल का औसत केवल 628.16 मिमी है अर्थात बारिश में भयंकर कमी आई है। मेरठ जिले में 1118 तालाब विलुप्त हो गए हैं, जबकि बचे 1944 तालाबों में से 1229 में ही पानी है। 2086 कुओं में से मात्र 545 में ही पानी बचा है, वह भी अत्यंत प्रदूषित है। नहरों के पानी में कमी आई है और भूमिगत जलस्तर तेजी से गिर रहा है। जिले में जहां एक ओर पानी के विभिन्न स्रोतों में निरंतर गिरावट देखी जा रही है, वहीं दूसरी ओर पानी की अत्यधिक आवश्यकता वाली फसलों और नलकूपों के फैलते जाल के कारण पानी का दोहन अप्रत्याशित दर से बढ़ रहा है। मेरठ में 46 हजार नलकूप और 11 हजार हैंडपंप इसी दोहन की कहानी कह रहे हैं।

सब्जियां और महंगी होने के आसार

पिछले महीने बारिश के बाद डीजल के दाम के बढ़ रहे हैं और इससे सब्जियों के दाम में भी इजाफा हुआ है। हालत यह है कि सब्जियों के थोक भाव में 30 से 35 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है और अभी इस वृद्धि के और बढऩे की संभावना है।

सब्जियों के दाम गत माह व इस माह प्रति किलो

  • भिंडी 20 से 25 -----30 से 35
  • आलू 10 से 15------ 20 से 25
  • करेला 20 ------25 से 30
  • लौकी 15-------- 30
  • तोरी 15------ 35 से 40
  • बीन्स 60 से 70------ 115 से 120
  • प्याज 10 से 12------ 20 से 25
  • कटहल 20 ------25 से 30

डीजल के दाम बढऩे से सब्जी महंगी

सब्जी महंगी होने के बारे में जानकार लोगों का कहना है कि मेरठ नवीन सब्जी मंडी में अधिकतर सभी सब्जियां आजादपुर सब्जी मंडी से आती हैं। बाकी सप्लाई हिमाचल प्रदेश और नासिक समेत पंजाब, सिलीगुड़ी, हरियाणा समेत कोलकाता तक से होती है। ऐसे में ट्रकों से इन सब्जियों का वितरण होता है, लेकिन डीजल के दाम बढऩे के कारण ट्रक संचालकों ने अपना किराया भी बढ़ाना शुरू कर दिया है। दूर से आने वाली सब्जियों के लिए ट्रांसपोर्टर किमी के हिसाब से किराये में वृद्धि करता है और आढ़ती अपने नुकसान की भरपाई के लिए दाम बढ़ाकर फुटकर व्यापारियों को देता है।

सब्जी मंडी एसोसिएशन अध्यक्ष अशोक प्रधान कहते हैं कि डीजल के दाम से ट्रांसपोर्टर का नुकसान अधिक हो रहा है। दूर से आने के कारण खर्चा बढ़ गया है, लेकिन अभी इतना अंतर नही आया है। यदि डीजल के दाम कम ना हुए तो जरुर किराये के कारण सब्जियों के दाम में अधिक इजाफा होगा। आढ़ती रईस अहमद कहते हैं कि तीन दिन पहले तक आलू 780 रुपए प्रति कट्टा मिल रहा था, लेकिन आज 800 रुपए दाम पहुंच गया है। ऐसे में कम से कम आलू के दाम में फुटकर में पांच रुपए तक का इजाफा हुआ है। आढ़ती वेद प्रकाश कहते हैं कि कुछ सब्जियों के दाम में अधिक इजाफा हो रहा है। हर रोज मंडी में एक से दो रुपया बढ़ा हुआ मिलता है। इनमें करेला, कटहल, भिंडी, आलू आदि शामिल हैं। सब्जी व्यापारी रामानन्द कहते हैं,सर्दियों की तुलना में हालांकि अभी सब्जियों के दाम काफी कम हैं, लेकिन अब डीजल के दाम में इजाफे का असर सब्जियों पर दिखने लगा है।

फिलहाल सूखे के हालात नहीं

मेरठ के डीएम अनिल ढींगरा की मानें तो मेरठ में सूखे के हालात फिलहाल कहीं नही हैं। फिर भी उन्होंने संबंधित विभागीय अफसरों को सूखे से निपटने के लिए तैयार रहने के निर्देश दे दिए हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को पानी की कमी नहीं हो, इसके लिए सिंचाई विभाग के अफसरों को निर्देश दिए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि नहरें पानी की कमी के कारण नही सूखें, इसके लिए भी विभागीय अफसरों को लगातार निर्देश दिए जा रहे हैं। डीएम की मानें तो फिलहाल उनके पास नहर के सूखे होने की शिकायत कहीं से नहीं आई हैं।

मेरठ में धान की खेती ना के बराबर

मेरठ के जिला कृषि अधिकारी प्रमोद सिरोही के अनुसार मेरठ में धान की खेती न के बराबर है। उनके मुताबिक मेरठ में अधिकांश किसान गन्ने की खेती करते हैं। धान की पैदावार यहां मात्र तीन हजार हेक्टेयर तक सिमट चुकी है।

गोरखपुर: मानसून में देरी से धान की बुआई पिछड़ी

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: मानसून की दस्तक में देरी से गोरखपुर और महराजगंज में धान की बुआई पिछड़ गई है। गोरखपुर में डेढ़ लाख हेक्टेयर धान बुआई के सापेक्ष बमुश्किल 10 फीसदी ही बुआई हो सकी है। महराजगंज में गोरखपुर की तुलना में स्थिति कुछ बेहतर है जहां दो लाख हेक्टेयर धान बुआई के लक्ष्य के सापेक्ष 30 फीसदी तक बुआई हो चुकी है। महराजगंज में बेहतर आकड़ों के पीछे नहरों का संजाल है। यहां पिछले 8 से 10 जून तक नहरों में पानी आ गया था।

गोरखपुर की खेती नलकूपों और बारिश के सहारे ही है। यहां पिपराइच और खजनी ब्लाक में ही नहरें हैं जहां अभी तक पानी नहीं पहुंच सका है। गोरखपुर में धान का बेहन 25 मई से 15 जून के बीच डाली जाती है जिसके बाद 20 जून से 15 जुलाई तक धान की रोपाई होती है।

गोरखपुर में 15 जून तक मानसून की दस्तक हो जाती है। फिलहाल जून में मानसून का आंकड़ा बेहद निराशाजनक है। गर्मी से जूझ रहे गोरखपुर में इस बार जून में सामान्य से 61 फीसदी कम बारिश हुई है। इसका औसत आंकड़ा 115.3 मिलीमीटर का है जबकि इस बार अब तक महज 45.5 मिलीमीटर बारिश ही हो सकी है। अब सारी उम्मीद मानसूनी बारिश पर टिकी है, जिसके 28-29 जून तक आने उम्मीद मौसम विशेषज्ञ जता रहे हैं।

तेजी से गिर रहा भूगभी जल का स्तर

गर्मी की तपिश के बीच शहर के कई इलाकों में भूगर्भ जलस्तर तेजी से गिरा है। सबसे तेजी से भूगर्भ जल बशरातपुर से मेडिकल कॉलेज के बीच में गिर रहा है। जलस्तर गिरने से जलकल के ट्यूबवेल की पानी का फ्लो काफी धीमा हो गया है तो हैंडपंप पानी छोड़ रहे हैं। पानी के संकट से जूझ रहे हजारों लोग 60 से 80 हजार रुपये तक खर्च कर रिबोरिंग करा रहे हैं।

भूगर्भ जल विभाग शहर के 14 स्थानों पर भूगर्भ जल के स्तर की निगरानी करता है। मई-जून और अक्तूबर महीने में इन स्थानों पर भूगर्भ जल की स्थिति देखी जाती है। विभाग के आकड़े बता रहे हैं कि चरगावां ब्लाक परिसर और झुंगिया स्थित प्राथमिक विद्यालय में भूगर्भ जल गिरा है, जबकि अन्य स्थानों पर पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा सुधार हुआ है। चरगांवा ब्लाक परिसर में बने भूगर्भ जल विभाग के प्वांइट पर पिछले वर्ष मई महीने में वाटर लेवल 4.90 मीटर था, जबकि इस साल मई महीने में यह 5.50 मीटर पर पहुंच चुका है। इसी तरह झुंगिया स्थित प्राथमिक विद्यालय में पिछले वर्ष जलस्तर 3.73 मीटर था, जो बढक़र इस वर्ष 4.14 मीटर पहुंच गया है। भूगर्भ जल विभाग के जिम्मेदार असुरन से लेकर मेडिकल कॉलेज तक बड़ी संख्या में बन रही मल्टी स्टोरी बिल्डिंग को इसकी वजह मान रहे हैं। दरअसल मल्टी स्टोरी बिल्डिंग का बेसमेंट तैयार करने के लिए भूगर्भ जल की निकासी होती है। प्रभावी अंकुश नहीं होने से बिल्डर भूगर्भ जल को नालियों में बहा देते हैं। इसके साथ ही तेजी से पनप रहा आरओ प्लांट का करोबार भी भूगर्भ जल को बर्बाद कर रहा है।

पानी को साफ करने की प्रक्रिया में करोड़ों लीटर पानी आरओ प्लांट वाले बर्बाद कर रहे हैं। भू-गर्भ जल विभाग ने शहर के 14 स्थानों पर 4 इंच तक की बोरिंग कराई है। करीब 150 फिट तक की बोरिंग में मई और अक्तूबर महीने में जलस्तर का माप होता है। हांसूपुर का जलस्तर (10.53 मीटर) सबसे नीचे हैं। इसके साथ ही विभाग मंडलायुक्त कार्यालय, विवि प्रशासनिक भवन, नौसढ़, मंडी समिति, जटेपुर, राजकीय पॉलीटेक्निक, महिला पॉलीटेक्निक, चरगांवा ब्लाक, मोहरीपुर, झुंगिया, तारामंडल आदि स्थानों का भूगर्भ जल का मापन करता है। राप्तीनगर, मेडिकल कॉलेज और बिछिया जंगल तुलसी राम क्षेत्र में दशक भर पहले बमुश्किल 30 फीट पर पानी आ जाता था, लेकिन पिछले एक पखवाड़े से लोगों को काफी दिक्कत हो रही है। जिन लोगों ने 100 से 120 फिट पर बोरिंग कराई थी, उन्हें 240 से 260 फिट पर एक बार फिर बोरिंग करानी पड़ रही है। जलकल के महाप्रबंधक प्रमोद कुमार गुप्ता का कहना है कि जलकल के ट्यूबवेल 400 से 550 फीट की गहराई पर रिबोर होते हैं, ऐसे में अभी दिक्कत नहीं है।

ग्रामीण इलाकों में भी तेजी से गिर रहा जलस्तर

गोरखपुर और आसपास के कस्बाई इलाकों में नदियों का संजाल है, लेकिन सभी तहसीलों में पानी का जलस्तर तेजी से गिर रहा है। पीपीगंज, मानीराम आदि इलाकों में पिछले वर्ष बाढ़ आई थी लेकिन यहां का जलस्तर एक मीटर तक नीचे जा चुका है। सहजनवां तहसील में सर्वाधिक जलस्तर गिरा है। भूगर्भ जल विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक चरगांवा, भटहट, पिपराइच एवं बड़हलगंज ब्लाक में भूगर्भ जलस्तर पांच मीटर है। बाकी ब्लाकों में पानी का स्तर 0.09 मीटर से 1.96 मीटर के बीच नीचे आया है। यह खतरे का संकेत है।

सब्जियों के दाम में दोगुना से अधिक की वृद्धि

मानसून की बेरुखी और बाहर से आने वाली सब्जियों की आवक कम होने से दाम में पिछले 20 दिनों मेंं दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। बमुश्किल 10 दिन पहले थोक मंडी में 8 से 10 रुपये प्रति किलो बिकने वाला नेनुआ 20 रुपये प्रति किलो पहुंच चुका है। परवल 20 से 40 रुपये तो टमाटर भी 20 से 35 रुपये प्रति किलो पहुंच चुका है। भिंडी पिछले 20 दिनों में 15 से 30 रुपये प्रति किलो पर पहुंच चुकी है। बोड़ा 20 रुपये से उछलकर 50 रुपये तक बिक रहा है। हरी धनिया 50 रुपये से 120-150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गयी है। हरा मिर्चा भी 15 से 20 रुपये से उछलकर 30 से 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। महेवा मंडी में फुटकर सब्जी विक्रेता संघ के अध्यक्ष विनोद दूबे का कहना है कि तीन वजहों से सब्जियों के दाम में उछाल आया है। पहला, लगन शुरू होने से मांग बढ़ी है। दूसरा,बाहर से आने वाली सब्जियों की आवक कम है। तीसरा, बारिश नहीं होने से लोकल सब्जियां भी मंडी तक नहीं पहुंच रही हैं।

इलाहाबाद में नलकूप दे गए जवाब

कौशलेन्द्र मिश्रा

इलाहाबाद: शहर हो या देहात, हर जगह पानी का संकट है। मेजा के पहाड़ी इलाके के दर्जनों गांवों में पानी जमीन की सतह पर टिक ही नहीं रहा। खनन जारी रहने से पानी दरारों में घुस जाता है। कोहड़ार, भटौती, सींकी कला, राजापुर मांडा और बंगलिया की पहाड़ी समेत करीब तीन दर्जन गांवों का यही हाल है। दक्षिणांचल के गांवों में टैंकर से पानी की सप्लाई हो रही है। दूसरी ओर शहरी इलाकों में भूजल स्तर नीचे चले जाने से पानी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। भीषण गर्मी में पानी की किल्लत से हाहाकार मचा है। पानी के लिये लोग प्रमुख सचिव कार्यालय तक अपनी गुहार लगा रहे हैं। जिम्मेदार अधिकारियों के मुताबिक जलापूर्ति के विकल्प खोजे जा रहे हैं।

दो गुना तक बढ़ गए हरी सब्जियों के दाम

बारिश न होने और भीषण गर्मी के कारण पैदावार पर असर पड़ा है। मुंडेरा की थोक मंडी में हरी सब्जियों की आवक में करीब 20 फीसदी घट गयी है। सप्लाई का सीधा असर कीमतों पर पड़ रहा है। पंद्रह दिन में ही हरी सब्जियों के दाम डेढ़-दो गुना तक बढ़ गए हैं। थोक कारोबारी बताते हैं कि मौजूदा समय में आलू, प्याज, टमाटर, बैगन, भिंडी, चौरा, परवल, कुंदरू, और करेला समेत सभी सब्जियां दूसरे प्रांतों या जिलों से ही आ रही हैं। अगर शहर में सब्जियां लदे वाहन नोइंट्री का शिकार होते रहे तो आने वाले दिनों में हरी सब्जियों के दाम और भी चढ़ जायेंगे।

बारिश का टोटा

जनपद में सूखे की स्थिति आ गई है। आमतौर पर जहां 18 जून तक पूर्वी मानसून दस्तक देता रहा है, लेकिन अभी तक वह अधिक सक्रिय नहीं दिखाई पड़ रहा है। पश्चिमी इलाकों से लगातार शुष्क हवाएं चल रही हैं। मौसम विज्ञानी बताते हैं कि बारिश की अभी ज्यादा उम्मीद नहीं है।

धान की खेती को आसमान ताक रहे किसान

जनपद के गंगापार और यमुनापार क्षेत्र में धान की खेती पिछडऩे के आसार हंै। आमतौर पर जून के पहले सप्ताह से तैयार होने वाली धान की नर्सरी के काम में अभी तक तेजी नहीं आयी है। जबकि नर्सरी तैयार होने में 20 से 25 दिन का वक्त लगता है। नलकूपों के सहारे तैयार की जाने वाली नर्सरी का नतीजा बेहतर नहीं रहा है। प्रचंड गरमी के कारण नर्सरी में पडऩे वाला पानी गरम हो रहा है जिससे पेड़ झुलस जा रहे है। ऐसे में किसान नर्सरी तैयार करने के लिए बारिश की आस में आसमान ताक रहे हैं। मेजा के किसान अरुण कुमार ‘राजा’ कहते हैं कि क्षेत्र में 25 जून के आसपास धान की रोपाई शुरू हो जाती थी। लेकिन इस साल सब पिछड़ गया है। क्षेत्र में अभी पांच-सात फीसदी भी धान की रोपाई नहीं हो पायी है।

दूसरी ओर नहरों में पानी का टोटा बना हुआ है। यमुनापार के मेजा इलाके की नहरों में पानी न आने से राजबहा समेत दर्जनों माइनर सूखे पड़े हैं।

Tags:    

Similar News