Ghosi Loksabha Chunav 2024: घोसी लोकसभा सीट पर सुभासपा प्रमुख की साख लगी दांव पर, सपा दे रही कड़ी टक्कर

Ghosi Loksabha Chunav 2024 Analysis: अरविंद राजभर अपने पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के साथ मोदी और योगी सरकार द्वारा चलाए जा रहे जनहित योजनाओं के बल पर लोगों को रिझाने का काम कर रहे हैं।

Written By :  Sandip Kumar Mishra
Update:2024-05-29 20:04 IST

Ghosi Loksabha Chunav 2024 Analysis

Ghosi Loksabha Chunav 2024 Analysis: मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट उन बिरले सीटों में शामिल है, जिसने सियासत में 'सबका साथ' के नारे को वास्तव में जमीन पर उतारा है। कभी वामपंथ का गढ़ रहा घोसी लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने भी यहां झंडा फहराया ।निर्दल ने भी जीत का ताना-बना बुना। बसपा को भी घोसी का साथ मिला । तो समाजवाद से लेकर दक्षिणपंथ तक को भी नुमाइंदगी मिली। सपा-भाजपा को एक बार ही सही लेकिन जीत उनको भी मिली। हालांकि, पिछले डेढ़ दशक से घोसी की राजनीति के मुद्दे भी बदले हैं और कलेवर भी। कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे कल्पनाथ राय से अपनी पहचान जोड़ने वाले घोसी लोकसभा सीट के मऊ जिले की सरकारी वेबसाइट बताती है कि तुर्की में मऊ शब्द का अर्थ है पड़ाव या छावनी। घोसी भी सपा और भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए इस बार सियासी ‘पड़ाव’ या छावनी ही है। क्योंकि दोनों ही उम्मीदवार बाहरी हैं।

यहां से एनडीए की सहयोगी दल सुभासपा प्रमुख व योगी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर चुनावी मैदान में हैं। उनको चुनौती दे रहे हैं सपा के राष्ट्रीय सचिव राजीव राय। वहीं बसपा ने पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान को उम्मीदवार बनाया है। यहां की सियासी गणित पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए मुफीद है। लेकिन जंग केमेस्ट्री ठीक करने की है। खासकर, ओम प्रकाश राजभर के पुराने बोल उनके बेटे की राह में ही कांटे बो रहे हैं। इसके अलावा विकास के साथ 'मातम' यानी मुख्तार अंसारी की मौत भी मुद्दा है। ओम प्रकाश राजभर के लिए घोसी सीट साख और अस्तित्व की लड़ाई है। पिछले साल हुए घोसी विधानसभा सीट के उपचुनाव में ओम प्रकाश राजभर ने सपा से फिर भाजपा में आए दारा सिंह चौहान के लिए पूरी ताकत लगाई थी। लेकिन, दारा को हार का मुंह देखना पड़ा और सपा के सुधाकर सिंह जीत गए थे।

सुभासपा उम्मीदवार अरविंद राजभर का ये मुद्दे नहीं छोड़ रहे पीछा

सुभासपा के उम्मीदवार अरविंद राजभर 2017 में एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर बलिया ज़िले की बांसडीह विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे। हालांकि, अरविंद चुनाव नहीं जीत सके। उसके बाद अरविंद राजभर को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य मंत्री का दर्जा दिया । लेकिन कुछ ही दिनों बाद सुभासपा की राहें एनडीए गठबंधन से जुदा हो गईं। 2022 के विधानसभा चुनाव में अरविंद राजभर वाराणसी ज़िले की शिवपुर विधानसभा सीट से सपा के गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार थे। हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अरविंद जीत नही दर्ज कर सके। एक बार फिर अरविंद राजभर लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। उनको अपने पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के साथ मोदी और योगी सरकार द्वारा चलाए जा रहे जनहित योजनाओं के बल पर लोगों को रिझाने का काम कर रहे हैं। लेकिन घोसी के मूलमुद्दे व उनके पिता के पुराने बोल उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। इसके अलावा बेरोजगारी, महंगाई, उद्योग और पेपर लीक को लेकर लोगों में आक्रोश है। भाजपा की ओर से पीएम मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार कई मंत्रियों ने जनसभा करके एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने की अपील की है। 

सपा उम्मीदवार राजीव राय की क्षेत्र में मजबूत पकड़ पर विश्वास

सपा उम्मीदवार राजीव राय को 2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश टीम का हिस्सा माना जाता था। उनके के बारे में कहा जाता है कि लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा की तरफ से ऑफर था । लेकिन राजीव राय नहीं गए। 2014 के लोकसभा चुनाव से एक साल पहले राजीव राय की घोसी में इंट्री हुई थी। लेकिन वह खासा कमाल नहीं दिखा पाए। मोदी लहर में चुनाव हार गए। जबकि स्थानीय लोगों के अनुसार लोकसभा चुनाव से पहले राजीव राय ने अखिलेश यादव से अपने व्यक्तिगत संबंधो के चलते मऊ शहर में बिजली से संबंधित एवं अन्य कई काम कराए थे। राजीव राय 2019 के लोकसभा चुनाव में भी घोसी सीट से दावेदार थे। लेकिन सपा बसपा गठबंधन में यह सीट बसपा के कोटे में चली गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से राजीव राय इण्डिया गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। बता दें कि राजीव राय पिछले एक दशक से घोसी में सक्रिय हैं। उनको यादव के अलावा अन्य पिछड़े और दलित वर्ग के मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबन्द करने की बड़ी चुनौती है। घोसी लोकसभा क्षेत्र में बुनकरों की समस्याओं का समाधान और मऊ के विकास के बड़े मुद्दों के बल पर रिझाने का काम कर रहे हैं। सपा की ओर से अखिलेश यादव, शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव चुनावी जनसभा कर चुके हैं। 

बसपा उम्मीदवार बालकृष्ण चौहान 1999 में बने थे सांसद


बसपा उम्मीदवार बालकृष्ण चौहान 1999 में पहली बार घोसी से लोकसभा का चुनाव जीते थे। उन्होंने पूर्व मंत्री और घोसी लोकसभा सीट से लगातार चार बार सांसद रहे कल्पनाथ राय के पुत्र सिद्धार्थ राय को हराकर जीत दर्ज की थी। हालांकि, 2004 के लोकसभा चुनाव में बालकृष्ण चौहान बसपा के उम्मीदवार जरूर थे । लेकिन चुनाव नहीं जीत पाए। 2012 में बसपा ने बालकृष्ण चौहान को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया ।उसके बाद वे सपा में चले गए। लोकसभा चुनाव 2014 में सपा ने पहले बालकृष्ण चौहान को अपना उम्मीदवार घोषित किया । लेकिन बाद में उनकी जगह राजीव राय को उतार दिया था। 2018 में बालकृष्ण चौहान ने कांग्रेस का हाथ थामा और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस के उम्मीदवा के तौर पर घोसी से चुनावी मैदान में रहे। हालांकि, 2019 में भी बालकृष्ण को हार का सामना करना पड़ा था। यहां बसपा सुप्रीमो मायावती ने जनसभा कर मतदाताओं को पार्टी के पक्ष में मतदान करने की अपील की है। 

घोसी लोकसभा सीट का जातीय समीकरण

पूर्वांचल की एकाध सीटों को छोड़ दिया जाए तो यहां पर जातीय गणित ही चुनावी केमिस्ट्री में सधती है। घोसी की सियासत के शुरुआती चार दशकों का ट्रेंड अलग रहा है। लगभग 60 से 70 हजार आबादी वाली भूमिहार बिरादरी से यहां 12 सांसद चुने गए हैं। इस सीट पर लगभग 4 लाख दलित और ढाई से तीन लाख मुस्लिम मतदाता हैं। डेढ़ लाख से अधिक राजभर और लगभग इतने ही यादव हैं। डेढ़ लाख से अधिक लोनिया चौहान तो राजपूत, ब्राह्मण व वैश्य की सम्मिलित आबादी दो लाख से अधिक है। पिछले दो दशक से नतीजे जातियों की गोलबंदी पर ही तय हो रहे हैं। इस बार भी लोकसभा चुनाव में पक्ष-विपक्ष ने जातीय शतरंज पर ही अपने मोहरे उतारे हैं।

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