Gonda News: जलवायु अनुकूल खेती से किसानों को मुनाफा, लागत कम

कोरोना महामारी (Corona Epidemic) के दौरान गोंडा विकासखंड परसपुर के किसानों द्वारा जलवायु आधारित व कम श्रम लागत वाली धान की खेती की पद्धति को अपनाया गया है। ।

Report :  Tej Pratap Singh
Published By :  Satyabha
Update: 2021-07-06 12:41 GMT

जलवायु आधारित धान की खेती (फोटो न्यूजट्रैक)

Gonda News: कोरोना महामारी (Corona Epidemic) के दौरान गोंडा विकासखंड परसपुर के किसानों द्वारा जलवायु आधारित व कम श्रम लागत वाली धान की खेती की पद्धति को अपनाया गया है। यह पद्धति सतत कृषि विकास, जलवायु एवं महामारी के इस दौर में अति उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध हुई है।

धान की खेती करने में किसानों को अधिक मेहनत के साथ सिंचाई की भी उतनी ही आवश्यकता पड़ती है। दूसरी ओर खेत में जलभराव के कारण भूमि के पोषक तत्वों का निक्षालन हो जाता है। साथ ही साथ मृदा की रचना एवं संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे मृदा अपरदन की संभावना बढ़ जाती है। भूजल का दोहन अत्यधिक होता है। इन्हीं दुष्प्रभावों से बचाने के लिए प्रभारी राजकीय कृषि बीज भंडार परसपुर अनूप सिंह चौहान द्वारा ये पहल की गई। इसके तहत उन्होंने किसानों को जलवायु आधारित खेती के लिए प्रेरित किया। इससे प्रभावित होकर परसपुर में किसानों ने जलवायु आधारित फसल पद्धति को अपनाया।

इस पद्धति से कोरोना काल में परसपुर के किसानों द्वारा सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर धान की बुवाई की गई। कुछ किसानों द्वारा कस्टम हायरिंग एवं फार्म मशीनरी बैंक की योजना का लाभ उठाते हुए सीड ड्रिल एवं सुपर सीडर द्वारा धान की बुवाई की गई। कुछ किसानों ने छिटकांव विधि से भी बुवाई की, जिससे लागत में कमी आयी। किसानों का यह प्रयास गिरते हुए भौम जल स्तर के लिए सहायक सिद्ध हुआ है। इसमें रोपाई पद्धति की अपेक्षा सिर्फ 20 प्रतिशत ही जल की आवश्यकता होती है।

जलवायु आधारित धान की खेती किसानों के लिए लाभकारी

राजकीय कृषि बीज भंडार परसपुर के प्रभारी अनूप सिंह चौहान ने कहा कि जलवायु आधारित धान की खेती किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी है। किसानों को बुआई विधि के बारे में बताते हुए अनूप सिंह ने बताया कि धान की सीधी बुवाई के लिए 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देसी प्रजाति एवं 15 किलोग्राम संकर धान के प्रजाति की आवश्यकता होती है। बीज को स्टेपटोसाइक्लीन व करबेंडाजीम से शोधित करके बुराई करते हैं। इसके लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और फोटोस की आवश्यकता होती है। धान की बुवाई मानसून आने से 10 से 12 दिन पूर्व की जाती है। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई से पूर्व सिंचाई की आवश्यकता होती है।

इन किसानों ने अपनाई जलवायु आधारित बुआई

अनूप सिंह ने बताया कि इस विधि से श्रम की बचत, जल संरक्षण मृदा संरक्षण, मृदा अपरदन से बचाव, कृषि विविधीकरण को बढ़ावा, महामारी आपदा के समय एक स्थान पर श्रम इकट्ठा होने से बचाव होगा। विकासखंड परसपुर में ग्राम मधईपरुखाण्डेराय गलिबहा निवासी किसान अरूण सिंह, अनिल सिंह व अविनाश सिंह, चरौहां निवासी रविशंकर सिंह चरौहां, बबलू सिंह डेहरास, राजेश सिंह परसपुर, विवेक सिंह परसपुर बेचन सिंह राजापुर, चंद्रहास सिंह बहुवन, शिवाकांत सिंह राजेश त्रिपाठी डेहरास इंद्र प्रकाश शुक्ला आदि ने इस पद्धति को अपनाया है। उन्होंने किसानों से अपील की है कि कम लागत में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किसान भाई इस विधि को अपनाएं।

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