Gonda Viral Audio Case: तीन माह पूर्व घूसखोरी के वायरल ऑडियो मामले में आरोपी लेखपाल के ट्रांसफर पर मचा बवाल
Gonda Viral Audio Case: तहसील कर्नलगंज में तहसील कर्मियों, राजस्वकर्मियों द्वारा खुलेआम रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार के कई मामलों में कार्य कार्यवाही के बजाय टालमटोल की नीति अपनाया जा रहा है।
Gonda Viral Audio Case: एक तरफ जहाँ प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है और यहाँ के जिलाधिकारी मार्कण्डेय शाही खुद को भ्रष्टाचार के प्रति कड़े तेवर अपनाते हुए समाचारों की सुर्खियों में बने रहते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ तहसील कर्नलगंज में तहसील कर्मियों, राजस्वकर्मियों द्वारा खुलेआम रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार के कई मामलों में कार्य कार्यवाही के बजाय टालमटोल की नीति अपनाया जा रहा है।
इसका ज्वलंत उदाहरण रिश्वतखोरी का ऑडियो वायरल होने के करीब तीन महीने बाद तहसील के नवागत एसडीएम द्वारा आरोपी लेखपाल के विरूद्ध रिश्वतखोरी जैसे गंभीर अपराध में वैधानिक एवं सख्त विभागीय कार्यवाही न करके मात्र उसे हटा दिये जाने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं तहसील के एक गांव में सड़क के विवाद को लेकर हुए बवाल के मामले में भी एक लेखपाल को हटाया गया है।
लेखपाल के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं
जिले के कर्नलगंज तहसील के अंतर्गत ग्राम बहुवन मदार मांझा में तैनात रहे लेखपाल विनोद कुमार सिंह का करीब तीन महीने पहले रिश्वतखोरी का ऑडियो वायरल हुआ था। इस मामले में अभी तक जांच लम्बित रखी गई और आरोपी लेखपाल के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई तथा नवागत एसडीएम द्वारा उसे आखिरकार हटा दिया गया।
एसडीएम हीरालाल ने मामले में आरोपी लेखपाल विनोद कुमार सिंह को बहुवन मदार मांझा से हटाकर ग्राम मंगुरही में तैनात रहे लेखपाल फैयाज अहमद खान को तैनात किया है। दूसरी ओर तहसील के ग्राम खैरा में मार्ग के विवाद में लेखपाल रमेश चंद्र पाण्डेय को हटा कर ग्राम रेक्सड़िया में तैनाती की गई है।
बताते चलें कि इसी तहसील के सकरौरा ग्रामीण के तत्कालिक लेखपाल भी काफी समय से भ्रष्टाचार रिश्वत खोरी और तानाशाही पूर्ण कार्यप्रणाली से जांच व कार्यवाही के घेरे में हैं। उनके विरुद्ध भी कोई सख्त कार्रवाई अभी तक नहीं हो सकी है।
जबकि एसडीएम हीरालाल का कहना है कि दो अन्य लेखपालों की भूमिका संदेह के घेरे में हैं जिनकी जांच की जा रही है और उनके विरुद्ध भी कार्रवाई हो सकती है। इस कार्रवाई से उपजिलाधिकारी की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। सवाल यह है कि क्या आरोपी लेखपालों को मात्र उनके तैनाती स्थल से हटाकर व दूसरे लेखपाल की पोस्टिंग कर देने से ही तहसील में
चल रहे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है? और संबंधित आरोपों में सुसंगत वैधानिक सख्त विभागीय कार्रवाई ना किये जाने से संबंधित लेखपाल के साथ ही अन्य लेखपालों व तहसील कर्मियों का मनोबल नहीं बढ़ सकता है?
इससे स्थानीय जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को अप्रत्यक्ष संरक्षण दिया जाना प्रतीत होने के साथ ही कार्यप्रणाली संदिग्ध लग रही है और योगी सरकार का भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश के दावे को पलीता लग रहा है।