कबाड़ हो रहा 60 करोड़ का प्लांट, किसानों का दो करोड़ डूबा
पशुपालकों से सिर्फ 3500 लीटर ही दूध मिल पा रहा है। लिहाजा लॉकडाउन की अवधि में तैयार किए गए मिल्क पाउडर और मक्खन को मिला कर बाजार में 10 हजार लीटर दूध प्रतिदिन उपलब्ध करा पा रहे हैं।
गोरखपुर: इसे नेकी कहें, बदइंतजामी कहें या फिर सरकारी विभाग की लापरवाही। गोरखपुर के हरैया में 60 करोड़ की लागत से तैयार पराग का अत्याधुनिक प्लांट न तो कर्मचारियों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है न ही दुग्ध उत्पादकों के लिए। एक तरफ जहां कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो रहा है, वहीं प्रबंधन किसानों का दो करोड़ का बकाएदार हो गया है। दूध की किल्लत से जूझ रहे प्लांट की मशीनें जंग खाने लगी हैं।
25 मार्च से लागू लॉकडाउन में पशुपालकों का दूध नहीं बिक रहा था। ऐसे में उनके समक्ष दूध को कौड़ियों में बेचने या फिर फेंकने की नौबत आ गई थी। तब पराग ने इनसे दूध की खरीदारी कर दरियादिली तो दिखाई लेकिन इसकी कीमत पशुपालकों को नहीं दे सका। पराग प्रबंधन भी इस दूध को मार्केट में नहीं बेच सका, ऐसे में उसने इसका मक्खन, पाउडर और घी बना दिया। अब पराग के सामने हजारों टन दूध पाउडर, मक्खन और घी को खपाने का संकट है तो दूसरी तरफ किसानों का दो करोड़ रुपये बकाया अदा करने की चुनौती।
पराग की आर्थिक सेहत को खराब कर दिया
25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के साथ ही दूध की बिक्री और वितरण प्रभावित हो गया। इस बीच दुग्ध उत्पादक पशुपालकों को राहत देने के लिए पराग ने दूध की खरीद बढ़ा दी। पशुपालक भी ज्यादा मात्रा में दूध पराग को देने लगे। लॉकडाउन में पराग 20 से 30 हजार लीटर तक दूध खरीदने लगा था। लॉकडाउन में पराग ने गोरखपुर मंडल के करीब 4000 दुग्ध उत्पादकों से दो करोड़ कीमत का दूध खरीदा। इन उत्पादकों ने खुले मार्केट में बिकने वाले दूध को भी पराग को बेच दिया।
पराग को सामान्य हालात में 5000 लीटर दूध भी नहीं मिलता है, लेकिन लॉकडाउन की दुश्वारियों में उसे 30 हजार लीटर दूध रोज खरीदना पड़ा। पराग का दूध मार्केट में भी खपत नहीं हो रहा था, ऐसे में उसने इसका मक्खन, घी और पाउडर बना डाला। 8 मई के बाद बाजार कुछ सामान्य हुआ तो बिक्री सामान्य हुई, लेकिन इसके पहले की खराब बिक्री ने पराग की आर्थिक सेहत को खराब कर दिया।
लॉकडाउन में बचे दूध से पराग ने 35 टन दूध पाउडर, 8 टन देसी घी और 10.50 टन मक्खन बना कर रिकार्ड तो रच डाला लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि पराग प्रबंधन गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज और देवरिया जिले के 4000 से अधिक पशुपालकों का दो करोड़ से अधिक का बकाएदार भी हो गया।
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प्रदेश सरकार से 3 करोड़ के आर्थिक मदद की मांग की
बकाया नहीं मिलने से पशुपालक खुले मार्केट में दूध बेचने को मजबूर है तो पराग प्रबंधन पाउडर और मक्खन से दूध बनाकर खपत को पूरी कर रहा है। बकाये को लेकर प्रबंधन ने मुख्यमंत्री से भी गुहार की है। मौजूदा समय में पराग गोरखपुर मण्डल में सिर्फ 10 हजार लीटर दूध प्रतिदिन उपलब्ध करा पा रहा है। वहीं पशुपालकों से सिर्फ 3500 लीटर ही दूध मिल पा रहा है। लिहाजा लॉकडाउन की अवधि में तैयार किए गए मिल्क पाउडर और मक्खन को मिला कर बाजार में 10 हजार लीटर दूध प्रतिदिन उपलब्ध करा पा रहे हैं।
दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड के चेयरमैन रणजीत सिंह का कहना है कि लॉकडाउन में पहला लक्ष्य यह था कि दुग्ध उत्पादकों के दूध की खरीद हो। उनकी आय न प्रभावित हो। इसलिए बड़े पैमाने पर पाउडर, मक्खन और घी बनाया गया। प्रदेश सरकार से 3 करोड़ के आर्थिक मदद की मांग की गई है। इस बाबत मुख्यमंत्री को पत्रक भी दिया गया है।
मदद मिलेगी तो दुग्ध उत्पादकों को बकाया जल्द लौटाया जा सकेगा। यह रकम प्रादेशिक कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन उत्तर प्रदेश मिल सकती है। मुख्यमंत्री ने इस बाबत मदद का भरोसा दिया है। डॉ.सिंह का कहना है कि यदि हम दुग्ध उत्पादकों को बकाया भुगतान कर पाते तो वे पुन: पराग को दूध देने लगते हैं। इससे न केवल उसकी आर्थिक सेहत सुधरती, पराग को भी फायदा होता।
दुग्ध उत्पादकों को भी केसीसी की सुविधा
दुग्ध उत्पादकों की दिक्कत को देखते हुए भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के अन्तर्गत डेयरी किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके लिए डेयरी दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड के अन्तर्गत गठित निबंधित दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति लिमिटेड के 12810 दुग्ध उत्पादक सदस्यों 31 जुलाई तक केसीसी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया है। केसीसी पर वे 1.60 लाख तक की सीमा तक बंधक रहित ऋण ले सकेंगे। पूर्व में ही केसीसी की सुविधा लेने वालों को 3 लाख तक बंधक रहित सुविधा दिलाई जाएगी। दुग्ध उत्पादक किसानों के बकाया भुगतान के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
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किसानों का दर्द, बकाया मिलता तो गाड़ी आगे बढ़ती
बकाये को लेकर किसानों की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। किसान कह रहे हैं कि पराग प्रबंधन किश्तों में भी भुगतान कर देता तो काफी राहत होती। एक किसान का 5000 से लेकर 50 हजार रुपये तक बकाया है। किसान रणविजय चंद का कहना है कि बैंक से लोन लेकर 20 गाय खरीदी थी। अब किस्त देना मुश्किल हो रहा है। वहीं खजनी के रामदरश यादव कहते हैं कि गाय का भूसा और दाना काफी महंगा होता है। इसमें उधारी मिलती नहीं है। ऐसे में बकाया जल्द मिलना चाहिए। सरकार को भी इसमें पहल करनी होगी। बता दें कि गोरखपुर मंडल में छोटी-बड़ी करीब 900 समितियां जुड़ी हैं। इनमें से करीब 200 वर्तमान में सक्रिय हैं। लोकसभा चुनाव से पहले गोरखपुर के फर्टिलाइजर ग्राउंड से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 60 करोड़ से बने ऑटोमेटिक दुग्ध प्लांट का लोकार्पण किया था।
पूरी क्षमता से नहीं चालू हो पा रहा
पराग के इस अत्याधुनिक प्लांट को लेकर दावा किया गया था कि इसकी क्षमता प्रतिदिन एक लाख लीटर दूध उत्पादन की है। नया प्लांट दूध के आभाव में पूरी क्षमता से नहीं चालू हो पा रहा है। वर्तमान में जरूरत के एक लाख लीटर दूध के सापेक्ष बमुश्किल 3500 से लेकर 5000 लीटर दूध की ही उपलब्धता है। अफसरों ने नये प्लांट को लेकर न तो किसानों से संपर्क साधा न ही उन्हें समय से भुगतान का भरोसा ही दे सके। अत्याधुनिक प्लांट को लेकर तकनीकी रूप से दक्ष कर्मचारियों की तैनाती भी नहीं हो सकी। आलम यह है कि वर्तमान में पराग का यह अत्याधुनिक प्लांट सालाना बमुश्किल 12 करोड़ रुपये का ही दूध बेचता है। बाई प्रोडक्ट के पास भी पराग के पास कुछ नहीं है। इसके उलट प्राइवेट दूध उत्पादक फैक्ट्रियों में डेढ़ लाख लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है।
रिपोर्टर- पूर्णिमा श्रीवास्तव, गोरखपुर
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