गीता प्रेस वाले राधेश्याम खेमका नहीं रहे, कल्याण पत्रिका का अंत तक किया संपादन

गीता प्रेस के अध्यक्ष राधेश्याम खेमका का निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे रहे थे।

Update:2021-04-04 12:45 IST

Image- Social Media 

गोरखपुर। गीता प्रेस की मासिक पत्रिका 'कल्याण' के सम्पादक एवं ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष राधेश्याम खेमका का शनिवार को दोपहर में निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे खेमका धर्म व संस्कार की लोगों के सीख और समझ विकसित करने के लिए अंतिम सांस तक कल्याण पत्रिका का संपादन करते रहे। काशी के केदारघाट पर उन्हें अंतिम सांसे लीं। यहीं उनकी इच्छा भी थी। रात आठ बजे काशी में गंगा घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।

गीता प्रेस के अध्यक्ष राधेश्याम खेमका का निधन 

उनके निधन से गीता प्रेस समेत धर्म-कर्म से जुड़े क्षेत्र के लोगों में शोक की लहर दौड़ गई है। देश के विभिन्न शहरों और दुनिया भर में फैले गीता प्रेस की पुस्तकों के कद्रदान सोशल मीडिया पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। गीता प्रेस में दो मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई। इस अवसर पर ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल, माधव प्रसाद जालान, डॉ. लालमणि तिवारी समेत गीता प्रेस के सभी कर्मयोगियों उपस्थित रहे। राधेश्याम खेमका अपने पीछे पुत्र राजाराम खेमका, पुत्री राज राजेश्वरी, भतीजों गोपाल खेमका, कृष्ण कुमार खेमका व गणेश कुमार खेमका समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। राधेश्याम खेमका बचपन से ही धार्मिक विचार के थे। बचपन से ही वे अपने पिता के साथ माघ मेले में काशी में पूरे एक महीने का कल्पवास रखते थे। पिछले कई दशकों से वे सिर्फ गंगा जल ही पीते थे। कहीं यात्रा में भी जाना हुआ तो वे आवश्यकतानुसार गंगाजल लेकर ही चलते थे। वे धर्म सम्राट स्वामी कृपात्री महाराज के कृपा पात्र थे।

38 वर्ष तक रहे कल्याण के संपादक

राधेश्याम खेमका ने वर्ष 1982 में नवम्बर व दिसम्बर माह के कल्याण का संपादन किया था। उसके बाद वर्ष 1983 के मार्च अंक से कल्याण के संपादक थे। उनकी जीजिविषा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 86 वर्ष की उम्र में भी अप्रैल 2021 तक के अंकों का उन्होंने संपादन किया है। उनके संपादन में कल्याण के 38 वार्षिक विशेषांक, 460 सम्पादिक अंक प्रकाशित हुए। इस दौरान कल्याण की 9 करोड़ 54 लाख 46 हजार प्रतियां प्रकाशित हुईं। कल्याण में पुराणों एवं लुप्त हो रहे संस्कारों एवं कर्मकाण्ड की पुस्तकों का प्रामाणि संस्करण उनके सम्पादकत्व में प्रकाशित हुए।

नियमित पाठकों में शोक की लहर
गीता प्रेस की पुस्तकों पर शोध करने वाले डॉ.रजनीश चतुर्वेदी का कहना है कि धर्म का प्रकाश घर-घर तक पहुंचाने वाले संत का निधन समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। वह विचार से मनीषी, आचार से तपस्वी, कर्मों से धर्मनिष्ठ और जीवन निष्ठा में वैरागी थे। संत रविदास महासभा के महामंत्री सूरज भारती का कहना है कि महाप्रयाण के बाद भी उनके कृत्य, धार्मिक निष्ठा, सनातनी समर्पण, गो - सेवा, संस्कृत उन्नयन के कार्य से वह सदैव सभी के दिलों में जीवित रहेंगे। सनातन धर्म का गूढ़ और प्रामाणिक ज्ञान गीता प्रेस की पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने घर-घर तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया था।
रिपोर्ट-पूर्णिमा श्रीवास्तव


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