Gorakhpur News: मुहर्रम में होगा सोने-चांदी के ताजिया का दीदार, ऐतिहासिक जुलूस को लेकर तैयारियां शुरू
Gorakhpur News: माह-ए-मुहर्रम का चांद 29 जुलाई की शाम देखा जाएगा। चांद नज़र आ गया तो माह-ए-मुहर्रम 30 जुलाई से शुरू हो जाएगा।
Gorakhpur News: कोरोना की बंदिशों के चलते गोरखपुर का प्रसिद्ध मुहर्रम का जुलूस नहीं निकल रहा था। लेकिन कोरोना संक्रमण से राहत को देखते हुए गोरखपुर के ऐतिहासिक जुलूस को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस बार देश-दुनिया के लोग अनूठे सोने-चांदी के ताजिया (tazia of gold and silver) का दीदार कर सकेंगे।
माह-ए-मुहर्रम का चांद 29 जुलाई की शाम देखा जाएगा। चांद नज़र आ गया तो माह-ए-मुहर्रम 30 जुलाई से शुरू हो जाएगा। 10वीं मुहर्रम यानी यौमे आशूरा 8 अगस्त को होगी। चांद नहीं दिखा तो माहे मुहर्रम 31 जुलाई से शुरू होगा और यौमे आशूरा 9 अगस्त को पड़ेगी। माहे मुहर्रम का चांद दिखते ही नए इस्लामी साल का आगाज़ होगा। इसी के साथ 1444 हिजरी शुरू हो जाएगी। हिजरी सन् का आगाज माहे मुहर्रम से ही होता है। मुहर्रम की पहली तारीख को इस्लाम धर्म के दूसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर रदियल्लाहु अन्हु की शहादत हुई।
गोरखपुर में सैकड़ों सालों से मुहर्रम मनाने की ऐतिहासिक परंपरा को वैश्विक महामारी कोरोना ने दो साल से थाम दिया। किसी भी तरह का जुलूस नहीं निकला। इमामबाड़ा इस्टेट मियां बाज़ार में मेला भी नहीं लगा। इस बार मुहर्रम का जुलूस रवायत के मुताबिक निकालेगा। मियां बाज़ार स्थित इमामबाड़ा इस्टेट में रंगरोगन जारी है। इमामबाड़ा इस्टेट में मेला भी लगेगा। दो साल बाद सोने चांदी की ताजिया का दीदार होगा। इसके साथ ही हजरत सैयद रौशन अली शाह के हुक्का, चिमटा, खड़ाऊ, उनके दांत तथा बर्तन आदि का भी दीदार लोग कर सकेंगे। हज़रत सैयद रौशन अली शाह ने इमामबाड़े में एक जगह धूनी जलाई थी। वह आज भी सैकड़ों वर्षों से जल रही है।
ताजिया का हो रहा निर्माण
शहर से निकलने वाले लाइन की ताजिया के जुलूस में करीब 250 ताजिया आकर्षण का केंद्र होती हैं। लाइन की ताजिया 9वीं मुहर्रम को रात 10 बजे व 10वीं मुहर्रम को बाद नमाज मगरिब (शाम में) से निकलती है। इन जुलूसों का केंद्र गोलघर होता है। इन जुलूसों में अहमदनगर चक्शा हुसैन, जटेपुर, हड़हवा फाटक, खरैया पोखरा, गोलघर, सिविल लाइन, रेलवे कॉलोनी, घोसीपुरवा, बिछिया, बनकटीचक आदि मोहल्ले शामिल होते हैं। बेहतरीन ताजिया को तमाम जगहों पर विभिन्न कमेटियों द्वारा सम्मानित किया जाता है।
इमामबाड़ा: इतिहास का जीवंत दस्तावेज
सुन्नी समुदाय का इमामबाड़ा गोरखपुर में है। इस इमामबाड़े में जैसी आदम कद की सोने-चांदी की ताज़िया है। यहां के मेन गेट पर अवध के राजशाही का चिन्ह भी बना हुआ है। करीब तीन सौ सालों से हजरत सैयद रौशन अली शाह द्वारा जलायी धूनी आज भी जल रही है। मियां साहब इमामबाड़ा इस्टेट के संस्थापक हजरत सैयद रौशन अली शाह ने 1717 ई. में इमामबाड़ा तामीर किया। इस इमामबाड़ा इस्टेट के मस्जिद व ईदगाह का निर्माण 1780 ई. में हुआ। इमामबाड़ा इस्टेट के प्रशासनिक अधिकारी बताते हैं कि सूफी हज़रत सैयद रौशन अली शाह बुखारा के रहने वाले थे। वह मोहम्मद शाह के शासनकाल में बुखारा से दिल्ली आये। दिल्ली पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के समय इस परम्परा के सैयद गुलाम अशरफ पूरब (गोरखपुर) चले आये और बांसगांव तहसील के धुरियापार में ठहरे। वहां पर उन्होंने गोरखपुर के मुसलमान चकलेदार की सहायता से शाहपुर गांव बसाया। इनके पुत्र सैयद रौशन अली अली शाह की इच्छा इमामबाड़ा बनाने की थी। गोरखपुर में उन्हें अपने नाना से दाऊद-चक नामक मोहल्ला विरासत में मिला था। उन्होंने यहां इमामबाड़ा बनवाया। जिस वजह से इस जगह का नाम दाऊद-चक से बदलकर इमामगंज हो गया।