Gorakhpur News: राममंदिर के लिए आजीवन लड़े महंत अवेद्यनाथ, आंदोलन को धार देने को सहभोज को दिया बढ़ावा

Gorakhpur News: राजनीतिक परिवर्तन के लिए हिन्दू समाज को केन्द्रित करने के उद्देश्य है महंत अवेद्यनाथ ने 1980 में राजनीति से संन्‍यास ले लिया था।

Update:2024-09-12 07:11 IST

अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (photo: social media )

Gorakhpur News: राम मंदिर आंदोलन के अगुवा ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 12 सितम्बर को पुण्यतिथि है। वे राम मंदिर आंदोलन के अगुआ तो थे ही, सामाजिक समरसता का संदेश देने वाले अग्रदूत भी थे। राम मंदिर आंदोलन की धार को कुंद करने के लिए जब जाति व्यवस्था को साजिश के तहत हथियार बनाया जाने लगा तो उन्होंने जगह-जगह दलितों के साथ ही सभी वर्गों के साथ सहभोज का आयोजन किया।

मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ ने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर खड़ा करके श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। वह इस समिति के अध्यक्ष रहते हुए अवेद्यनाथ के नेतृत्व में ही सात अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए धर्मयात्रा निकाली गई। यात्रा 14 अक्टूबर को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क पहुंची, जहां ऐतिहासिक सम्मेलन में 10 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। बता दें कि महंत अवेद्यनाथ के गुरु महंत दिग्विजयनाथ ने 28 सितम्‍बर 1969 को अयोध्‍या में श्रीरामजन्‍मभूमि पर मंदिर निर्माण की अधूरी इच्‍छा के साथ समाधि ले ली। जिसके बाद उनके उत्‍तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ ने एलान कर दिया था कि राम जन्‍मभूमि की मुक्ति तक चैन से नहीं बैठेंगे।

हिन्दू समाज को केन्द्रित करने के लिए छोड दी राजनीति

राजनीतिक परिवर्तन के लिए हिन्दू समाज को केन्द्रित करने के उद्देश्य है महंत अवेद्यनाथ ने 1980 में राजनीति से संन्‍यास ले लिया था। जिसके बाद उन्होंने श्रीराम जन्‍मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया। महंत अवेद्यनाथ इसके आजीवन अध्‍यक्ष रहे। 24 सितम्‍बर 1984 को बिहार के सीतामढ़ी से श्रीराम जानकी रथयात्रा निकाली गई। यह रथ छह अक्‍टूबर 1984 को अयोध्‍या पहुंचा। सात अक्‍टूबर 1984 को अयोध्‍या में सरयू नदी के तट पर हजारों रामभक्‍तों ने संकल्‍प लिया। इसी तरह की सभाएं प्रयाग और अन्‍य स्‍थानों पर भी हुईं। इसी बीच एक नवम्‍बर 1985 को कर्नाटक के उडुपी में हुए धर्मसंसद में निर्णय हुआ कि ताला नहीं खुला तो सारे देश के हजारों धर्माचार्य अपने लाखों शिष्‍यों के साथ 9 मार्च 1986 से सत्‍याग्रह करेंगे। सत्‍याग्रह के संचालन के लिए महंत अवेद्यनाथ को अखिल भारतीय संयोजक नियुक्‍त किया गया। एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला जज ने विवादित ढांचे के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश होना महंत अवेद्यनाथ और संत समाज की बड़ी विजय थे। 22 सितम्‍बर 1989 को महंत अवेद्यनाथ की अध्‍यक्षता में दिल्‍ली में विराट हिन्‍दू सम्‍मेलन हुआ। इसमें नौ नवम्बर 1989 को जन्‍मभूमि पर शिलान्‍यास कार्यक्रम घोषित किया गया। तय समय पर एक दलित से शिलान्‍यास कराकर महंत अवेद्यनाथ ने आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ दिया। 23 जुलाई 1992 को महंत अवेद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्‍हा राव से मुलाकात की। सार्थक वार्ता नहीं हुई तो 30 अक्‍टूबर 1992 को दिल्‍ली में हुए पांचवें धर्मसंसद का आयोजन हुआ। जहां से छह दिसम्‍बर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का निर्णय लिया गया।

ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने डोमराज के यहां भोजन कर दिया था संदेश

देश के संत समाज में बेहद सम्मानीय ब्रह्ललीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में दलित समाज के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से खासे आहत हुए थे। इसका विस्तार उत्तर भारत में न हो इसके लिए वे सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने चार बार गोरखपुर सदर संसदीय सीट और 5 बार मानीराम विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया था। योग और दर्शन के मर्मज्ञ महंत अवेद्यनाथ के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना था। गोरक्षपीठ को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय बताते हैं कि बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के यहां भोजन भी किया था। दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर के भूमिपूजन की पहली ईंट उनके ही प्रयासों से रखवाई गई थी। बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए वह भगवान श्री राम को आदर्श मानते थे।

Tags:    

Similar News