AIIMS Research: शरीर की चर्बी से होगा कान के फटे पर्दे का इलाज, सुनने की क्षमता तीन गुना बढ़ गई
AIIMS Research: शोधकर्ता डॉ. आकांक्षा ने बताया कि शरीर के वसा में कई गुण होते हैं। वसा के संपर्क में आने पर त्वचा के सेल में तेजी से विकास होता है।
AIIMS Research: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित एम्स के डॉक्टरों ने शरीर की चर्बी से कान के फटे पर्दे का इलाज तलाशने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। अब सिर्फ 15 से 20 मिनट में छोटी सर्जरी से मरीज के कान का पर्दा ठीक हो जाएगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नाक, कान, गला (ईएनटी) विभाग के चिकित्सकों की रिसर्च से यह संभव हो सका है।
अंतराष्ट्रीय जर्नल पबमेड व इरानियन जर्नल ऑफ ओटोराइनोलॉजी में प्रकाशित शोध के मुताबिक फैट टिम्पेनोप्लास्टी तकनीक के तहत शरीर की चर्बी से 60 मरीजों का इलाज किया गया। शोध में सामने आया है कि शरीर की चर्बी से कान के फटे पर्दे की मरम्मत ही नहीं हो सकेगी बल्कि सुनने की क्षमता भी तीन गुना तक बढ़ाई जा सकेगी। अंतराष्ट्रीय जर्नल पबमेड व इरानियन जर्नल ऑफ ओटोराइनोलॉजी में प्रकाशित शोध के मुताबिक फैट टिम्पेनोप्लास्टी तकनीक के तहत शरीर की चर्बी से 60 मरीजों का इलाज किया गया। 87 फीसदी मरीजों पर प्रयोग सफल रहा, तो 13 पर आंशिक सफलता मिली।
यह शोध गोरखपुर एम्स में कार्यकारी निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण अग्रवाल की अनमुति के बाद ईएनटी विभाग की डॉ. आकांक्षा रावत, डॉ. रुचिका अग्रवाल और डॉ. पंखुड़ी मित्तल ने 2022 में शुरू किया और निष्कर्ष तक पहुंचने में 15 माह लगे। किशोर व अधेड़ मरीज अधिक फैट टिम्पेनोप्लास्टी पर शोध में विभाग में आने वाले ऐसे मरीजों को शामिल किया गया जिनके कान के पर्दे फट गए थे लेकिन छेद (सुराख) पांच मिलीमीटर से कम रहा। मरीजों की उम्र 15 से 50 वर्ष के बीच रही। इस सर्जरी के लिए कान के पास से ही चर्बी निकाली गई। यह चर्बी कान के पास लोब्यूल पर जमा रहती है। उसी चर्बी को ग्राफ्ट कर पर्दे के फटे छेद पर लगाया गया। इस तकनीक से जिनकी सर्जरी हुई उसके अगले दिन मरीज को छुट्टी दे दी गई। मरीजों को तीन महीने तक फालोअप पर रखा गया। इसमें 56 मरीजों में शानदार परिणाम मिला। 87 प्रतिशत मरीजों की सुनने की क्षमता तीन गुना बढ़ गई।
ऐसे काम करता है बसा, 20 मिनट में सर्जरी
शोधकर्ता डॉ. आकांक्षा ने बताया कि शरीर के वसा में कई गुण होते हैं। वसा के संपर्क में आने पर त्वचा के सेल में तेजी से विकास होता है। वसा के इसी गुण का उपयोग किया गया है। जिससे कान के पर्दे की स्वत: मरम्मत हो जाती है। कान के पर्दे के इलाज में परंपरागत सर्जरी बड़ी होती है। उसमें कान के पीछे चीरा लगाकर मांस निकाला जाता है। फिर उसका पर्दा बनाकर सर्जरी के जरिए कान में लगाया जाता है। नई तकनीक बेहद सुरक्षित है। इस सर्जरी में सिर्फ 15 से 20 मिनट लगते हैं। मरीज को भर्ती नहीं करना पड़ता है। इसे ओपीडी में भी कर सकते हैं।