राधारानी की ननिहाल में सदियों पुरानी परंपरा, चरकुला नृत्य देख मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

Govardhan: चरकुला नृत्य का शुभारंभ डोल नगाड़े मजीराओं की झंकार के साथ होली रसिया गायन के साथ हुआ।

Report :  Nitin Gautam
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2022-03-20 03:34 GMT

चरकुला नृत्य 

Govardhan: राधारानी की ननिहाल गॉव मुखराई गॉव द्वापर युगीन चरकुला नृत्य की अनूठी और कलात्मक परंपरा का निर्वहन किया गया । विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बीच दर्जनों महिलाओं ने सिर पर बजनी थाल रख कर चलते 108 दीपों के साथ चरकुला नृत्य की मनमोहिक प्रस्तुतियां दी। 

चरकुला नृत्य का शुभारंभ डोल नगाड़े मजीराओं की झंकार के साथ होली रसिया गायन के साथ हुआ। चरकुला नृत्य के कार्यक्रम का आयोजन गॉववासी मिलकर भव्यता और दिव्यता के साथ करते हैं। जिसमें ग्रामीण ढप,ढोल,मृदंग की थाप पर हुरंगा का न्यौता देते हैं और हुरयारे लोकगीतों की बोछार करते हुए हुरयारिनों को उकसाते हैं।

 देशी-विदेशी भक्तों ने जमकर लगाए ठुमके 


सजी संवरी हुरयारिन हुरयारों पर प्रेम पगी लाठियां बरसाना प्रारम्भ कर देती हैं। हुरियारों ने लोक गीत युग-जुग जीयो नांचन हारी, नांचन हारी पै दो-दो हुंजो, एक मुकदम दूजौ पटवारी आदि समाज गायनों की प्रस्तुति दी तो देशी-विदेशी भक्तों ने जमकर ठुमके लगाए।

इसके बाद गॉव की महिला द्वारा सिर पर बजनी शिला रख 108 जलते दीपकों के साथ चरकुला नृत्य किया। साथ ही ब्रज की कलाओं से ओत-प्रोत दर्जनों सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कलाकारों की मनमोहिक प्रस्तुतियां दी गई जिसे देख दर्शक मंत्रमुग्द हो गए।  

मान्यता कि राधारानी की ननिहाल गांव मुखराई में मुखरादेवी ने राधाजी के जन्म की खबर सुनी तो खुशी में रथ के पईया को उठा कर नृत्य किया। द्वापर युगीन की अनूठी और कलात्मक परंपरा चरकुला नृत्य का निर्वहन मुखराई गांव के ग्रामीणों द्वारा प्रतिवर्ष की भांति वर्षों से होली पर्व के दौज पर चरकुला नृत्य का आयोजन किया जाता है।


ब्रज लोककला फाउण्डेशन के अध्यक्ष दानी शार्मा, सचिव पंकज खण्डेलवाल, ने बताया कि चरकुला नृत्य ने जापान, इण्डोसिया, रूस, चीन, सिंगापुर, आस्टेलिया आदि देशों में अपनी दाख जमाई है।अतिथियों का दानी शर्मा ने पट्का व स्मृति चिन्ह भेंटकर स्वागत किया। 

प्यारेलाल ने दिया चरकुला नृत्य को नया रूप   

मुखराई गॉव के चरकुला नृत्य का सामान मथुरा संग्राहलय में जमा होने के बाद सन् 1845 में गांव के प्यारेलाल बाबा ने चरकुला नृत्य को नया रूप दिया। उन्होंने लकड़ी का घेरा, लोह की थाल एंव लोह की पत्ती और मिट्टी के 108 दीपक रख 5 मंजिला चरकुला बनाया था।

चरकुला नृत्य रामादेई और छीतो देवी ने 108 जलते दीपकों के साथ चरकुला को सिर पर रख मदन मोहन जी मन्दिर के निकट चैक में नृत्य किया था। सन् 1930 से 1980 तक लक्ष्मी देवी और असर्फी देवी ने किया। चरकुला नृत्य राधाजी के जन्म से शुरू हुआ था। 

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