आशुतोष सिंह
वाराणसी: पूरे उत्तर प्रदेश में इन दिनों मां गंगा की गूंज सुनाई दे रही है। बलिया से बिजनौर तक बीजेपी सरकार का समूचा अमला गंगा यात्रा के लिए सडक़ पर है। अखबार, टीवी और रेडियो सरीखे जनसंचार के साधन सुबह शाम, हर-हर गंगे और नमामि गंगे की माला जप रहे हैं। करोड़ों रुपये के विज्ञापन दिए गए हैं। गंगा किनारे बसे शहरों की सडक़ें और गालियां बैनर-पोस्टर से पटे पड़े हैं। कुल मिलाकर गंगा के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। तो सवाल यही है कि क्या गंगा का पानी अब आचमन योग्य हो गया है? क्या गंगा की निर्मलता और अविरलता अपना पुराना स्वरूप लेने लगी है? क्या साल 2014 में पीएम नरेंद्र मोदी ने गंगा को लेकर जो सपना देखा था, उसने अब हकीकत का लिबास ओढऩा शुरू कर दिया है? इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए अपना भारत की टीम ने पूर्वांचल के आधा दर्जन जिलों का दौरा किया और वहां पर गंगा के हालात को जानने की कोशिश की।
कहीं ध्यान भटकाने की कोशिश तो नहीं
उत्तर प्रदेश में गंगा यात्रा की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे है। गौर करिए। इन दिनों पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर प्रदर्शन चल रहे हैं। यूपी के कई शहरों में पिछले दिनों जमकर तोडफ़ोड़ भी हुई थी। ऐसे में इस पूरे मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाना सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि अगर आंदोलन आगे बढ़ता है तो निश्चित तौर पर सरकार के सामने कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी होगी। राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक सरकार ने एक ऐसा दांव चल दिया है, जिसमें पूरा ध्यान गंगा पर टिक गया है।
सरकार ने इस मिशन को पूरा करने के लिए अपने सभी सिपहसालारों को मैदान में उतार दिया है। कांग्रेस विचारधारा से जुड़े हिमांशु पूछते हैं कि गंगा को लेकर सरकार ने ऐसा कौन सा तीर मार दिया, जिसके प्रचार-प्रसार के लिए इतना हल्ला मचा है। ये सबकुछ एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। हकीकत ये है कि सरकार सीएए के मुद्दे पर घिर चुकी है। इसलिए गंगा यात्रा का आयोजन कर लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है। गंगा महासभा के महामंत्री जीतेन्द्रानंद सरस्वती कहते हैं कि ये सही है कि मोदी और योगी सरकार की गंगा में आस्था है। लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि जो प्रयास होने चाहिए थे, वो अब तक नहीं हो रहे हैं। चाहे वाराणसी हो या कानपुर, गंगा सफाई के नाम पर सिर्फ रस्मअदायगी चल रही है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट शोपीस बनकर रह गए हैं।
उत्सव की तरह गंगा यात्रा का आयोजन
योगी सरकार ने गंगा यात्रा को किसी उत्सव सरीखा बनाया। लंबे समय बाद किसी आयोजन में सरकार की इतनी बड़ी सहभागिता दिखी। क्या अफसर, क्या कर्मचारी और क्या मंत्री-नेता। हर कोई जिम्मेदारी निभाता दिखा। सरकार की गंभीरता इस तरह से देखी जा सकती है कि बिजनौर में जहां सीएम योगी आदित्यनाथ ने यात्रा को हरी झंडी दिखाई, वहीं बलिया में गवर्नर आनंदीबेन पटेल मौजूद थीं। इसके अलावा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के अलावा सरकार के दर्जनभर मंत्री यात्रा को सफल बनाने में जुटे थे। सरकार ने यात्रा के प्रचार-प्रसार पर खासा फोकस रखा। जहां अखबारों को फुलपेज विज्ञापन दिए गए, वहीं टीवी चैनलों परलंबा स्लॉट लिया गया। सिर्फ यही नहीं हाल के दिनों में ऐसा पहली बार देखा गया जब सरकार ने जिलों के स्थानीय रिपोर्टरों के साथ लखनऊ और दिल्ली से पहुंची टीम के लिए खास व्यवस्था की हो। सरकार ने गंगा यात्रा को पूरी तरह से इवेंट प्रोग्राम में तब्दील कर दिया। यात्रा जिस रास्ते से गुजर रही थी, वहां गुलाब की पंखुडिय़ों से स्वागत किया गया। बस में सवार बीजेपी के बड़े नेता और मंत्री लोगों का अभिवादन स्वीकार करते नजर आए। जगह-जगह छोटी सभाएं भी कराई गईं ताकि माहौल में कोई कमी ना रहे।
नगर निगम ने भी कसी कमर
दरअसल, गंगा में घुलनशील आक्सीजन की क्षमता बढऩे से उत्साहित नगर निगम अफसर अब गंगा सफाई को लेकर नया कदम उठाने की तैयारी में हैं। ऑक्सीजन में सुधार होने के बाद अब वाराणसी नगर निगम और भी गंभीर हो गया है। गंगा को साफ रखने के मकसद से अब उसमें गंदगी करने वालों को सबक सिखाने के लिए जुर्माना लगाया जाएगा। नगर निगम ने गंगा घाट पर गंदगी फैलाने वालों पर 25,000 रुपये जुर्माना लगाने की तैयारी कर ली है। निगम के अफसरों का मानना है कि जुर्माना लगाने से लोग गंगा में गंदगी कम करेंगे। नदी को प्रदूषित कम करेंगे। जुर्माने की जो राशि तय हुई है, उसके मुताबिक गंगा घाट पर कपड़े धोने पर 5,000 रुपये से 25,000 रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके अलावा प्रतिमा विसर्जन, पूजा सामग्री विसर्जित करने पर 10,000 रुपये और गंगा किनारे मल-मूत्र विसर्जन पर 10-20 हजार रुपये तक जुर्माना तय किया गया है। इस प्रस्ताव पर गंगा समिति की बैठक में मुहर लगना बाकी है. जो जल्द लग जाएगी। इस जुर्माने के तहत आवासीय भवनों के अलावा होटल, रेस्टोरेंट और अन्य प्रतिष्ठानों से निकलने वाला सीवेज व गंदा पानी गंगा में जाने पर इनके मालिकों व संचालकों पर भी जुर्माना लगाया जाएगा।
तो क्या छलावा है गंगा सफाई अभियान
दूसरी ओर गंगा से जुड़े जानकार बता रहे हैं कि ये सिर्फ दिखावा भर है। गंगा में ये सुधार क्षणिक है। गंगा के ऊपर लंबे समय से रिसर्च करने वाले बीएचयू के प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि गंगा सफाई को लेकर वर्तमान सरकार की सोच पर सवाल नहीं उठाए जा सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि मोदी सरकार के काम करने का तरीका भी पिछली सरकारों की तरह ही है। गंगा सफाई की प्राथमिकता समय के साथ बदल गई है। अब चुनौती सिर्फ प्रदूषण नहीं है बल्कि बात इससे काफी आगे निकल गई है। अगर गंगा को बचाना है तो पानी का बहाव बढ़ाना पड़ेगा। बीडी त्रिपाठी कहते हैं कि जब गंगा में पानी ही नहीं रहेगा तो गंगा बचेगी कैसे? उनके मुताबिक लोगों में जागरूकता लाना सही है, लेकिन धरातल पर काम भी होना चाहिए। बीडी त्रिपाठी गंगा को बचाने लिए चार काम गिना रहे हैं। उनके मुताबिक अगर उत्तराखंड में बन रहे बांधों से समय-समय पर पानी छोड़ा जाए, हरिद्वार के आगे गंगा के पानी को दूसरी तरफ ना बांटा जाए, गंगा से निकलने वाली नहरों की संख्या कम की जाए और सिंचाई का दूसरा रास्ता खोजा जाए। जानकार बता रहे हैं कि गंगा सफाई को लेकर सरकार कुछ कंफ्यूज दिख रही है। यही कारण है कि अलग मंत्रालय बनने के बाद भी ठोस बदलाव नहीं दिख रहा है।
परवान नहीं चढ़ रही कोशिश
गंगा सफाई को लेकर सरकार अभी तीन बिंदुओं पर काम कर रही है। इनमें सीवेज, सौंदर्यीकरण और गंगा किनारे वृक्षारोपण प्रमुख है। जानकारों के मुुताबिक इन सभी की स्थिति अच्छी नहीं।मसलन वाराणसी को ही लेते हैं। सरकार ने यहां पर सीवेज सिस्टम सुधारने के लिए 2 बड़े सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण शुरू किया। गोइठहां और एमना में क्रमश: 120 और 140 एमएलडी का प्लांट बन रहा है। इसमें से गोइठहां ट्रीटमेंट प्लांट उद्घाटन के एक साल बाद भी काम नहीं कर रहा है। अभी तक घरों की पाइपलाइन को मुख्य सीवेज से नहीं जोड़ा गया है। आलम यह है कि वाराणसी में अब भी प्रतिदिन 300 एमएलडी सीवेज गंगा में गिरता है। इसी तरह सरकार अब गंगा किनारे जैविक खेती को प्रोत्साहित करेगी, लेकिन इसकी क्या योजना है, अब तक स्पष्ट नहीं है। जानकारों के मुताबिक सिर्फ गंगा किनारे आरती की शुरुआत करके कुछ हासिल नहीं होने वाला।
बनारस में गंगा की हालत
वाराणसी में गंगा की हालत में फौरी तौर पर बदलाव दिख रहा है। काशी के घाटों पर आने वाले श्रद्धालु पतित पावनी गंगा को देखकर खुश हो रहे हैं। इसके पीछे जो वजह बताई जा रही है, उसके मुताबिक गंगा में प्रदूषण की मात्रा में कमी आई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय सचिव कालिका सिंह बताते हैं कि तय मानक के लिहाज से गंगा में घुलनशील ऑक्सीजन का लेवल अब 9 तक पहुंच गया है। अप और डाउन स्ट्रीम में काफी सुधार हुआ है। सहायक नदियों वरुणा और अस्सी को भी साफ करने की कोशिश तेजी से चल रही है। साथ ही घाटों पर अभियान चलाकर स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। दशाश्वमेध, राजेन्द्र प्रसाद, अस्सी के अलावा अब अधिकांश घाटों पर सफाई दिख रही है। दरकते घाटों का भी कायाकल्प हुआ है।