Gyanvapi Masjid Case: आज का दिन बहुत खास, यहां जाने अब तक क्या-क्या हुआ ज्ञानवापी केस में
Gyanvapi Masjid Vivad Full Update: ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर वाराणसी के सिविल कोर्ट में आज फिर सुनवाई होगी, कोर्ट आज सर्वे से जुड़े वीडियो और फोटोग्राफ को दोनों पक्षों को सौंपेगी।
Gyanvapi Masjid Case Story: वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Gyanvapi Masjid Controversy) मामले में आज फिर सिविल कोर्ट में सुनवाई होगी। आज जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश की बेंच श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri Case) से जुड़े पोषणीयता के केस पर सुनवाई करेगी। साथ ही आज के सुनवाई में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid Latest News) परिसर के हुए सर्वे के फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को सभी पक्षकारों को सौंपा जाएगा। हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट से गुजारिश की गई है कि वीडियो और फोटो को सार्वजनिक किया जाए, वहीं मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट से यह गुजारिश की गई है कि सर्वे से जुड़े वीडियो और फोटोग्राफ्स को सार्वजनिक ना किया जाए। जिला अदालत के अलावा आज फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी ज्ञानवापी मुद्दे पर सुनवाई होगी। आइए जानते हैं कि अब तक इस मामले में क्या-क्या हुआ?
1991 में पहली बार अदालत पहुंचा मामला
ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर विवाद साल 1991 में शुरू हुआ था। उस दौर में राम रंग शर्मा हरिहर पांडे और सोमनाथ व्यास ने वादी के तौर पर अदालत में याचिका दायर की थी। वहीं इस मस्जिद परिसर से जुड़े सिंगार गौरी विवाद की शुरुआत बीते साल अगस्त महीने में हुई थी।
18 अगस्त को पांच महिलाओं ने कोर्ट में दायर की याचिका
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े विवाद की शुरुआत पिछले साल एक एक बार फिर तब शुरू हुई जब 18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल कोर्ट में सीनियर डिवीजन सिविल जज के सामने यह याचिका दायर की कि उन्हें श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा अर्चना तथा दर्शन करने की अनुमति दी जाए। ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में स्थित सिंगार गौरी मंदिर से जुड़े याचिका आने पर सिविल कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई। कोर्ट की ओर से सीनियर डिवीजन सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने यह आदेश दिया कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे किया जाए।
कोर्ट के आदेश पर हुआ सर्वे
सरदार गौरी मंदिर में पूजा अर्चना करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए वाराणसी सिविल कोर्ट की ओर से ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने का आदेश दिया गया। इस सर्वे के लिए कोर्ट की ओर से एक टीम का गठन किया गया, टीम ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में 14 मई से 16 मई तक सर्वे अभियान चलाया। इस दौरान ज्ञानवापी परिसर मैं स्थित मस्जिद के बंद पड़े तहखाने तथा कमरों का वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण किया गया। साथ ही मस्जिद के पश्चिमी दीवार, गुंबदों तथा पास के तालाब का भी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी किया गया। इस दौरान हिंदू पक्ष की ओर से या दावा किया गया कि सर्वे के दौरान मस्जिद परिसर से एक शिवलिंग मिला है, हालांकि हिंदू पक्ष की इस दावे को मुस्लिम पक्ष ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सर्वे के दौरान कोई शिवलिंग नहीं बल्कि मिला है, जो मिला वह पुराने समय का एक फव्वारा है, यह मस्जिद में लगा होता है।
शिवलिंग मिलने के दावे के बाद वाराणसी कोर्ट का फैसला
कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे के दौरान शिवलिंग मिलने की बात सामने आते ही वाराणसी सिविल कोर्ट ने इस मामले को लेकर बड़ा आदेश दिया। इस आदेश में कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने वाली जगह को तुरंत ही सील किया जाए साथ ही वहां नमाज पढ़ने के लिए केवल 20 मुसलमानों को अंदर जाने की अनुमति दी जाए इसके अलावा कोर्ट ने मस्जिद परिसर में वजू करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। सिविल कोर्ट ने यह सारे आदेश तक दिए जब हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने एक प्रार्थना पत्र दायर किया कि सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला है जिसे संरक्षित किया जाए।
सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
वाराणसी सिविल कोर्ट के फैसले के खिलाफ नाराजगी जाहिर करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की देखरेख करने वाले अंजुमन इंतजामिया कमेटी ने सर्वे पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। हालांकि इस याचिका पर सुनवाई तब हुई जब 3 दिनों के सर्वे का काम पूरा हो चुका था। इस मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने अंजुमन इंतजामिया कमेटी की मांग को खारिज करते हुए सर्वे पर रोक लगाने से मना कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सर्वे के दौरान जिस जगह पर शिवलिंग मिला है उस स्थान को और शिवलिंग को प्रशासन सुरक्षित रखें। इसके साथ ही कोर्ट ने वाराणसी जिला अदालत के उस आदेश को बदल दिया जिसमें कहा गया था कि मस्जिद परिसर में केवल 20 मुस्लिमों को ही नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग की सुरक्षा के साथ-साथ ही आदेश दिया कि मस्जिद में नमाज पढ़ने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा।
रिपोर्ट पेश करने में हुई देरी
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे करने के आदेश के साथ ही वाराणसी सिविल कोर्ट ने कमेटी को या आदेश दिया था कि सर्वे रिपोर्ट 17 मई तक अदालत में पेश हो जानी चाहिए। हालांकि सर्वे प्रक्रिया लंबी हो जाने के कारण बड़ी संख्या में फोटोग्राफ्स और वीडियो बन गए जिस कारण से रिपोर्ट तैयार होने में देरी हुई। जिसके बाद जिला कोर्ट की ओर से सर्वे टीम को रिपोर्ट सबमिट करने के लिए अतिरिक्त 2 दिन का समय दिया गया। मगर 2 दिन बाद वकीलों के हड़ताल के कारण जिला अदालत में सर्वे रिपोर्ट सबमिट नहीं हो पाई। हालांकि इसके अगले दिन सर्वे टीम की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का विस्तृत रिपोर्ट वाराणसी जिला अदालत में सौंप दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में फिर हुई सुनवाई
अंजुमन इंतजामिया कमेटी की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर याचिका दायर की गई। इस याचिका में मुस्लिम पक्ष की ओर से दलील दी गई कि सिविल कोर्ट द्वारा सर्वे का दिया गया आदेश प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन करता है। जिस कारण से इस सर्वे को खारिज किया जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए सर्वे को लेकर यह निर्णय लिया कि इस मामले की सुनवाई केवल निचली अदालत में ही की जाए।
क्या है दोनों पक्षों की दलीलें?
ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों की ओर से अलग-अलग दावे किए जाते हैं। हिंदू पक्ष लगातार यह दावा करता आया है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण विश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया है। 1991 में दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं द्वारा यह कहा गया था कि औरंगजेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़ दिया था तथा उसके बाद वहां मस्जिद का निर्माण कराया गया जिस कारण से यहां की जमीन हिंदू पक्ष को सौंपी जानी चाहिए। इसके साथ ही हिंदू पक्ष की ओर से यह लगातार दावा किया जा रहा है कि मस्जिद के प्रवेश द्वार समेत कई अन्य दीवारों पर हिंदू देवताओं और मंदिरों का जिक्र देखने को मिलता है। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस मस्जिद के गुंबद को भी मंदिर के गुंबद को तोड़कर बनाया गया है।
वहीं इससे इधर मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह प्राचीन काल से ही मस्जिद है, इसे किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाया गया। हाल ही में जब कोर्ट की ओर से इस मस्जिद परिसर के सर्वे को लेकर फैसला सुनाया गया। तब मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि इस विवाद को लेकर कोई फैसला नहीं सुनाया जा सकता क्योंकि इस पर कोई भी फैसला 1991 के धर्मस्थल कानून का उल्लंघन करेगा।