HC: डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नहीं रोक सकती सरकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि वर्तमान सरकारी नियमों में नियुक्ति प्रधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि जनहित के नाम पर किसी सरकारी कर्मी को स्वैच्छिक सेवानि

Update: 2017-11-30 14:28 GMT
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लखनऊ:इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि वर्तमान सरकारी नियमों में नियुक्ति प्रधिकारी को यह अधिकार नहीं है कि जनहित के नाम पर किसी सरकारी कर्मी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने से रोक सके। उच्च न्यायालय का कहना है कि राज्य सरकार चिकित्सकों की वीआरएस पर रोक नहीं लगा सकती। वीआरएस चाहने वाले पांच डॉक्टरों द्वारा दायर अलग-अलग मुकदमों की एक साथ सुनवाई करते हुए जस्टिस देवेंद्र कुमार अरोरा तथा जस्टिस रजनीश कुमार की पीठ ने आदेश दिया कि राज्य सरकार को जनहित या डॉक्टरों की कमी के नाम पर उन्हें वीआरएस देने से मना करने का विधिक अधिकार नहीं है।

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इनमें से दो मुकदमों में अधिवक्ता नूतन ठाकुर के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि जिन तीन मामलों में डॉक्टरों की वीआरएस का प्रार्थना पत्र सरकार द्वारा अस्वीकृत किया गया है, उनमें वे 30 नवंबर से सेवानिवृत्त माने जाएंगे और जिन दो मामलों में अभी निर्णय लिया जाना शेष है, उनमें वे डॉक्टर 31 दिसंबर से सेवानिवृत्त माने जाएंगे, बशर्ते उनके खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही न हो रही हो। कोर्ट ने इन सभी मामलों में तीन माह में समस्त सेवा संबंधी लाभ भी देने के आदेश दिए।

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इसके साथ ही हाईकोर्ट ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा की हालत पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा,"सरकार को आम लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं तथा बेहतर सरकारी अस्पतालों की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में वास्तविक प्रयास करने चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि आखिर सरकारी डॉक्टर वीआरएस क्यों ले रहे हैं। सरकार को सोचना होगा कि जहां अन्य क्षेत्रों में सरकारी सेवा में आने की मारामारी है, वहीं डॉक्टर सरकारी सेवा में क्यों नहीं आ रहे हैं और आने पर वीआरएस क्यों मांग रहे हैं।"

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न्यायालय ने डॉक्टरों को उनकी योग्यता के काम की जगह प्रशासकीय कार्यो में नियुक्त किए जाने पर भी चिंता व्यक्त की और सरकार से इनकी कैडर व्यवस्था को बेहतर करने को कहा।

--आईएएनएस

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