HC ने KNIT और BIET के चयन समिति के अध्यक्षों की नियुक्ति की रद्द
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गुरुवार (13 अप्रैल) को सुल्तानपुर के कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (KNIT) और बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिग एंड टेक्नोलॉजी (BIET), झांसी के चयन समितियों के चेयरमैन पद पर रिटायर्ड प्रोफेसर इरशाद हुसैन और पूर्व डॉयरेक्टर आरसी यादव की नियुक्ति संबंधी आदेश को खारिज कर दिया है।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गुरुवार (13 अप्रैल) को सुल्तानपुर के कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (KNIT) और बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिग एंड टेक्नोलॉजी (BIET), झांसी के चयन समितियों के चेयरमैन पद पर रिटायर्ड प्रोफेसर इरशाद हुसैन और पूर्व डॉयरेक्टर आरसी यादव की नियुक्ति संबंधी आदेश को खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने नियुक्ति आदेशों को पारित करने वाले प्रमुख सचिव, तकनीकी शिक्षा के इस कार्य को क्षेत्राधिकार की सीमा लांघने वाला बताया। कोर्ट ने सरकार के इस कृत्य को दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण भी करार दिया।
यह आदेश जस्टिस एसएन शुक्ला और जस्टिस एसके सिंह (प्रथम) की खंडपीठ ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एकेटीयू), लखनऊ के कुलपति की ओर से दाखिल दो याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई के उपरांत पारित किया। सुनवायी के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसे बुधवार को सुनाया गया।
याचिकाओं में प्रमुख सचिव, तकनीकी शिक्षा के 23 सितंबर 2016 और 7 नवंबर 2016 के उन आदेशों को चुनौती दी गई थी। जिसमें विश्वविद्यालय के कुलपति के स्थान पर रिटायर्ड प्रोफेसर इरशाद हुसैन को केएनआईटी और पूर्व निर्देशक आरसी यादव को बीआईईटी के चयन समिति का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। दोनों ही चयन समितियों का कार्य अपने-अपने संस्थानों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर आदि पदों पर भर्ती करना है।
केएनआईटी से संबंधित याचिका में यह भी कहा गया कि जिस व्यक्ति को चयन समिति का चेयरमैन बनाया गया है, उसी को संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का भी चेयरमैन बना दिया गया है जो चयन समिति की अप्रूविंग अथॉरिटी है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि दोनों संस्थानों के बायलॉज और संबंधित रेग्युलेशंस में विश्वविद्यालय के पदेन कुलपति के ही चयन समिति के चेयरमैन होने की बात कही गई है।
वहीं राज्य सरकार की ओर से बचाव में कहा गया कि एकेटीयू यूपी टेक्निकल यूनिवर्सिटीज एक्ट- 2000 के तहत कार्य करती है। जिसके अनुसार ही राज्य सरकार ने अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, उस क्षेत्र के विशेषज्ञों को चयन समिति का चेयरमैन बनाया।
राज्य सरकार की ओर से अपने बचाव में यूनिवर्सिटीज एक्ट की धारा- 36ए का हवाला भी दिया गया जो पॉलिसी मैटर के सम्बंध में सरकार को अधिकार देता है।
अपने फैसले में कोर्ट ने सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि वैधानिक अधिकार को कार्यकारी निर्देशों के जरिए कम नहीं किया जा सकता और यह मामला पॉलिसी मैटर से संबंधित भी नहीं है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि उक्त दोनों मामलों में रेग्युलेशंस और बायलॉज का उल्लंघन किया गया है। प्रमुख सचिव ने उक्त आदेशों को पारित करते हुए अपने क्षेत्राधिकार की सीमा को लांघा है।
कोर्ट ने नियुक्ति सम्बंधी 23 सितंबर 2016 और 7 नवंबर 2016 के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि ये आदेश नियमानुसार नहीं हैं। लिहाजा इन्हें बनाए नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने उक्त प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण करार देते हुए कहा कि हमारे संविधान संस्थापकों ने कभी ऐसी कल्पना नहीं की होगी कि जिन लोगों से संवैधानिक मूल्यों का सख्ती से पालन करने और राष्ट्र को दिशा दिखाने की उम्मीद है, वे ही एक समय इस प्रणाली को इस हद तक बदनाम करेंगे कि कुलपति के स्थान पर रिटायर्ड प्रोफेसर को बैठा देंगे।
कोर्ट ने निर्णय में कहा कि यह उदाहरण हमें सिखाता है कि संवैधानिक अधिकारियों की नियुक्ति से पूर्व एक विस्तृत जांच उनके पिछले रिकॉर्ड के बारे में होनी चाहिए। बहुत आवश्यक है कि इस प्रकार की नियुक्तियों में पूर्ण पारदर्शिता बरती जाए।