HC ने कहा- मेडिकल स्टोरों और फार्मासिस्टों का हो डाटाबेस तैयार, सरकार 3 महीने में सौंपे रिपोर्ट
लखनऊ: हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से तीन माह के भीतर मेडिकल स्टोरों को डाटाबेस तैयार कर उन्हें चला रहे फार्मासिस्टों का रिकॉर्ड भी उनके आधार नंबर के साथ तैयार करने का आदेश दिया है।
कोर्ट इस बात पर काफी गंभीर थी कि एक फार्मासिस्ट कई-कई मेडिकल स्टोरों को चला रहें हैं, जबकि नियमतः उसे एक मेडिकल स्टोर पर मौजूद होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, कि सरकार सभी मेडिकल स्टोरों को समय देकर उनका रिकॉर्ड बनवाए ताकि यह देखा जा सके कि किसी फार्मासिस्ट के कितने मेडिकल स्टोर चला रहे हैं, या वह कितने मेडिकल स्टोरों को अपना लाइसेंस देकर उन्हें चलवा रहा है। कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य चिकित्सा एवं परिवार कल्याण सचिव प्रदेश के सभी ड्रग इंस्पेक्टरों को इस संबंध में उचित आदेश जारी करें।
यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल व जस्टिस वीरेंद्र कुमार द्वितीय की बेंच ने आशा सहित अन्य की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर पारित किया।
फार्मासिस्ट ऐसे करते हैं खेल!
याचियों की ओर से कहा गया, कि 'ड्रग्स एवं कास्मेटिक्स एक्ट 1094 एवं उसके तहत बने नियम के तहत हर मेडिकल स्टोर पर एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट होना चाहिए। जब तक दुकान खुली हो, उसे दुकान पर मौजूद होना चाहिए।' कहा गया कि कुछ फार्मासिस्ट अपने नाम से लाइसेंस लेकर दूसरों को दे देते हैं। इस प्रकार उनके नाम पर कई-कई मेडिकल स्टोर चलने लगते हैं जबकि वास्तव में वे फार्मासिस्ट किसी दुकान पर बैठते ही नहीं हैं। इसके एवज में मेडिकल स्टोर के वास्तविक मालिक से हर माह कुछ रकम लेते रहते हैं।
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जिस फार्मासिस्ट के नाम पर दुकान, वही बैठे
याचिका में कहा गया, कि इस प्रकार मेडिकल स्टोर पर अयोग्य और फर्जी लोग बैठते हैं। यही लोग मेडिकल स्टोर चलाते हैं। सरकार भी हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। याचिका में मांग की गई है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि मेडिकल स्टोर जिस फार्मासिस्ट के नाम पर हो, वह उस स्टोर पर स्वयं बैठे। एक फार्मासिस्ट के नाम पर दुकान का केवल एक लाइसेंस ही जारी हो।
सरकार ने ये कहा
राज्य सरकार की ओर से प्रति शपथ पत्र दायर कर कोर्ट को बताया गया कि 22 मार्च 2017 को एक बैठक में तय किया गया कि सारे फार्मासिस्ट का डाटा बेस तैयार किया जाएगा और फिर उसके अनुसार कार्यवाही की जाएगी।
कार्यवाही के बाद कोर्ट को भेजें रिपोर्ट
कोर्ट ने पाया कि सरकार की ओर से अभी तक कोई कार्यवाही शुरू नहीं की गई है। इसके बाद कोर्ट ने सख्त कदम उठाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि डाटाबेस तीन माह में तैयार कराया जाए और उसके अगले एक माह में मामले में कार्यवाही कर चार माह बाद कोर्ट को रिपोर्ट भेजें।