गायत्री प्रजापति को HC से राहत, दोबारा मंत्री बनाए जाने के खिलाफ दायर याचिका खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को मंत्री बनाना मुख्यमंत्री के विवेक पर निर्भर करता है। यह पूरी तरह मुख्यमंत्री के विशेषाधिकार का मामला है। जिसके सलाह पर राज्यपाल किसी को मंत्रिमंडल में शामिल करते हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीबी भोसले और न्यायमूर्ति राजन रॉय की बेंच ने यह आदेश नूतन ठाकुर की याचिका पर दिया।

Update:2016-10-22 21:17 IST

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को मंत्री बनाना मुख्यमंत्री के विवेक पर निर्भर करता है। यह पूरी तरह मुख्यमंत्री के विशेषाधिकार का मामला है। जिसके सलाह पर राज्यपाल किसी को मंत्रिमंडल में शामिल करते हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीबी भोसले और न्यायमूर्ति राजन रॉय की बेंच ने यह आदेश नूतन ठाकुर की याचिका पर दिया।

क्या कहा गया था याचिका में ?

सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने गायत्री प्रजापति को दोबारा मंत्री बनाए जाने के निर्णय पर खुद को प्रभावित व्यक्ति बताते हुए यह याचिका दाखिल की थी। याचिका में गायत्री प्रजापति को दोबारा मंत्रिपरिषद में शामिल किए जाने के निर्णय को रद् किए जाने की मांग की गई थी। याची पक्ष की ओर से दलील दी गई कि गायत्री प्रजापति खनन मंत्री थे इस दौरान उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। कोर्ट ने प्रदेश में अवैध खनन के सीबीआई जांच के आदेश भी दिए। जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। तर्क दिया गया कि चूंकि राज्यपाल का विश्वास खो देने के कारण उन्हें मंत्री पद से हटाया गया। इसलिए बिना तर्कसंगत कारण के उन्हें पुनः मंत्रिपरिषद में शामिल करना संविधान की भावना के खिलाफ है।

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कोर्ट ने दिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला

कोर्ट ने अपने फैसले में मनोज नरुला मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को मंत्री बनाना मुख्यमंत्री के विवेक पर निर्भर करता है। गंभीर और जघन्य अपराध में आरोपी अथवा भ्रष्टाचार के आरोपी को मंत्री बनाने की सलाह राज्यपाल को देने के लिए मुख्यमंत्री को संवैधानिक रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने और क्या कहा ?

कोर्ट नें कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राष्ट्रपति और राज्यपाल को उपयुक्त सलाह दें और उन व्यक्तियों को मंत्री के तौर पर न चुनें जिस पर जघन्य अपराध के अथवा भ्रष्टाचार के आरोप हों। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट कर दिया कि याचिका को खारिज किए जाने को गायत्री प्रजापति के पक्ष में प्रमाण पत्र न समझा जाए और न ही इसे याची के खिलाफ माना जाए। इस आदेश का किसी जांच और मुकदमों की सुनवाई आदि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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