हाईकोर्ट ने कहा- लड़कियों के रहने लायक नहीं हैं UP के नारी निकेतन

Update:2016-07-18 20:57 IST

लखनऊ: हाई कोर्ट की लखनउ बेंच ने कहा है कि यूपी में किसी भी नारी निकेतन में लड़कियों के रहने के लिए स्थितियां आदर्श नहीं हैं। लिहाजा किसी लड़की को नारी निकेतनों में रहने के लिए तभी भेजा जाए जब अन्य कोई विकल्प न बचा हो।

इस टिप्पणी के साथ जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस रविंद्र नाथ मिश्रा की डबल बेंच ने गोंडा के नारी निकेतन में बंद एक लड़की को तत्काल आजाद करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने नारी निकेतन की सुपरिन्टिडेंट को आदेश दिया है कि लड़की को अपनी मर्जी से कहीं भी आने जाने के लिए स्वंतत्र कर दिया जाए।

क्या है मामला?

सुमन (बदला हुआ नाम) गोंडा में नारी निकेतन में बंद है। उसकी ओर से कथित सास ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा 21 मई 2016 को पारित उस आदेश को चुनौती दी थी जिसके अनुपालन मे सुमन को नारी निकेतन भेज दिया गया था।

न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में कलमबंद बयान में सुमन ने कहा कि वह 19 साल की है। उसने कहा कि उसके माता-पिता ने राहुल (बदला हुआ नाम) के साथ उसकी शादी कर दी थी, लेकिन बाद में उसे उसके पति के साथ भेजने के एवज में पति से दस लाख रूपए की मांग कर रहे थे।

इंकार करने पर उसके मां-बाप ने उसके पति के खिलाफ उसके किडनैपिंग और रेप की फर्जी रिपोर्ट लिखा दी। सुमन ने कहा कि वह 9वीं क्लास पास है। उसके मां-बाप ने स्कूल के कागजों में उसकी जन्मतिथि गलत लिखा दी थी जिसके चलते सब उसे नाबालिग मान रहे हैं जबकि वह 19 साल की बालिग है और अपना भला-बुरा समझ सकती है।

कोर्ट ने कहा

सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पाया कि मेडिकल रिपेार्ट के अनुसार सुमन की उम्र 18 साल है। बातचीत से स्पष्ट है कि वह अपना भला बुरा समझ सकती है। साथ ही वह अपने मां-बाप के साथ नही जाना चाहती बल्कि अपने पति राहुल के साथ जाना और रहना चाहती है। कोर्ट ने कहा कि परिस्थितियों के मद्देनजर स्पष्ट है कि नारी निकेतन भेजकर सुमन को उसकी आजादी से महरूम किया गया है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सबको आजादी से रहने का हक है।

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