हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में अपील की सुनवाई को लेकर मांगी वकीलों की राय
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार व प्राइवेट वकीलों से राय मांगते हुए पूछा है कि वे बताएं कि अनुसूचित जाति व जनजाति (क्रूरता निवारण अधिनियम) 1989 के तहत स्पेशल कोर्ट द्वारा जमानत अर्जियों को खारिज या स्वीकार करने के खिलाफ हाईकोर्ट में दाखिल अपील की सुनवाई में निचली अदालत के रिकार्ड की जरूरत होनी चाहिए कि नहीं।
कोर्ट ने कहा है कि सामान्यतः अपीलें तय करने में हाईकोर्ट निचली अदालतों का रिकार्ड तलब कर निर्णय करती है। परन्तु इस कानून के तहत अपीलें जमानतों के खारिजा या स्वीकार करने के खिलाफ हैं ऐसे में रिकार्ड तलब होने से निचली अदालतों में लंबित केस ट्रायल पर प्रभाव पड़ सकता है।
यह आदेश न्यायमूर्ति जे.जे.मुनीर ने अनुसूचित जाति व जनजाति (क्रूरता निवारण अधिनियम) 1989 की धारा 14 -ए (2) के तहत दाखिल सचिन ठाकुर की अपील पर दिया है।
यह अपील एडिशनल सेशन जज/स्पेशल जज (पाक्सो) द्वारा अपीलार्थी की जमानत खारिज किये जाने के खिलाफ दाखिल की गयी है। हाईकोर्ट ने प्रदेश के अपर महाधिवक्ता विनोद कांत व फौजदारी के सीनियर वकील सतीश त्रिवेदी से अनुरोध किया है कि वे इस मामले के निस्तारण के लिए कोर्ट को सहयोग करें। दोनों वकीलों को कोर्ट ने 18 जनवरी 18 को कोर्ट में उपस्थित रहकर बहस करने को कहा है।
कोर्ट ने दोनों वकीलों से कहा है कि वह बताएं कि क्या अनुसूचित जाति व जनजाति (क्रूरता निवारण अधिनियम) 1989 के तहत दाखिल अपील की सुनवाई बिना रिकार्ड सम्मन किए हो सकती है कि नहीं। अथवा यदि रिकार्ड सम्मन करने की आवश्यकता पड़े तो क्या जमानत से संबंधित निचली अदालत के रिकार्ड तलब कर अपील का निस्तारण किया जा सकता है कि नहीं।
चूंकि मामला पूरे प्रदेश से संबंधित है इस कारण कोर्ट ने उक्त दोनों सीनियर वकीलों से इस मुद्दे पर सहयोग मांगा है। अपीलार्थी के वकील का कहना है कि अपील का निस्तारण बिना रिकार्ड तलब नहीं हो सकता, जबकि सरकारी वकील का तर्क है कि निचली कोर्ट का रिकार्ड तलब करने से नीचे की अदालत में चल रहे ट्रायल पर प्रभाव पड़ेगा।