अधिग्रहित भूमि के मुआवजे को लेकर हाईकोर्ट ने कही ये बात
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ताज नगरी फेज 2 रिहायशी कालोनी की भूमि का मुआवजा फेज 1 व्यावसायिक कालोनी से तुलना कर देने को सही नही माना है और कहा कि सटी हुई जमीन के मार्केट रेट के आधार पर ही मुआवजा तय किया जा सकता है।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ताज नगरी फेज 2 रिहायशी कालोनी की भूमि का मुआवजा फेज 1 व्यावसायिक कालोनी से तुलना कर देने को सही नही माना है और कहा कि सटी हुई जमीन के मार्केट रेट के आधार पर ही मुआवजा तय किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि धारा 23 के तहत मुआवजे के निर्धारण के लिए जमीन का मार्केट रेट अधिसूचना के गजट में प्रकाशन की तिथि के आधार पर तय किया जायेगा। नोटिस जारी होने की तिथि का मुआवजा निर्धारण दर तय करने में कोई महत्व नहीं है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी. केशरवानी ने आगरा विकास प्राधिकरण की तरफ से दाखिल 19 अपीलों को स्वीकार करते हुए दिया है। भूमि मुआवजे का रेट ज्यादा लगाने के जिला जज के आदेश को प्राधिकरण ने चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा है कि मुआवजा राशि गणितीय आधार पर तय करना जरूरी नहीं है। कई नकारात्मक व सकारात्मक पहलुओं पर विचार करके ही राशि तय की जायेगी। आसपास की जमीन के उच्चतम दर को मुआवजा राशि तय करने में विचार में रखा जायेगा।
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कोर्ट ने कहा कि मुआवजा राशि निर्धारण के समय कलेक्टर को जमीन की भौगोलिक स्थिति,जमीन की तात्कालिक उपयोगिता, भविष्य की उपयोगिता में विकास एवं आसपास की जमीनों का बाजारी मूल्य को देखते हुए निर्णय लेना होगा। इसमें जमीन के विकास की लागत भी जोड़ी जायेगी। कोर्ट ने कहा व्यवसायिक प्लाट की दर रिहायशी प्लाटों के लिए तय मानक नहीं बन सकती। विकसित प्लाटों की तुलना अविकसित प्लाटों से नहीं की जा सकती। जमीन के एक हिस्से का बैनामा मूल्य निर्धारण का उदाहरण हो सकता है।
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अधीनस्थ कोर्ट द्वारा बैनामे के बजाय लीज डीड के आधार पर मुआवजा तय करने के आदेश को हाई कोर्ट ने सही नहीं माना और पुनर्विचार कर नियमानुसार निर्णय लेने के निर्देश के साथ प्रकरण जिला न्यायाधीश को वापस कर दिया है। कोर्ट ने 6 माह में मामले का निस्तारण करने का भी निर्देश दिया है। मालूम हो कि आगरा के बसई मुस्तकिल, टोरा, चमरोली व लकवली गांव की 734.50 एकड़ जमीन ताज नगरी फेज 2 योजना के लिए 4 अप्रैल 1989 को अधिगृहीत की गयी जिसके मुआवजे के निर्धारण को लेकर अपीलें दाखिल की गयी थी।