'स्टांप पेपर पर एकतरफा घोषणा से विवाह खत्म नहीं हो सकता', तलाक केस में इलाहाबाद HC ने कही बड़ी बात

Allahabad HC News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि, दो हिंदुओं के बीच विवाह को केवल हिंदू विवाह अधिनियम द्वारा मान्य तरीकों से ही भंग किया जा सकता है।

Written By :  aman
Update: 2024-03-11 10:43 GMT

प्रतीकात्मक चित्र (Social Media)  

Allahabad HC News : इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HC) ने माना कि, दो हिंदुओं के बीच विवाह को केवल हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) द्वारा मान्य तरीकों से ही भंग किया जा सकता है। इसे स्टांप पेपर पर एकतरफा घोषणा कर खत्म नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी (Justice Subhash Vidyarthi) की बेंच ने एक पति द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका (Criminal Review Petition) पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

याचिका में फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। साथ ही, उसे CRPC की धारा- 125 के तहत दायर याचिका में प्रतिवादी पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2200 रुपए प्रतिमाह भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

14 साल तक पत्नी का भरण-पोषण कैसे हुआ?

दरअसल, परिवार न्यायालय (Family Court) के आदेश की इस आधार पर आलोचना की गई थी कि, पत्नी द्वारा सीआरपीसी की धारा- 125 के तहत आवेदन दाखिल करने से करीब 14 साल पहले, दोनों पक्षों ने इलाके के रीति-रिवाजों का पालन करते हुए आपसी सहमति से तलाक ले लिया था। साथ ही, ये तर्क भी दिया गया था कि, उनकी पत्नी ने 14 साल की इस समय अवधि के दौरान अपने भरण-पोषण के स्रोत का खुलासा नहीं किया।

10 रुपए के स्टांप पेपर पर एकतरफा...

आपसी सहमति से हुए 'कथित तलाक समझौते' की प्रति पर भी अदालत ने गौर किया। जिसके बाद उच्च न्यायालय ने कहा कि, इसे विपरीत पक्ष यानी पत्नी द्वारा 10 रुपए के स्टांप पेपर पर एकतरफा लिखा गया था। कई अन्य व्यक्तियों ने विपरीत पक्ष द्वारा लिखित तथा हस्ताक्षरित इस एकतरफा घोषणा पर अपने हस्ताक्षर किए हैं।

किस आधार पर तय करें गुजारा भत्ता?

कोर्ट ने आगे कहा, यह देखते हुए कि एक हिंदू विवाह को 10 रुपए के स्टांप पेपर पर निष्पादित एकतरफा घोषणा द्वारा भंग नहीं किया जा सकता है, चूंकि यह हिंदू विवाह द्वारा कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विघटन का एक तरीका नहीं है। उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पार्टियों के बीच विवाह कानून के तहत भंग नहीं हुआ था। वह संशोधनवादी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी बनी रही। सीआरपीसी (Code of Criminal Procedure) की धारा-125 को लागू करने में 14 साल की देरी की याचिका के संबंध में, अदालत ने कहा, 'फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यह प्रावधान गुजारा भत्ता मांगने के लिए किसी विशेष अवधि की सीमा निर्धारित नहीं करता है।'

हाईकोर्ट ने ये भी कहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगे कहा, 'वर्तमान मामले में, चूंकि पत्नी ने शुरुआत में 2011 में भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर किया था। लेकिन, उसके ठीक बाद उसके भाई के निधन से मामले को आगे बढ़ाने की उसकी क्षमता में बाधा पैदा हुई। इससे उसे काफी दुख हुआ। वह कानूनी कार्यवाही जारी नहीं रख पाईं। पत्नी के अपने पति (संशोधनवादी) से अलग रहने के संबंध में न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि चूंकि पति किसी अन्य महिला के साथ रह रहा था, वह भी विपरीत पक्ष-पत्नी के साथ विवाह विच्छेद (Divorce) के बिना, जिसने पत्नी को पुनर्विचार याचिकाकर्ता से अलग रहने का पर्याप्त कारण दिया।'

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