Lucknow Holi 2023: नवाबों की नगरी लखनऊ में गंगा- जमुनी तहज़ीब के संग होली के रंग

Lucknow Holi 2023: अगर अवध की होली की बात करें तो नवाब शुजाउद्दौला ने होली की इस परंपरा को बहुत समृद्ध किया।

Report :  Vertika Sonakia
Update: 2023-03-06 10:17 GMT

सांकेतिक तस्वीर (फोटोे: सोशल मीडिया)

Lucknow Holi 2023: होली का इतिहास होलिका और प्रहलाद के पौराणिक आख्यान से शुरू होता है। होली जिसमें प्रहलाद बच जाते है और होलिका की मृत्यु हो जाती है। इस आख्यान से यह सन्देश मिलता है की सच्चाई का बाल बाक़ा नहीं हो सकता। यहीं से शुरू होती है होली की परम्परा जिसे प्रतिवर्ष मनाये जाने का रिवाज़ है। धीरे-धीरे इस पौराणिक परिघटना का उत्सव धर्मी स्वरुप बनता गया जिसे मुस्लिम शासको, सूफ़ी कवियों और नवाबों ने और समृद्ध किया।

इससे पहले प्रसिद्ध सूफी कवी अमीर खुसरों कह चुके हैं।

“दैया री मोहे भिजोया री

आज रंग है ए माँ आज रंग है री।”

नज़ीर अखबारबादी लिखते हैं

“जब फ़ागुन रंग झमकते हो तो देख बयार होली की

परियो के रंग दमकते हो

ख़ुम शीशे ज़ाम छलकते हो।”

अगर अवध की होली की बात करें तो नवाब शुजाउद्दौला ने होली की इस परंपरा को बहुत समृद्ध किया। नवाबों के दौर में जब मोहर्रम की वजह से हिंदू होली नहीं मना पा रहे थे तब नवाब की पहल पर सभी ने मिलकर होली मनाई और इस तरह से हिंदू- मुस्लिम इतिहास की एक बेहद खूबसूरत दाबीर लिखी गयी। इसी परम्परा को आगे वाजिद अली शाह ने बढ़ावा दिया। नवाबों द्वारा अपने अनूठेपन के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध इस तहजीब का जादू कुछ ऐसा है की क्या गाँव, क्या शहर, क्या चौराहे, गली मोहल्ले और बिना जात पात की भेदभाव के रंगों से पुते सभी के चेहरे होते हैं।

होली पर जुलूस की परम्परा

पिछले 70 वर्षो से लखनऊ में एक परंपरा चली आ रही है जो गंगा जमुनी तहज़ीब की एक सटीक मिसाल पेश करती है। होली के दिन लखनऊ के चौक मोहल्ले से लेकर अकबरी गेट तक एक जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में हिंदू मुस्लिम सभी मौजूद रहते हैं। मुस्लिम भाई होलियारों को माला पहनाकर उनका स्वागत करते हैं। फिर उन्हें मिठाई खिलाकर हाथों से रंग लगाते हैं। इसमें ढोल,नगाड़े, हाथी, घोड़े, ऊंट सभी शामिल होते हैं जो एक बहुत ही अद्भुत नजारा है।

इसी तरह अगर इतिहास के आईने से देखें तो होली मात्र औपचारिक आयोजन वाला त्यौहार नहीं है बल्कि यह भारतीय समाज की आंशिक बुनावट को बहुत खूबसूरती के साथ व्यक्त करने वाला उत्सव है जिसे परंपरागत रूप से मुस्लिम शासकों सूफ़ी संतों कवियों और शायरों ने अपने प्रेम और उदारवादी सोच से लगातार समृद्ध किया है। सभी लखनऊवासी इस बात की पुष्टि करते हैं कि सालों से चली आ रही इस परंपरा में आज तक कोई विवाद देखने को नहीं मिला।

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