Holi Kab Hai: होली की तिथि को लेकर काशी के पंडित एकमत नहीं,सात और आठ मार्च को लेकर फंसा हुआ है पेंच
Holi Kab Hai: कोई 7 मार्च को होली मनाने की बात कह रहा है तो कोई 8 मार्च को। ऐसे में काशी के लोग भी अभी तक पंडितों के किसी एक तिथि पर एकमत होने का इंतजार कर रहे हैं।
Holi Kab Hai: इस बार होलिका दहन और होली की तिथि को लेकर काशी के विद्वानों में मतभेद पैदा हो गया है। होलिका दहन के समय को लेकर भी काशी के पंडितों की अलग-अलग राय है। पंडितों की ओर से अपने-अपने दावे को लेकर मजबूत दलीलें दी जा रही हैं।
इस कारण होली के त्योहार को लेकर बड़ा पेंच फंसा हुआ है। कोई 7 मार्च को होली मनाने की बात कह रहा है तो कोई 8 मार्च को। ऐसे में काशी के लोग भी अभी तक पंडितों के किसी एक तिथि पर एकमत होने का इंतजार कर रहे हैं। काशी में इन दिनों घर-घर चर्चा का यह महत्वपूर्ण मुद्दा है कि आखिरकार होली 7 मार्च को मनाई जाएगी या 8 मार्च को।
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के अध्यक्ष अशोक द्विवेदी
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व अध्यक्ष अशोक द्विवेदी का कहना है कि देशाचार, कुलाचार में 7 को होलिका दहन ग्राह्य है। ऐसे में काशी में भी 7 को होलिका दहन और 8 मार्च को होली मनाई जा सकती है। इससे पहले कुछ पंडितों की ओर से 7 मार्च को होली मनाने की बात कही गई थी।
आचार्य द्विवेदी ने कहा कि 7 मार्च को पूर्णिमा का मान शाम को 5:40 बजे तक का है जबकि सूर्यास्त 5:49 पर होगा। उन्होंने कहा कि 7 की शाम को भद्रा और पूर्णिमा के अंत के साथ सूर्यास्त भी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि कर्मकांड शास्त्रों के अनुसार ऐसे में 49 घटी और 38 पल का सूर्यास्त मिल रहा है। ऐसे में काशी के लोग 7 मार्च को गोधूलि बेला में होलिका दहन करने के बाद 8 मार्च को उल्लास के साथ होली का त्योहार मना सकते हैं।
आचार्य द्विवेदी ने कहा कि धर्मसिंधु के अनुसार देशाचारं, कुलाचारं मनसापि न लंघ्येत। इसका तात्पर्य है कि देशाचार और कुलाचार का मन से भी उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। 7 को मार्च को शाम हुताशिनी की जन्म जयंती और भगवान चैतन्य प्रभु का जन्म उत्सव भी मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि भद्रा में होलिका दहन का पूरी तरह निषेध है और भद्रा ब्रह्म मुहूर्त में समाप्त हो रही है। ऐसे में भद्रा के समापन के बाद गोधूलि बेला में होलिका दहन उचित होगा।
ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ शास्त्री
दूसरी ओर ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री का कहना है कि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 6 मार्च को शाम को 4:18 बजे से लगेगी जो कि 7 मार्च को शाम को 5:30 बजे समाप्त होगी। ऐसे में प्रदोष काल व्यापनी पूर्णिमा में होलिका दहन 6 मार्च को ही किया जाएगा। पूर्णिमा के साथ भद्रा होने के कारण भद्रा के पुच्छ काल में होलिका दहन का मुहूर्त रात 12:23 बजे से 1:35 बजे तक मिलेगा। पूर्णिमा 7 मार्च को समाप्त होगी और चैत्र कृष्ण प्रतिपदा शाम को शुरू हो जाएगी, लेकिन होली उदया तिथि में मनाने का शास्त्रीय विधान है।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो.रामनारायण द्विवेदी
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो.रामनारायण द्विवेदी का कहना है कि होली के पूर्व होलिका दहन का विधान फागुन पूर्णिमा को होता है। उन्होंने कहा कि नियमानुसार फागुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा जिस दिन प्रदोष काल में प्राप्त हो उस रात्रि में भद्रा दोष से रहित काल में होलिका दहन का विधान है। भद्रा का मान पूर्ण रात्रि पर्यंत हो तो भद्रा के पुच्छ काल में होलिका का दहन किया जाता है। उसके बाद उदय काल में प्रतिपदा तिथि मिलने पर होली मनाई जाती है। लेकिन काशी में होली मनाने की विशिष्ट परंपरा है। इस कारण काशी में होली 7 मार्च को मनाई जाएगी।
पंडित दीपक मालवीय
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य पंडित दीपक मालवीय का कहना है कि 6 मार्च को होलिका दहन पर भद्रा निशीथ के बाद समाप्त हो रही हो तो भद्रा को छोड़कर पहले ही दिन होलिका दहन कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि निर्णय सिंधु के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा पर दोनों ही दिन प्रदोष न हो तो पहले दिन भद्रा पुच्छ में होलिका दहन करना चाहिए। इसके अनुसार 6 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा। काशी में होलिका दहन के दूसरे दिन शाम को चौसठ्ठी देवी की यात्रा की परंपरा रही है। लिहाजा होली 7 मार्च को मनाई जाएगी।
प्रोफेसर विनय पांडेय
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार पूर्णिमा तिथि छह मार्च की शाम 3.56 बजे लग रही है। पूर्णिमा तिथि सात मार्च की शाम 5.39 बजे तक रहेगी। प्रदोष काल व्यापिनी पूर्णिमा छह को मिल रही है और सात को सूर्यास्त के पूर्व ही पूर्णिमा की समाप्ति हो जा रही है। इसलिए छह मार्च की शाम प्रदोष काल से संपर्क होने के कारण इसी रात होलिका दहन किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि पूर्णिमा तिथि आरंभ होने के साथ भद्रा भी आरंभ हो जाता है। इस बार छह मार्च की शाम 3.56 से लग रहा भद्रा सात की भोर 4.48 बजे तक रहेगा। इस स्थिति में छह-सात मार्च की मध्य रात्रि में 12.23 से 1.35 के बीच होलिका दहन श्रेयस्कर होगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी
ज्योतिषाचार्य पं.ऋषि द्विवेदी इस मुद्दे पर अपनी राय जताते हुए कहा है कि काशी में होली परंपरा में प्रतिपदा तिथि की अपेक्षा नहीं रहती। यहां प्रतिपदा न मिलने पर भी जिस रात होलिका जलाई जाती है, उसके अगले दिन होली खेली जाता है। यह स्थिति 10–15 वर्षों में पैदा होती रही है। इस कारण सिर्फ काशी क्षेत्र में होली सात मार्च को अपनी परंपरा अनुसार मनाई जाएगी। धर्मशास्त्रीय विधान अनुसार देश के अन्य भागों में आठ मार्च को होली मनाना उचित है।