मथुरा के बाद कानपुर की होली, जाने कैसे मनाई जाती है ?

दुनिया के कई देशों में अपने देश का होली का त्यौहार अलग अलग ढंग से मनाया जाता है। यूपी में मथुरा में होली का त्यौहार एक सप्ताह पहले लठ्ठमार से शुरू हो जाता तो इससे भी अलग यहां कानपुर में होली अपने आप में अनूठी होली होती है जो सात दिन लगतार खेली जाती है।

Update: 2020-03-06 09:10 GMT
मथुरा के बाद कानपुर की होली, जाने कैसे मनाई जाती है ?

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: दुनिया के कई देशों में अपने देश का होली का त्यौहार अलग अलग ढंग से मनाया जाता है। यूपी में मथुरा में होली का त्यौहार एक सप्ताह पहले लठ्ठमार से शुरू हो जाता तो इससे भी अलग यहां कानपुर में होली अपने आप में अनूठी होली होती है जो सात दिन लगतार खेली जाती है। इसे न तो अग्रेंज बंद करा सके और न ही आजाद भारत की सरकारें बंद करा सकी। आज भी कानपुर का पूरा बाजार पांच से सात दिन तक लगातार बंद रहता है। पूर्व में कई सरकारों ने इसे बंद कराना चाहा पर ये परम्परा खत्म नहीं हो सकी।

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होली का त्यौहार इतने ज्यादा दिनों तक मनाने की पूीछे एक कहानी है। देश की आजादी के पहले 1942 में अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन से शुरू हुआ। लगभग एक सप्ताह तक होली के त्यौहार को मनाने की की एक दिलचस्प कहानी है।

बुजुर्ग बतातें हैं कि आजादी के आदंोलन के दौरान अग्रेंजो ने होली के दिन कुछ भारतीयों हमीद खान, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, गुलाब चंद्र सेठ, विश्वनाथ टंडन, गिरिधर शर्मा सहित एक दर्जन से अधिक लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

इसके बाद जब उनके साथियों ने आंदोलन किया तो अंग्रेजों को उनके बंदी साथियों को छोडना पड़ा। साथियों ने तय किया था जब जेल से रिहाई नहीं होगी वह अपने चेहरे का रंग नहीं छुडाएगें। संयोग से जिस दिन इन बंदियों को जेल से छोड़ा गया उस दिन अनुराधा नक्षत्र था। तभी से होलिका दहन से लेकर किसी भी दिन पड़ने वाले ‘अनुराधा नक्षत्र’ की तिथि तक कानपुर में होली खेली जाती है।

अनुराधा नक्षत्र के दिन कानपुर का रंग कुछ और ही दिखाई देता है। साथ ही ठेले पर रंग का जुलूस निकाला जाता है। यह हटिया बाजार से शुरू होकर नयागंज, बिरहाना रोड, चैक सर्राफा सहित कानपुर के आधा दर्जन पुराने मोहल्ले से गुजरता है। वहा वहां महिलाये व बच्चे छतो से रंग और पानी उन होरियारो पर डालते है।

हांलाकि अब तो पहले से कुछ बदलाव आया हैां अब पूरे सात दिन रंग नहीं चलता है अब केवल दो दि नही रंग चलता है पर बाजार पूरे पांच से सात दिन तक बंद रहता हे। अंतिम दिन देर शाम तक होली खेली जाती हे।

शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। जहां शहर भर के लोग इकट्ठा होते हैं और एक-दूसरे से गले मिलते हैं। इस मेले में शासन, प्रशासन, व्यापारी और प्रबुद्ध वर्ग के साथ सामाजिक संगठनों के कैम्प लगते हें।

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यहां पर अमीर गरीब गंगा किनारे सब एकत्र होकर एक दूसरे से गले मिलते हैं। इसके अलावा एक दूसरे के घर जाकर गले मिलते हैं। इससे प्रेम व्यवहार और सामाजिक तौर पर एक दूसरे को जानने का भी अवसर मिलता है।

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