पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: हाथी कभी राजा, रजवाड़ों की पहचान होते थे। अब राजा रजवाड़े तो रहे नहीं, ऐसे में अब ये हाथी विधायकों और रसूखदारों के बंगलों-कोठियों की शोभा बढ़ा रहे हैं। हाथी भले रसूख की गवाही करते हों लेकिन प्रभावशाली लोगों का यह शौक कईयों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। खासकर, इन्हें नियंत्रित करने वाले महावत के लिए। पिछले दिनों में बिगड़ैल हाथियों ने अपने महावत को ही पटक-पटक कर मार डाला। इसके बाद भी वन विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। रसूखदारों के दबाव में वन विभाग औपचारिकता का मुकदमा दर्ज कर चुपचात बैठा है।
पिछली 13 जनवरी को गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक विपिन सिंह के पालतू हाथी ने महावत को ही पटक-पटक कर मार डाला। विधायक ने इस हाथी को वन विभाग के अनुमति के बगैर रखा हुआ था। बिगड़ैल हाथी द्वारा महावत को पटक पटक मार डालने के बाद भी वन विभाग विधायक के रसूख को देखते हुए चुप्पी साधे हुए है।
गोरखपुर के झंगहा क्षेत्र के सिंहपुर सहसराव में पिछले दिनों घटना तब हुई जब महावत हाथी के लिए पीपल के पेड़ से चारा काट रहा था। महावत जैसे ही पीछे की तरफ उतरा तभी हाथी ने सूंड़ में लपेटकर उठा कर उसे पटक दिया। शब्बीर पिछले एक दशक से महावत की जिम्मेदारी निभा रहा था। हाथी की देखभाल के लिए उसका चचेरा भाई असीम लगा रहता था। ये दोनों हाथी को लेकर देवरिया के लालपुर भटवलिया में आयोजित यज्ञ से लौट रहे थे। रास्ते में ये घटना हो गई। महावत की मौत की सूचना पर विधायक विपिन सिंह मौके पर पहुंचे। बताया जाता है कि हाथी के पास पहुंच कर विधायक ने हाथी का नाम लेकर कहा, ‘का हो गंगा प्रसाद, ई का भइल ह। अब शांति बनावा।’
वैसे, हाथी पालने का शौक पहली बार जानलेवा साबित नहीं हुआ है। इसके पहले भी गोरखपुर-बस्ती मंडल में आधा दर्जन लोगों की मौत हाथी के बौराने से हो चुकी है। साल भर पहले गोरखपुर के धुरियापार निवासी जुगनू शाही के हाथी ने महावत और उसकी पत्नी पर हमला किया था। बौराए हाथी पर काबू पाने के लिए महावत और उसकी पत्नी ने कोशिश की, लेकिन उसने दोनों को पटक दिया। इससे महावत नईम घायल हो गया और उसकी पत्नी सलमा की मौत हो गई। गुस्साए लोगों ने हाथी को बाजार से बंधे की तरफ खदेड़ा। भागते समय हाथी हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गया जिससे उसकी भी मौत हो गई। महावत नईम हाथी की देखभाल दो साल से कर रहा था।
नईम बताते हैं कि हाथी की मानसिक स्थिति ठीक नही थी। समय-समय पर वह बेकाबू हो जाता था। इसके बावजूद उसे यज्ञ या अन्य कार्यक्रमों में भेजा जाता था। मजबूरी की नौकरी में पत्नी की जान चली गई। इसी तरह कुशीनगर के रामकोला में पांच साल पहले बिदके हाथियों ने एक महावत को घायल कर दिया था। हाथी ने बस्ती में भी उत्पात मचाया। मौके पर पुलिस पहुंची तो किसी तरह महावत को अस्पताल पहुंचाया गया। दोनों हाथी एक शादी समारोह से लौट रहे थे। लोगों ने बताया कि शादी में पटाखों की आवाज से हाथी विचलित थे।
प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री जितेन्द्र कुमार जायसवाल उर्फ पप्पू भईया का हाथी बीते 2 दशक में दो जानें ले चुका है। पिछले वर्ष गोरखपुर में शाहपुर के पादरी बाजार स्थित पूर्व राज्यमंत्री के फार्म हाउस में हाथी ने महावत की पटक-पटक कर जान ले ली थी। पूर्व मंत्री ने फार्म हाउस पर दो हाथी और एक हथिनी पाल रखी है। पिछले दिनों महावत रफीक उर्फ नाटे जैसे ही हाथी को चारा डालने पहुंचा उसने सूड़ में लपेट कर उसे जमीन पर पटक दिया और शरीर में दांत धंसा दिया। हाथी के हमले में महावत नाटे की मौके पर ही मौत हो गई। बीस वर्ष पूर्व भी पूर्व मंत्री के एक अन्य हाथी ने रफीक के भाई और पादरी बाजार क्षेत्र के एक व्यक्ति को पटक कर मार डाला था।
हाथी पालने की दलील
हाथी पालने वाले रसूखदारों की दलील भी गजब है। भटहट निवासी जय प्रकाश सिंह कहते हैं कि 1960 से घर में दो-दो हाथी पाले जा रहे हैं। कभी शासन से हाथी पालने की अनुमति नहीं लेनी पड़ी। बीते दिसंबर माह में पता चला कि अनुमति आवश्यक है। अनुमति के लिए आवेदन किया है। हाथी पूजा-पाठ की दृष्टि से रखा है। अनुमति के लिए जिला स्तर पर सक्षम अधिकारी को अधिकार दिया जाना चाहिए। वहीं गोरखपुर मंडल के मुख्य वन सरंक्षक का कहना है कि संसाधनों की दिक्कत के चलते बिना अनुमति पाले गए हाथियों को जब्त नहीं किया जाता है।
उन्हें समाज के संभ्रांत लोगों की निगरानी में पालकों के सुपुर्द कर दिया जाता है। बिना अनुमति हाथी पालने के मामले में आठ पालकों पर दर्ज मुकदमे की जांच के लिए जल्द ही किसी दूसरे अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। हाथी तस्करी से आया हो तो उसे जब्त किया जा सकता है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसी भी वन्यजीव को जीवित अथवा उसके अंग से बने कोई भी सामान अपने पास रखने के लिए या फिर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने या लाने के लिए मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक से अनुमति लेनी होती है। एक जिले से दूसरे जिले में हाथियों को ले जाने के लिए संबंधित जिले से डीएफओ से माइग्रेशन सर्टिफिकेट लेना पड़ता है। हाथी पालने की अनुमति मिलने के बाद हाथियों में माइक्रोचिप भी लगाई जाती है।
आठ रसूखदारों ने अवैध तरीके से रखे हैं हाथी
बिना वन विभाग के अनुमति के पाले गए हाथी अक्सर खतरा बनते हैं। जिले में आठ लोगों ने 3 नर और 6 मादा हाथी पाले हैं। इनमें से किसी ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 49 के अंतर्गत मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक से हाथी पालने की अनुमति नहीं ली है। इस पर विभाग ने इन लोगों पर दिसंबर 2018 में विभागीय कोर्ट में केस दर्ज किया था। मामले की जांच एसडीओ वीपी गुप्ता को सौंपी गई। जांच अभी पूरी भी नहीं हुई कि करीब दो माह पहले वीपी गुप्ता का तबादला हो गया। इससे जांच भी ठप पड़ गई। वन विभाग ने पिछले वर्ष आठ लोगों के खिलाफ बिना अनुमति हाथी पालने पर केस भी दर्ज किया था। वन विभाग के जिम्मेदारों के मुताबिक चिल्लूपार के पारसनाथ यादव, पानापार के रामनारायण शुक्ल, बांसगांव में रामजी यादव, परतावल के जय प्रकाश सिंह के यहां अवैध तरीके से हाथी पले हैं।
चंदरपुर के लक्ष्मी प्रसाद पटेल, बांसगांव में शिवाजी सिंह, सहजनवा में रानीडीह निवासी सुरेश चौबे और तिनकोनिया रेंज में पूर्व मंत्री जितेंद्र कुमार जायसवाल के यहां लंबे समय से हाथी पाले जा रहे हैं। वैसे तो विभाग को बिना अनुमति पाले गए हाथियों को जब्त करने का भी अधिकार है। लेकिन खानगी और रखरखाव पर भारी-भरकम खर्च के चलते विभाग हाथियों को उनके पालकों के ही सुपुर्द कर देता है। उप प्रभागीय वन अधिकारी अविनाश कुमार कहते हैं कि जल्द ही अनुसंधान अधिकारी की नियुक्त कर जांच पूरी की जाएगी। इस मामले में दोष सिद्ध होने पर जुर्माना और सजा दोनों का प्रावधान है।