मियां बीवी राजी....पर तंग कर रहा ब्यूरोक्रेसी! HC ने प्रमुख सचिव लाॅ को किया तलब
इलाहाबाद: प्रदेश में लालफीताशाही की सुस्त चाल और व्यर्थ के मुकदमेबाजी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। इस पर नकेल कसने के सुझावों के साथ प्रदेश के प्रमुख सचिव न्याय एवं विधि परामर्शी को 12 अक्टूबर को तलब किया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकान्त गुप्ता तथा न्यायमूर्ति शशिकान्त की खंडपीठ ने उ.प्र. राज्य की तरफ से दाखिल आपराधिक अपील पर सरकार की एक अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है।
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ये है मामला
मालूम हो, कि एक पारिवारिक विवाद में निचली अदालत ने आरोपी पति को बरी कर दिया था। आरोप साबित करने के लिए कोई गवाह नहीं मिला। बरी होने के बाद पति-पत्नी दोनों में सुलह हो गई। दोनों साथ जीवन जी रहे हैं। राज्य सरकार ने बिना तथ्यों की जानकारी लिए यह जानते हुए अपील दाखिल कर दी, कि सभी गवाह पक्षद्रोही हो चुके हैं। आरोपी को सजा दिलाने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है।
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सरकार को देना होगा एक लाख हर्जाना
कोर्ट ने बिना किसी साक्ष्य के अपील दाखिल करने के लिए सरकार को एक लाख रुपए हर्जाना लगाया। कहा, कि सरकार ऐसे बेकार के मुकदमे दाखिल न करे और भविष्य में सावधानी बरतें। ऐसा आदेश जारी करते हुए कोर्ट ने कहा कि इसी तरह के बहुत से मामले सरकार की तरफ से कोर्ट में आ रहे हैं।
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करें विवेक का इस्तेमाल
कोर्ट ने कहा, अधिकारी विवेक का इस्तेमाल किए बगैर अपील दाखिल कर रहे हैं जिससे न केवल कोर्ट का समय बर्बाद हो रहा है बल्कि अनावश्यक रूप से सरकारी धन का भी खर्च हो रहा है। अधिकारियों के बेकार के फैसलों से कोर्ट पर मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है जिसके चलते वादकारियों को त्वरित न्याय देने में अड़चने आ रही हैं। कोर्ट ने एक लाख रुपए हर्जाना लगाते हुए अपील खारिज कर दी थी। साथ ही अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए जांच करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने चार हफ्ते में एक लाख रुपए हर्जाना जमा करने का आदेश दिया।
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ऐसे आगे बढ़ा मामला
इस आदेश के खिलाफ सरकार ने अपील दाखिल करने का फैसला लिया। 6 सितम्बर 2016 को अपील खारिज हुई थी। 19 सितम्बर को सरकार को निर्णय की प्रति मिली। तय हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाए। 22 सितम्बर को अपील विभाग में फाइल पहुंची। 27 सितम्बर को एसएलपी दाखिल करने का आदेश दिया गया। फाइल सरकारी वकील को भेजी गयी। वकील ने 22 फरवरी 2017 को सरकार को फैसले पर पुनर्विचार करने की सलाह दी। सलाह को मानते हुए 7 मार्च 2017 को सरकार ने फैसला लिया कि अपील दाखिल नहीं की जायेगी और 14 मार्च को इस आशय का आदेश भी जारी हो गया। तय हुआ कि हर्जाना जमा होगा। 31मार्च को एक लाख रुपए हर्जाना जमा करने का आदेश जारी कर दिया गया।
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कोर्ट ने कहा, कि सरकार ने अपील दाखिल न करने का फैसला लेने में 6 माह का समय लगाया। इसके बाद हर्जाना जमा करने के लिए बैंक ड्राफ्ट तैयार होने में डेढ़ माह बीत गये। हर्जाना जमा करने में हुई देरी को माफ करने की अर्जी भी दाखिल नहीं की। देरी होने के कारण ड्राफ्ट जमा नहीं हो पाया। इस पर धीमी चाल में तेजी लाने के लिए कोर्ट को सुझावों के साथ प्रमुख सचिव न्याय को तलब किया है। अगली सुनवाई 12 अक्टूबर को होगी।