Deepika Narayan Bhardwaj: महिला जिसने पुरूषों के हक के लिए छोड़ दी अपनी नौकरी
International Men Day: पुरूषों के हक के लिए उन्होंने जो लड़ाई शुरू की थी, वो काफी आगे बढ़ चुकी है।
International Men Day: शनिवार को भारत के साथ-साथ दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस (International Men's Day) मनाया जा रहा है। श्रद्धा मर्डर केस और निधि गुप्ता मर्डर केस जैसे मामलों के बीच पुरूषों के अधिकार को लेकर शायद ही कोई अधिक बात करना चाहता है। लंबे समय से मर्दों और कुछ सामाजिक संगठनों की मांग रही है कि उन्हें भी घरेलू हिंसा से बचने के लिए कानून एक कवच मुहैया कराए लेकिन आज तक सरकारें और अदालत उनके इस मांग को लेकर उदासीन रही है। यहां तक की पुरूष भी इस मामले पर ज्यादा बात करने से कतराते हैं।
ऐसी स्थिति में आज से एक दशक पहले एक महिला ने उन शोषित और पीड़ित मर्दों की आवाज बनने का बीड़ा उठाया, जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए एकपक्षीय कानून का दमन झेल रहे हैं। इस महिला का नाम है दीपिका नारायण भारद्वाज। भारद्वाज आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। पुरूषों के हक के लिए उन्होंने जो लड़ाई शुरू की थी, वो काफी आगे बढ़ चुकी है। तो आइए एक नजर उनके इस कठिन लेकिन दिलचस्प सफर पर डालते हैं ।
इंफोसिस से करियर की शुरूआत
दीपिका नारायण भारद्वाज ने साल 2006 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद इंफोसिस में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम किया। इसके बाद उन्होंने अपना पेशा बदला और पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गईं। उन्होंने एक टीवी चैनल में बतौर एंकर काम भी किया। इसके बाद उनका झुकाव पुरूष अधिकारों की तरफ हुआ। दीपिका ने जॉब त्याग कर इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
दीपिका नारायण दहेज प्रताड़ना कानून (धारा 498A) के तहत फंसाए गए पुरूषों को कानूनी मदद मुहैया कराती हैं। उनका कहना है कि कुछ महिलाओं द्वारा इस कानून का बेहद दुरूपयोग किया जाता है। उन्होंने देश में जेंडर बायस्ड कानूनों पर काफी कुछ लिखा और बोला है।
कैसे आईं इस क्षेत्र में ?
जो लोग दीपिका नारायण भारद्वाज के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते और पहली बार उनके बारे में सुनते हैं तो उन्हें ये सुनकर एक अचरज होता है कि वो एक 'मेल राइट एक्टिविस्ट' हैं। महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों की भीड़ में एक महिला का पुरूष अधिकारों के लिए लड़ना बिल्कुल सामान्य नहीं है। दरअसल, दीपिका की भी जर्नी यूं ही शुरू नहीं हुई, उन्हें भी एक ऐसे मामले से दो – चार हो जाना पड़ता, जिसमें आमतौर पर पुरूषों की जिंदगी बर्बाद हो जाया करती हैं।
बात साल 2011 की है, दीपिका के एक रिश्तेदार की शादी टूटी थी और उसकी पत्नी ने पूरे परिवार के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज करा दिया था। उनके खिलाफ भी शिकायत दर्ज की गई थी। तब उनके परिवार ने बड़ी रकम देकर इस मामले से अपना पीछा छुड़ाया। मामला तो रफा-दफा हो गया लेकिन दीपिका भारद्वाज ने मन ही मन ठान लिया कि अब उनके जीवन का लक्ष्य इस कानून के दुरूपयोग के शिकार हुए पुरूषों को न्याय दिलाना है।
साल 2012 में शुरू की रिचर्स
इंजीनियरिंग छोडकर पत्रकारिता के पेशा में आने वाली दीपिका नारायण भारद्वाज ने जल्द ही सबकुछ छोड़कर अपने आप को इस फील्ड में झोंक दिया। उन्होंने दहेज प्रताड़ना कानून के तहत दर्ज मुकदमों पर रिसर्च करना शुरू किया। शोध में उन्होंने पाया कि अधिकतर मामले झूठे हैं। झूठे आरोपों के कई कारण कई परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो गए। कई मामलों में लड़के के मां-बाप ने समाज में बदनामी के डर से आत्महत्या तक कर ली।
साल 2016 में उन्होंने इसी मुद्दे पर 'Martyrs of Marriage' नाम की डाक्युमेंट्री फिल्म बनाई थी, जिसमें लड़की और उसके परिवार द्वारा दहेज प्रताड़ना कानून (धारा 498A) का दुरूपयोग दिखाया गया है। इस डाक्युमेंट्री फिल्म को काफी सराहा गया था।
निर्भया आंदोलन के दौरान झेलना पड़ा था विरोध
महिला होने के बावजूद पुरूषों के लिए जोर-शोर से आवाज उठाने वाली दीपिका नारायण भारद्वाज को काफी विरोध का सामना भी करना पड़ा था। साल 2012 में चर्चित निर्भया कांड के बाद संसद ने रेप को रोकने के लिए कठोर कानून बनाए, दीपिका ने इसका जमकर विरोध किया। उनका कहना है कि कई औरतों द्वारा इस कानून का दुरूपयोग किया जा रहा है, जिसके कारण पुरूषों की जिंदगी बर्बाद हो रही है। उनके इस कथन पर उन्हीं के बिरादरी के लोग हमलावर हो गए। कुछ महिला संगठनों ने दीपिका को महिला विरोधी तक करार दे दिया। हालांकि, तमाम आलोचनाओं के बावजूद दीपिका अपने लक्ष्य को हासिल करने में जुटी हुई हैं।
दीपिका की नई डाक्युमेंट्री – इंडियाज संस
इस साल दीपिका पुरूषों पर हो रहे अत्याचर पर एक और डाक्युमेंट्री लेकर आई हैं। अगस्त में आई इस डाक्युमेंट्री का नाम है – 'इंडियाज संस'। इसमें उन पुरूषों की कहानी बताई गई है, जिन्हें रेप के झूठे आरोपों के कारण अपना मान-सम्मान गंवाना पड़ा और लंबे समय तक जेल की दीवारों के पीछे रहना पड़ा। सालों केस लड़ने के बाद आखिरकार उन्होंने अपने ऊपर लगे दाग को विश्वसनीय सबूतों के बदौलत धोने में कामयाब रहे। इस जर्नी में उन्हें और उनके परिवार को बेइंतहां दर्द का सामना करना पड़ा।
दीपिका का कहना है कि मेरी फिल्म समाज को यह संदेश देती है कि एक और जहां वह अपनी बेटियों के प्रोटेक्शन के लिए इतनी कोशिश कर रही है, वहीं अपने देश के बेटों की खराब स्थिति को ध्यान में रखते हुए जागने का समय आ चुका है।