Jhansi News: जैविक खेती के लिए भरपूर पैसा पर किसान राजी नहीं

Jhansi News: विशेषज्ञों का मानना है कि जिन खेतों में विगत कई वर्षों से रसायनों पर आधारित खेती की जाती रही है उसकी भूमि का स्वास्थ्य बहुत क्षीण हो चुका होता है। इन हालातों में भूमि सुधार के लिए कम से कम पांच वर्ष का समय लग सकता है।

Report :  Gaurav kushwaha
Update:2024-05-29 11:45 IST

झांसी में जैविक खेती के लिए किसान राजी नहीं (न्यूजट्रैक)

Jhansi News: जैविक खेती के नाम पर इन दिनों सरकार द्वारा कृषि विभाग के माध्यम से किसानों से जैविक खेती कराई जा रही है। किसानों को बाकायदा ट्रेनिंग देकर, साज-सामान मुहैया कराया जा रहा है। साथ ही जैविक खेती करने के लिए पैसा भी दिया जा रहा है, बावजूद इसके किसानों की इसमें रूचि नहीं दिखाई दे रही है। यही वजह है कि जनपद के करीब तीन लाख किसानों में से जैविक खेती करने बमुश्किल 4 हजार किसानों को मनाया गया। यानि करीब डेढ़ प्रतिशत किसानों ने जैविक खेती में रुचि दिखाई। ऐसे में लोगों को कैसे रसायनमुक्त खाद्यान्न, सब्जियां और फल मिल पाएंगे यह सवाल उठ रहा है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2022 से 2027 तक पंचवर्षीय योजना तैयार की है। इसमें किसानों के कलस्टर बनाकर गौ आधारित प्राकृतिक खेती कराई जाएगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि जिन खेतों में विगत कई वर्षों से रसायनों पर आधारित खेती की जाती रही है उसकी भूमि का स्वास्थ्य बहुत क्षीण हो चुका होता है। इन हालातों में भूमि सुधार के लिए कम से कम पांच वर्ष का समय लग सकता है। साथ ही जब किसान को रसायनमुक्त स्वस्थ्य उत्पाद मिलने लगेंगे तो उसे अच्छी कीमत भी मिलेगी। फिलहाल विभाग द्वारा झांसी में 50-50 किसानों के 80 कलस्टर बनाए गए हैं। जिनके माध्यम से 4000 हेक्टेयर का चयन किया गया है। कलस्टर में चयनित किसानों को फार्मर्स फील्ड स्कूल, स्थानीय कृषक प्रशिक्षण तथा एक्सपोजर विजिट के जरिए जैविक खेती की तकनीक और गुर सिखाए गए। इनमें सभी किसान गोवंश का पालन कर रहे हैं। एक एकड़ भूमि में जैविक खेती करने के लिए सरकार द्वारा किसान को पहले वर्ष 4800 रुपए, दूसरे वर्ष 4000 तथा तीसरे वर्ष 3600 रुपए दिए जा रहे हैं।

जांच की कोई लैब नहीं

जैविक खेती के उत्पादों को रसायनमुक्त उत्पाद की जांच करने के लिए झांसी में कोई प्रयोगशाला नहीं है। ऐसे में अनाज, दाल, सब्जी या फल पूर्णतः जैविक विधि से पैदा किया गया है इसकी जांच की कोई प्रमाणित एजेंसी या लैब नहीं है। इन हालातों में बिना प्रमाणित टैग या सर्टिफिकेट के आम आदमी भी जैविक उत्पाद की शुद्धता पर विश्वास नहीं कर रहा है।

किसान कहां बेचें अपने जैविक उत्पाद?

जहां सरकार द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को तैयार किया जा रहा है परंतु दूसरी ओर किसान को अपनी उपज बेचने की समस्या है। सरकार भी किसानों की पैदावार का जो समर्थन मूल्य तय करती है उसमें जैविक उत्पादों के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है। कृषि मंडी में रसायनों से उत्पादित फसल और जैविक फसल में कोई अंतर नहीं रखा गया है। वहीं सरकार या व्यापारियों द्वारा जैविक उत्पादों के लिए कोई सरकारी स्टोर नहीं खोला गया, वहीं व्यापारियों की कोई दुकान या मॉल भी नहीं हैं जहां जैविक उत्पादों को बेचा जा सके।

नहीं मिलते ग्राहक

दरअसल, जैविक खेती की लागत ज्यादा है ऐसे में इसकी उपज अनाज, दालें, सब्जियां, फल आदि की खुले बाजार में कीमत भी ज्यादा है। इस कारण बाजार में लोग इन्हें खरीदने में असमर्थता जताते हैं। लोगों का कहना है कि सरकार को रसायनमुक्त उत्पादों को बढ़ावा देना है तो जैविक उत्पादों की कीमत कम करनी चाहिए।

झांसी में जल्द बनेगी प्रयोगशाला

उप कृषि निदेशक, प्रसार, झांसी एमपी सिंह ने बताया कि जैविक उत्पादों की प्रमाणिकता की जांच करने के लिए जल्द ही प्रयोगशाला बनाई जाएगी। इस प्रयोगशाला में जैविक उत्पाद की जांच की जाएगी। जांच में रसायनों का प्रयोग किया गया या नहीं इसकी प्रमुखता से जांच होगी। प्रयोगशाला बनने के बाद यहां जैविक खेती करने वाले किसानों को बहुत सुविधा हो जाएगी। वहीं जैविक उत्पाद खरीदने वाले लोग भी इसकी शुद्धता और प्रमाणिकता को लेकर विश्वास करेंगे। 

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