Gyanvapi Row: ज्ञानवापी में अयोध्या से ज्यादा हैं मंदिर के साक्ष्य,..तो क्या जल्द सुलझेगी उलझी गांठ?

Gyanvapi Row: ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद भी कमोबेश अयोध्या विवाद जैसा ही है। इस विवाद में भी कई पेंच हैं। देखने-सुनने में भले ही ये मामले एक जैसे लगें, लेकिन इनमें एक फर्क है। जानें क्या?

Written By :  aman
Published By :  Rakesh Mishra
Update:2022-05-09 14:26 IST

Kashi Vishwanath Temple- Gyanvapi Mosque (File Photo)  

Kashi Vishwanath Temple-Gyanvapi Mosque Dispute : वाराणसी (Varanasi) के काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) और ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque)  में श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri) की पूजा से जुड़ी दायर याचिका (Filed Petition) पर कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सर्वे का आदेश दिया। मगर, मुस्लिम पक्ष के विवाद के बाद सर्वे कार्य पूरा नहीं हो सका। जिसके बाद फिर मामला कोर्ट में सुनवाई के लिए गया। अब, सवाल उठता है ये मामला है क्या? जिसे लेकर विवाद इतना गहराया हुआ है। तो चलिए, newstrack.com आपको बताने जा रहा है, कि ये पूरा विवाद क्या है? 

दरअसल ये पूरा विवाद ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी सहित कई विग्रहों को लेकर है। हाल ही में जिसके सर्वे का आदेश कोर्ट ने दिया। वाराणसी के सीनियर जज डिवीजन (Senior Judge Division) के आदेश के बाद ये सर्वे कार्य किया जा रहा था। इससे पहले मुस्लिम पक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की शरण में जा चुका है। मगर, कोई राहत नहीं मिली।  बता दें कि, काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद आज का नहीं है। यह 1991 से कोर्ट में है। फिलहाल, सर्वे (survey) रोके जाने के बाद सुनवाई हाईकोर्ट में चली गई।  

अयोध्या विवाद से कैसे अलग?   

आपको अयोध्या विवाद (Ayodhya dispute) तो याद ही होगा। दशकों चलने के बाद इस विवाद का निपटारा सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के जरिए हुआ। ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद भी कमोबेश अयोध्या विवाद जैसा ही है। इस विवाद में भी कई पेंच हैं। देखने-सुनने में भले ही ये मामले एक जैसे लगें, लेकिन इनमें एक फर्क है। अयोध्या मामले में सिर्फ मस्जिद को लेकर विवाद था। वहां मंदिर की कोई चर्चा नहीं थी। मगर, ज्ञानवापी मस्जिद मामले में मंदिर का पक्ष भी है। यानी यहां मंदिर और मस्जिद विवाद दोनों है।

हिन्दू और मुस्लिम पक्ष का क्या है दावा? 

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू पक्ष (Hindu side) की मांग है कि यहां से मस्जिद को हटाया जाए। ये जमीन हिन्दू पक्ष को दी जाए। इसके पीछे उनका तर्क है कि यहां मस्जिद, मंदिर को तोड़कर बनाई गई है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है, कि यहां देश की आजादी से पहले से ही नमाज पढ़ी जा रही है, इसलिए विवाद का सवाल ही नहीं है। इसके पीछे मुस्लिम पक्ष साल 1991 के कानून का हवाला दे रहे हैं। 


कैसे शुरू हुआ विवाद? 

इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि तैयार हुई वर्ष 1984 में। इस साल देशभर से करीब 500 से अधिक संत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जुटे। इन संतों ने धर्म संसद में कहा, कि हिंदू पक्ष अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद और काशी में अपने धर्मस्थलों को लेकर दावे करें। इसी क्रम में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Shri Krishna Janmabhoomi) को लेकर विवाद भी तेज हो गया। इस वक्त यह विवाद भी सिर उठा चुका है। दरअसल, हिन्दू पक्षकारों ने इस पूरे विवाद में स्कंद पुराण (Skand Puran) का हवाला दिया। उनका कहना है कि, स्कंद पुराण में जिन 12 ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है उनमें काशी विश्वनाथ मंदिर को अहम माना गया है। समय के साथ हिंदू संगठनों की नजरें दो मस्जिदों (ज्ञानवापी और मथुरा की शाही मस्जिद) पर आकर टिक गईं)।

किसने दायर की याचिका? 

अब सवाल उठता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद कोर्ट तक कैसे पहुंचा।  मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास (Pandit Somnath Vyas), प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा (Dr. Ramrang Sharma) और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे (Harihar Pandey) ने वाराणसी सिविल कोर्ट (Varanasi Civil Court) में याचिका दायर की। तब इनके वकील ने तर्क दिया था, कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण 2050 साल पहले हुआ था। तब राजा विक्रमादित्य (Vikramaditya) ने इन्हें बनवाया था। जिसे बाद में वर्ष 1669 में मुग़ल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) ने इसे तोड़ दिया था। जिसके बाद, इस जगह मस्जिद (Mosque) बनाई गई। लेकिन, मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया। हिन्दू पक्ष का कहना है कि नींव और ढांचा अब भी मंदिर का ही है, बस उसके ऊपर मस्जिद का निर्माण हुआ है।    

जानकारों का ये है कहना 

वहीं, कई जानकारों का ये भी मानना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को मुग़ल बादशाह अकबर (Akbar) के दरबार में नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल (Raja Todarmal) ने बनवाया था।टोडरमल ने इसका निर्माण साल 1585 में किया था। जिसे 1669 में औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी। इसके बाद साल 1735 में रानी अहिल्याबाई (Rani Ahilyabai) ने एक बार फिर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। यही आज भी मौजूद है। 


निर्माण को लेकर अपनी-अपनी राय 

याचिकाकर्ता कहते हैं कि इस मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य (Vikramaditya) ने फिर से बनवाया था। अकबर के शासन के दौरान इसका निर्माण फिर से करवाया गया। जिसे साल 1669 में औरंगजेब ने तुड़वा दिया। इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद स्थापित की गई। अभी यहां जो काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था। आप अगर ढांचे को देखें तो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद सटे हुए हैं।  

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?  

कोर्ट में दायर याचिका में मंदिर की जमीन हिंदू पक्ष को वापस देने की मांग की गई। इसमें ये भी कहा गया, कि मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (Places of Worship Act 1991) लागू नहीं होता। इसके पीछे तर्क है कि वर्तमान मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर ही बनाया गया था। मंदिर के हिस्से आज भी मौजूद हैं। अब सवाल उठता है कि, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्या है? दरअसल, साल 1991 में जब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) की सरकार थी तब इस कानून को लाया गया था।


क्या कहता है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991? 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह कानून (Act) कहता है कि देश की आजादी के वक्त यानी 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल (Religious Places) जिस रूप में थे, वो वैसे ही रहेंगे। उनके साथ किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। यहां गौर करने की बात है कि, अयोध्या विवाद आजादी से पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए इसे छूट दी गई। मगर, ज्ञानवापी मस्जिद और शाही ईदगाह मस्जिद पर ये कानून लागू होता है। इस कानून में साफ है कि अगर कोई इस कानून के विरुद्ध मंदिर-मस्जिद में छेड़छाड़ करता है तो उसे एक से तीन साल तक की कैद तथा जुर्माने की सजा हो सकती है। 

क्या है ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर तर्क? 

इस मामले में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) की देखरेख करने वाली संस्था अंजमुन इंतजामिया ने हाईकोर्ट का रुख किया। संस्था की दलील है कि इस पूरे विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। इसके पीछे वो प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला दे रहे हैं। जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी। फिर, सालों तक ये मामला कोर्ट में लंबित पड़ा रहा। फिर ये मुद्दा वर्ष 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी ने उठाया। रस्तोगी ने हाईकोर्ट का रुख किया। उन्होंने याचिका दायर कर मांग की, कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे (survey) पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) की ओर से से करवाया जाए। 

अब क्या? 

जैसा कि अब तक इस पूरे विवाद को समझ चुके होंगे। तो फिर सवाल उठता है, अब क्या? एक तरफ, हिंदू पक्ष की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद हटाई जाए। यह पूरी जमीन हिंदुओं के हवाले कर दी जाए। हिंदू संगठन इसके पीछे यही दलील दे रहे हैं कि वर्तमान मस्जिद, मंदिर के ढांचे पर खड़ी है। इसलिए 1991 का कानून प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट इस पर लागू नहीं होता। जबकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि चूंकि, यहां आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है, इसलिए इस पर 1991 का कानून लागू नहीं होता। 

बीते दिनों जब कोर्ट के आदेश के बाद सर्वे टीम वहां गई थी तो विवादित स्थल के पास जमकर नारेबाजी हुई थी। मुस्लिम पक्ष अब एक बार फिर हाईकोर्ट की शरण में है। उसका साफ कहना है कि वो ऐसे किसी सर्वे को नहीं मानेंगे। फिलहाल, मामला हाईकोर्ट में है। कोर्ट का हो भी आदेश होगा, उसे सभी पक्षों को मानना ही होगा।  

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