कुम्भ मेला क्षेत्र में गंगा की धाराओं को मोड़ने पर रोक की मांग में अर्जी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयाग में कुम्भ मेला क्षेत्र में गंगा नदी की दो प्राकृतिक धाराओं को ड्रेजिंग मशीन के जरिए एक करने पर रोक की मांग में न्यायमित्र अरूण कुमार गुप्ता की अर्जी की सुनवाई दस दिसंबर को करेगा। अधिवक्ता गुप्ता का कहना है कि दो धाराओं को एक धारा में परिवर्तित करने से पर्यावरण व गंगा जल की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयाग में कुम्भ मेला क्षेत्र में गंगा नदी की दो प्राकृतिक धाराओं को ड्रेजिंग मशीन के जरिए एक करने पर रोक की मांग में न्यायमित्र अरूण कुमार गुप्ता की अर्जी की सुनवाई दस दिसंबर को करेगा। अधिवक्ता गुप्ता का कहना है कि दो धाराओं को एक धारा में परिवर्तित करने से पर्यावरण व गंगा जल की गुणवत्ता प्रभावित होगी। मेले के दौरान अतिरिक्त पानी छोड़े जाने से जल प्लावन होने की संभावना है।
ये भी देखें : अखिल भारतीय प्राइज मनी कबड्डी प्रतियोगिता,शिरकत करेंगे CM योगी व रमन सिंह
गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति वाई.के.श्रीवास्तव की खण्डपीठ कर रही है। न्यायमित्र गुप्ता का कहना है कि महाकुम्भ 2013 में संगम में आठ करोड़ लोगों ने स्नान किया था। इस वर्ष 2019 में 15 से 16 करोड़ लोगों के आने की संभावना है। मेले में लाखों कल्पवासी एक माह रेती में निवास करते हैं। जो खाने-पीने के लिए गंगा जल का ही इस्तेमाल करते है। हाईकोर्ट की निगरानी में प्रतिवर्ष स्नान पर्वाें पर अतिरिक्त जल छोड़ा जाता है साथ ही मेले के दौरान गंगा में पर्याप्त शुद्ध जल कायम रखने का निर्देश है। विशेषज्ञ अभियंताओं ने उन्हें मेल भेजकर गंगा प्रवाह में छेड़छाड़ करने को पर्यावरण के प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की है और कहा है कि गंगा कछार का तापमान बढ़ेगा। जल की गुणवत्ता प्रभावित होगी। अर्जी में मेल प्रशासन पर आरोप लगाया गया है कि मेला प्रशासन अधिक जमीन की उपलब्धता के लिए गंगा के प्राकृतिक धाराओं में बदलाव कर रहा है। अर्जी में मूल धाराएं बहाल करने सहित जल की शुद्धता कायम रखने का निर्देश जारी करने की मांग की गयी है।
ये भी देखें : हाईकोर्ट : 2013-14 सत्र के बीएड छात्रों का परीक्षा परिणाम घोषित करने का आदेश
केशरी देवी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने के आदेश पर रोक-जवाब तलब
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला पंचायत प्रयागराज का केशरी देवी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के आदेश पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से चार हफ्ते में याचिका पर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत तथा न्यायमूर्ति मंजूरानी चैहान की खण्डपीठ ने पूर्व अध्यक्ष श्रीमती रेखा सिंह की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने याची के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की वैधता की चुनौती याचिका के साथ इस याचिका को भी सुनवाई हेतु पेश करने का निर्देश दिया है। याची का कहना है कि केशरी देवी को हटाकर वह अध्यक्ष चुनी गयी थी। इन्हीं के इशारे पर याची के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और याची के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया। सरकार के निर्देश पर विपक्षी को अन्तरिम तौर पर अध्यक्ष बनाया गया है जो विधि सम्मत नहीं है। जिलाधिकारी को अध्यक्ष पद का चुनाव कराना चाहिए। तब तक शासन देखभाल करे।
संविदा पर नियुक्त कर्मी को क्षतिपूर्ति पाने का हक, कोर्ट पुनर्बहाली का नहीं दे सकती निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कानून के तहत नियुक्त कर्मचारी की गलत तरीके से बर्खास्तगी पर उसकी सेवा बहाली की जा सकती है। किन्तु कम्पनी के करार के तहत नियुक्त कर्मचारी की गलत बर्खास्तगी पर उसकी पुनर्बहाली नहीं की जा सकती। वह इसके लिए मुआवजे की मांग में दावा कर सकता है। क्योंकि संविदा के उल्लंघन पर मुआवजे की मांगकी जा सकती है। कोर्ट उसकी सेवा बहाली का आदेश नहीं दे सकती। इसी के साथ कोर्ट ने सेन्ट्रल उ.प्र.गैस लिमिटेड कंपनी (सी.यू.पी.जी.एल.) कानपुर नगर के बर्खास्त कर्मचारी की पुनर्बहाली की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है।
ये भी देखें : रेप पीड़िता की हत्या के मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को किया गिरफ्तार
यह आदेश न्यामूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति इफाकत अली खान की खण्डपीठ ने राजेश भारद्वाज व सुभाष वर्मा की याचिकाओं पर दिया है। याचिका का अधिवक्ता प्राजंल मेहरोत्रा ने विरोध किया। याची का कहना था कि कम्पनी अनुच्छेद 12 के अन्तर्गत राज्य है। उसे बिना सुनवाई का मौका दिये सेवा से नहीं हटाया जा सकता। कोर्ट ने याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत याची को अनुतोष पाने का हक नहीं है। याची की सेवा संविदा पर है इसलिए वह संविदा उल्लंघन पर क्षतिपूर्ति का दावा कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 311 के विपरीत लोक सेवक की सेवा समाप्ति हो, या श्रम कानून के तहत मनमाने तरीके से बर्खास्तगी हो या नियम के विपरीत कर्मचारी को बर्खास्त किया गया हो तो ऐसे कर्मचारियों की बर्खास्तगी गलत पाये जाने पर कोर्ट उनकी सेवा में पुनर्बहाली का आदेश दे सकती है। संविदा सेवा निरस्त होने पर कोर्ट सेवा बहाली का आदेश नहीं दे सकती। कर्मी को केवल क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है।
अभिषेक आयोग के अधिवक्ता नियुक्त
उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज ने हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक सिंह को हाईकोर्ट में आयोग के मुकदमों की पैरवी के लिए अधिवक्ता नामित किया है। यह आदेश आयोग के सचिव वंदना त्रिपाठी ने जारी किया है। सिंह ने आयोग के अनुरोध को स्वीकार कर आयोग की तरफ से केसों की पैरवी की सहमति दी है।
अध्यापकों के बकाया वेतन भुगतान पर निर्णय लेने का बीएसए को निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अलीगढ़ को सेवानिवृत्त स्कूलों के अध्यापकों को बकाये वेतन भुगतान के संबंध में छह हफ्ते में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। बीएसए ने याचियों को काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धान्त पर जुलाई से अक्टूबर माह का वेतन देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने इस आदेश को अंगद यादव केस के फैसले के विपरीत मानते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने सुनवाई का मौका देकर कोर्ट के फैसले के तहत नये सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने प्राथमिक विद्यालय बझेड़ा, खैर, अलीगढ़ के पूर्व प्रधानाचार्य नवल किशोर शर्मा व अन्य स्कूलों के ग्यारह अध्यापकों की याचिका पर दिया है। याची अधिवक्ता अनुराग शुक्ला का कहना है कि राज्य सरकार ने शिक्षा सत्र में बदलाव कर अप्रैल से मार्च कर दिया। पहले यह जुलाई से जून तक था। याचीगण 30 जून को सेवानिवृत्त हुए।
इन्होंने शिक्षा सत्र के बदलाव के चलते मार्च तक कार्य करने देने की मांग की किन्तु इन्हें 30 जून को सेवानिवृत्त कर दिया गया। हाईकोर्ट के निर्देश पर इन्हें अक्टूबर के बाद ज्वाइन कराया गया और 31 मार्च को सेवानिवृत्त कर दिया गया। जुलाई से अक्टूबर तक सेवा से बाहर रहने के कारण इन्हें वेतन नहीं दिया गया जिसे चुनौती दी गयी थी। कोर्ट ने अंगद यादव केस में अध्यापकों को सेवा निरंतरता के आधार पर वेतन देने का आदेश दिया है। जिसके आधार पर कोर्ट ने बीएसए को निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
58 वर्ष में ही होंगे सरकारी सेवक सेवानिवृत्त, राज्यपाल को विधायी नियम संशोधित करने का अधिकार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि फंडामंेटल रूल्स 56 एक विधायी नियम है, जिसे विधानसभा के जरिए ही संशोधित किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 309 के अन्तर्गत नियम बनाने की राज्यपाल की शक्ति के तहत अधिसूचना जारी कर नियम 56 में संशोधन कर सरकारी सेवकों की सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा है कि कानून की नजर में नियम 56 में संशोधन नहीं हुआ है। ऐसे में सरकारी सेवकों की सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष ही है न कि 60 वर्ष।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति इफाकत अली खान की खण्डपीठ ने भदोही औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सहायक आर्कीटेक्ट ओम प्रकाश तिवारी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा है कि 28 नवम्बर 2001 की राज्यपाल की अधिसूचना से सरकारी सेवकों की सेवानिवृत्ति आयु नहीं बढ़ायी जा सकती। कोर्ट ने कहा है कि विधायी नियम विधायी प्रक्रिया से ही संशोधित हो सकती है। याची का कहना था कि उसे 60 वर्ष में सेवानिवृत्ति किया जाए। कोर्ट ने कहा कि 30 सितम्बर 12 के शासनादेश का लाभ याची को नहीं मिलेगा क्योंकि यह नोएडा के कर्मियों के लिए जारी हुआ है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि सरकारी सेवकों की सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष ही है।