UP में जजों की कमी, पीड़ितों को समय पर नहीं मिल पा रहा न्याय

Update: 2016-04-07 07:58 GMT

लखनऊ: यूपी में जजों की कमी से पीड़ितों को समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है। मौजूदा समय में इलाहाबाद हाईकोर्ट की इलाहाबाद व लखनऊ बेंच में जजों के कुल 160 पद स्वीकृ​त हैं, जबकि यहां कुल 78 जज ही काम कर रहे हैं।

हालांकि गुरुवार को ही लगभग 6 जजों को एडीशनल जस्टिस के रूप में शपथ दिलाई गई है। पर यह भी नाकाफी है। यही कारण है कि जजों की कमी की वजह से 20 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश में सालों से लंबित लाखों मुकदमों का निपटारा नहीं हो पा रहा है।

लाॅ कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में होने चाहिए 225 जज

लॉ कमिशन की 120वीं रिपोर्ट के मुताबिक हर 10 लाख की जनसंख्या पर 50 जजों की नियुक्ति होनी चाहिए, इस लिहाज से यूपी में जजों की संख्या काफी कम है। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में लगभग 225 जज होने चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अकेले 15 लाख मामले लंबित

बात करें लंबित मामलों की तो अकेले इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें से 4,14,783 ऐसे मामले हैं जो सरकारी विभागों के हैं। खास बात यह है कि इन 15 लंबित मामलों में से 57 फीसदी मामले सिर्फ पश्चिमी यूपी के हैं। वर्तमान में हालात यह है कि लोगों की उम्र गुजर जाती है, पर उन्हें न्याय नहीं मिल पाता है। पुराने मुकदमों का तय होना तो दूर की बात है, नए दाखिल मुकदमों की सुनवाई में भी हफ्तों का समय लग रहा है।

अन्य छोटे राज्यों में भी हैं हाईकोर्ट की कई खंडपीठ

जानकारों के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतर्गत सिर्फ एक खंडपीठ की व्यवस्था लखनऊ में की गई है। जबकि महाराष्ट्र में हाईकोर्ट में कुल 44 जज ही हैं पर वहां तीन हाईकोर्ट बेंच है। इसी तरह राजस्थान में इंदौरा और ग्वालियर में खंडपीठ है, जबकि वहां जजों की संख्या 42 है। बात करें पूर्वोत्तर राज्यों की तो यूपी की अपेक्षा उनकी हालत ठीक है।

मुकदमों के निस्तारण में पांच मिनट से भी कम वक्त देते हैं जज

हाईकोर्ट में मुकदमों के निस्तारण में पांच मिनट से भी कम का समय दिया जाता है। एक स्टडी रिपोर्ट में यह सामने आया है। इससे कोर्ट में जजों पर केस निपटारे के प्रेशर का अंदाजा लगाया जा सकता है।

बिजी जज ढाई मिनट का दे पाते हैं समय

जुडिशरी के काम काज पर स्टडी करने वाले बेंगलुरू के गैर सरकारी संगठन 'दक्ष' के देश में सबसे आराम से काम करने वाले हाईकोर्ट के जज एक केस को सुनने में 15 से 16 मिनट का वक्त लेते हैं, जबकि सबसे बिजी जज औसतन ढाई मिनट का समय दे पाते हैं।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी मुकदमें की पेंडेंसी पर जताई है चिंता

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी देश में मुकदमों की पेंडेंसी पर चिंता जताई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 150वें स्थापना दिवस समारोह में मुखर्जी ने कहा था कि जरूरतमंदों को न्याय नहीं मिल पा हरा है। सरकार और न्यायपालिका को इस तरफ ध्यान देना होगा।

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