Lalji Singh-Father of DNA Test: क्या आप जानते हैं डीएनए टेस्ट के जनक उत्तर प्रदेश के इस गांव के थे
लालजी सिंह जीव विज्ञानियों की श्रृंखला में एक बहुत बड़ा नाम है। जिसे भारत में डीएनए टेस्ट का जनक भी कहा जाता है। देश के सबसे चर्चित हाई प्रोफाइल मामले लालजी सिंह की खोज के चलते ही सुलझाए जा सके।
Lalji Singh-Father of DNA Test: लालजी सिंह जीव विज्ञानियों की श्रृंखला में एक बहुत बड़ा नाम है। जिसे भारत में डीएनए टेस्ट का जनक भी कहा जाता है। देश के सबसे चर्चित हाई प्रोफाइल मामले लालजी सिंह की खोज के चलते ही सुलझाए जा सके। जिनमें राजीव गांधी हत्याकांड, नैना साहनी मर्डर केस, स्वामी श्रद्धानंद, सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता हत्याकांड और मंटू मर्डर केस सुलझाए जा सके। लालजी सिंह ने 1988 में पहली बार आपराधिक मामलों की जांच को नई दिशा देने वाली डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक को खोजा।
डॉ. लालजी सिंह का जन्म 5 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेस के जौनपुर जिले के छोटे से गांव कलवारी में हुआ था। उनके पिता एक साधारण किसान थे। लालजी सिंह ने बीएचयू से एमएससी करने के बाद कोशिका आनुवांशिकी में पीएचडी की। खास बात यह है कि उन्हें बीएचयू सहित छह विश्वविद्यालयों ने डीएससी की उपाधि दी। वह हैदराबाद के 'कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र' के संस्थापक व निदेशक रहे। बाद में वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने। यानी जिस विश्वविद्यालय से अध्ययन किया वहीं के कुलपति बनने का गौरव पाया। इतना ही नहीं लालजी सिंह ने देश में कई संस्थानों और लैब को भी शुरू कराया।
डॉ. लालजी सिंह पद्मश्री का सम्मान भी मिला
डॉ. लालजी सिंह की सेवाओं के लिए इन्हें पद्मश्री का सम्मान भी दिया गया। लेकिन ये महान वैज्ञानिक इतनी जल्दी चला जाएगा यह किसी को अहसास नहीं था। 10 दिसंबर 2017 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर किया गया। बीएचयू के पूर्व कुलपति डॉ. लालजी सिंह ने जहां से शिक्षा-दीक्षा ली वहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली। कुलपति के कार्यकाल के दौरान वह मात्र एक रुपये वेतन लिया करते थे।
वह माटी से जुड़े आदमी थे
उन्होंने अपने गृह जनपद में जिनोम फाउंडेशन नाम से संस्था भी खोली, जहां शोध के आधार पर खासकर आदिवासी जनजातियों की पीढ़ियों पर अध्ययन किया जाता है। लालजी सिंह ने शुरुआत में जब 62 पन्नों की थीसिस लिखी, जिसे उस समय जर्मनी के मशहूर जर्नल ने छापा तो विज्ञान की दुनिया में तहलका मच गया। कलकत्ता यूनिवर्सिटी के रिसर्च यूनिट (जूलॉजी) जेनेटिक में 1971-1974 तक रिसर्च करने का मौका मिला। फिर 1974 में कॉमनवेल्थ फेलोशिप मिली तो यूनाइटेड किंगडम गए। लेकिन विदेशी चकाचौंध उन्हें रास नहीं आई क्योंकि वह माटी से जुड़े आदमी थे।