Mahoba News: लठ्ठमार होली तो आपने सुनी होगी लेकिन क्या लठ्ठमार दीपावली देखी...

Mahoba News: यूपी के बुंदेलखंड में दीपावली का त्यौहार बहुत रोमांचक होता है। युवाओं की टोलिया ढोलक की थाप पर लाठियों का अचूक वार करते हुए युद्ध कला का अनोखा प्रदर्शन करती हैं।

Report :  Imran Khan
Update:2022-10-26 17:27 IST

लठ्ठमार दीवावली खेलते हुए

Mahoba News: यूपी के बुंदेलखंड में दीपावली का त्यौहार बहुत रोमांचक होता है। युवाओं की टोलिया ढोलक की थाप पर लाठियों का अचूक वार करते हुए युद्ध कला का अनोखा प्रदर्शन करती हैं। लाठिया भांजते युवाओं को देखकर ऐसा लगता है मानो वो दीपावली खेलने नही बल्कि युद्ध का मैदान जीतने निकले हो। दीपावली के एक हफ्ता पहले से एक हफ्ता बाद तक बुंदेलखंड इलाके के महोबा जनपद सहित बांदा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर जिले के हर कस्बे, गांव और गलियों में दिवारी नृत्य करते दीपावली खेलते हुए जोश से भरे युवाओं की टोलियां घूम-घूम कर खेलती हैं।

आपने बरसाने की लठ मार होली देखी ही होगी ठीक उसी तरह से बुंदेलखंड में लठ मार दीपावली होती है, जिसमें वीरता की झलक देखने को मिलती है। जो युद्ध कला को दर्शाती है। दीपावली आते ही बुन्देलखण्ड के प्रत्येक ज़िले में इसकी चौपालें गाँव से लेकर शहरों तक सज चुकी हैं। यहाँ प्रत्येक चौपालों पर युवा, वृद्ध और बच्चे अपने-अपने हाथों में लाठी-डंडों के साथ दिखाई देने लगे हैं।


बुंदेलखंड का परम्परागत लोक नत्य दिवारी जिसने ना सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश में अपनी धूम मचा दी है, इसमें जिम्नास्टिक की तरह इनके करतब वाकई में अदभुत है। इस नृत्य में अलग तरह से बज रही ढोलक खुद बा खुद लोगों को थिरकने के लिए मजबूर कर देती है। बुंदेलखंड की यह परम्परा गाँवो और शहरों सभी जगह उत्साह पूर्वक देखी जा सकती है। अलग वेशभूषा और मजबूत लाठी जब दिवाली लोक नृत्य खेलने वालो के हाथ आती है तो यह कला बुन्देली सभ्यता-परम्परा को मजबूत रूप से प्रकट करती है। इस कला को हर बुन्देली सीखना चाहता हैं, फिर चाहें वह बच्चे- जवान या फिर बूढ़े हों, क्योंकि इसमें वीरता समाहित होती है।


बुंदेलखंड का दिवारी लोक नृत्य गोवधन पर्वत से भी सम्बन्ध रखता है। द्वापर युग में श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था तब ब्रजवासियों ने खुश हो कर यह दिवारी नृत्य कर श्री कृष्ण की इन्द्र पर विजय का जश्न मनाया था। ब्रज के ग्वालों ने इसे दुश्मन को परास्त करने की सबसे अच्छी कला माना था। बुंदेलखंड में धनतेरस से लेकर दीपावली की दूज तक गाँव-गाँव में दिवारी नृत्य खेलते नौजवानों की टोलियाँ घूमती रहती हैं। दिवारी देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटती है। दिवारी खेलने वाले लोगे इस कला को श्री कृष्ण द्वारा ग्वालों को सिखाई गई आत्म रक्षा की कला मानते हैं। बुंदेलखंड के हर त्योहारों में वीरता और बहादुरी दर्शाने की पुरानी रवायत है तभी तो रोशनी के पर्व में भी लाठी डंडों से युद्ध कला को दर्शाते हुए दीपोत्सव मानाने की यह अनूठी परम्परा सिर्फ़ इसी इलाके की दीपावली में ही देखने को मिलती है। 

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