Lucknow News: शिवपाल यादव पर लटकी CBI की तलवार, भतीजे का हाथ थामना पड़ा महंगा

Lucknow River Front: सीबीआई ने आगे की जांच के लिए यादव व अफसरों से पूंछताछ की अनुमति मांगी है। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए शासन ने सिंचाई विभाग से संबंधित रिकॉर्ड तलब किया है।

Update: 2022-11-29 05:18 GMT

शिवपाल यादव (Social Media) 

Lucknow River Front: भतीजे का हाथ थामते ही सीबीआई ने गोमती रिवर फ्रंट मामले में शिवपाल यादव से पूछताछ के लिए सरकार से मंजूरी मांगी है। गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में तत्कालीन सपा सरकार में सिंचाई मंत्री रहे शिवपाल सिंह यादव व दो अन्य अफसरों की भूमिका की जाँच-पड़ताल प्रारंभ हो गई है। सीबीआई ने आगे की जांच के लिए यादव व अफसरों से पूंछताछ की अनुमति मांगी है। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए शासन ने सिंचाई विभाग से संबंधित रिकॉर्ड तलब किया है। शासन के एक अधिकारी के अनुसार उपलब्ध रिकॉर्ड में इस प्रकरण में इन लोगों की भूमिका मिलने पर सीबीआई को पूछताछ की अनुमति दे दी जाएगी।

बता दें कि साल 2017 में सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट की न्यायिक जांच कराई थी। न्यायिक जांच में बड़ा घोटाला सामने आने के बाद पूरे मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया था। इस घोटाले में सीबीआई पहले ही कई इंजीनियरों को गिरफ्तार कर चुकी है। अब दो आईएएस अधिकारी समेत तत्कालीन सिंचाई मंत्री की भूमिका की भी सीबीआई जांच करना चाहती है।

यह था पूरा मामला

गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के लिए समाजवादी पार्टी की सरकार ने साल 2014-15 में 1513 करोड़ रुपये स्वीकृत की थी। इसके बाद समाजवादी पार्टी की सरकार में ही 1437 करोड़ रुपए जारी कर दिया गया था। स्वीकृत बजट का 95 फ़ीसदी राशि जारी होने के बावजूद भी 60% से कम काम हो पाया था। न्यायिक जांच में भ्रष्टाचार सामने आया। परियोजना के लिए आवंटित की गई राशि राशि को इंजीनियरों और अधिकारियों ने जमकर लूटा।

इसका ठेका डिफॉल्टर गैमन इंडिया कंपनी को दिया गया था। इसके लिए टेंडरों की शर्तों में चोरी-छिपे बदलाव भी किया गया था। और इन बदलावों को फाइलों में तो दर्ज कर लिया गया लेकिन उनका प्रकाशन नहीं कराया गया था। बजट को मनमाने ढंग से खर्च किया गया इसके अलावा डॉक्यूमेंट बनाने में भी करोड़ों का घोटाला किया गया। इस मामले में हुई न्यायिक जांच के रिपोर्ट में परियोजना से जुड़े अधिशासी अभियंता, अधीक्षण अभियंता, मुख्य अभियंता और प्रमुख अभियंता के अलावा कई बड़े अधिकारियों को सीधे जिम्मेदार ठहराया गया था।

जानकारी के अनुसार जिन दो आईएएस अधिकारियों को परियोजना की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी थी, जांच में यह पता लगाया जा रहा है, कि उन्होंने टेंडर की शर्तों में बदलाव के लिए मौखिक या लिखित रूप से कोई आदेश तो नहीं दिया था। यदि मौखिक आदेश की बात सामने आती है तो यह देखा जाएगा कि संबंधित अभियंता ने इसका जिक्र फाइल पर किया है कि नहीं। मौखिक आदेशों पर फाइलों में किए गए बदलाव पर भी सीबीआई जांच करेगी। शिवपाल से संबंधित यह जानकारी जुटाई जा रही है कि अभियंताओं को अतिरिक्त चार्ज देने में उनकी क्या भूमिका रही है। बिना टेंडर काम देने या बिना किसी भनक के टेंडर की शर्तों में बदलाव में उनकी भूमिका पर भी जांच की जा रही है। यहां बताते चलें कि यदि किसी पूर्व मंत्री ने अपने मंत्री पद पर रहते कोई निर्णय लिया हो तो उस समय के घोटाले से संबंधित मामले में पूछताछ के लिए सरकार से अनुमति अनिवार्य होता है। यही प्रावधान अधिकारियों के मामलों में भी है।

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