Lucknow: SGPGI में 18 वर्षीय बालिका का हुआ सफ़ल लिवर ट्रांसप्लांट, बड़ी बहन ने दिया लिवर का एक हिस्सा

Lucknow: SGPGI के हेपेटालॉजी विभाग में शुक्रवार को 'सफल लिवर प्रत्यारोपण' की जानकारी दी गई। जिसके बाद प्राप्तकर्ता को वार्ड से छुट्टी दे दी।

Report :  Shashwat Mishra
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-03-11 20:53 IST

'सफल लिवर प्रत्यारोपण'

Lucknow: राजधानी के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) के हेपेटालॉजी विभाग में शुक्रवार को 'सफल लिवर प्रत्यारोपण' की जानकारी दी गई। जिसके बाद, प्राप्तकर्ता (recipient) को वार्ड से छुट्टी दे दी। बता दें कि जनवरी 2019 के पश्चात यह संस्थान का पहला सफल प्रयास है और यह सफलता उत्तर प्रदेश के प्रथम हेपेटालाजी विभाग की फरवरी 2021 में स्थापना के बाद मिली है।

ऑटोइम्यून लिवर बीमारी से पीड़ित थी 18 वर्षीय बालिका

गोरखपुर की निवासी 18 वर्षीय बालिका ऑटोइम्यून लिवर बीमारी (autoimmune liver disease) से पीड़ित थी। उसकी 26 वर्षीय बड़ी बहन ने अपने लिवर का बांया भाग (Liver left lobe) प्रत्यारोपण के लिए दिया। जो कि चार बच्चों की एक स्वस्थ मां है।

यह प्रत्यारोपण संजय गांधी पीजीआई लखनऊ और इंस्टिट्यूट ऑफ़ लिवर एंड बिलिअरी साइंसेज, नई दिल्ली की टीम द्वारा संयुक्त रुप से किया गया। संजय गांधी पीजीआई और आईएलबीएस, नई दिल्ली के बीच 2021 में इस संदर्भ में एक मेमो ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर भी किए गए थे।

एसजीपीजीआई निदेशक के नेतृत्व में हुआ ऑपरेशन

पीजीआई की टीम में हैपेटॉलजिस्ट प्रोफेसर आर के धीमन, डाक्टर आकाश रॉय, डॉ सुरेंद्र सिंह, सर्जिकल टीम में प्रोफेसर राजन सक्सेना, प्रोफेसर आरके सिंह, डॉक्टर सुप्रिया शर्मा, डॉक्टर राहुल और डॉक्टर आशीष सिंह के साथ-साथ 9 सीनियर रेजिडेंट भी शामिल थे।

एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर टीम के अंतर्गत प्रोफेसर देवेंद्र गुप्ता, डॉक्टर दिव्या श्रीवास्तव, डाक्टर रफत शमीम, डॉक्टर तापस सिंह व 8 सीनियर रेजिडेट शामिल थे। पैथोलाजी की तरफ से डॉ नेहा निगम और माइक्रोबायोलॉजी की तरफ से प्रोफेसर आरएसके मारक, डॉक्टर रिचा मिश्रा व डॉक्टर चिन्मय साहू ने सहयोग प्रदान किया।

15 घण्टे तक चला ऑपरेशन, 15 लाख से कम आई लागत

दिल्ली की आईएलबीएस टीम में प्रोफेसर वी पमेचा के नेतृत्व में 6 सदस्य शामिल थे। ऑपरेशन की यह प्रक्रिया लगभग 15 घंटे चली। डोनर को ऑपरेशन के पश्चात सब कुछ सामान्य होने पर दसवें दिन छुट्टी दे दी गई। डिस्चार्ज में 4 दिन का विलंब सामाजिक कारणों से किया गया। आज रोगी को पूर्ण स्वतंत्र अवस्था में डिस्चार्ज किया जा रहा है।

इस प्रत्यारोपण की सफलता का श्रेय बहुत हद तक संस्थान के निदेशक प्रो आरके धीमन को जाता है, जिन्होंने इस बड़े कार्य के लिये पूर्ण प्रशासनिक सहयोग दिया। वित्त एवं सामग्री प्रबंधन विभागों का सहयोग भी सराहनीय रहा, जिन्होंने बहुत ही कम समय में आवश्यक संयंत्रों और उपकरणों को उपलब्ध कराने में शीघ्रता दिखाई।

अब संस्थान में लिवर प्रत्यारोपण सेवा नियमित आधार पर प्रदान की जाएंगी। इस प्रत्यारोपण की कुल लागत (प्रदाता और प्राप्तकर्ता दोनों को मिला कर) 15 लाख से भी कम आई है, जिसके लिये विभिन्न सरकारी योजनाओं से सहयोग जुटाया गया।

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