लम्बी बीमारी के बाद हुआ नवाब राम आडवानी का निधन,नवाबी शहर से था लगाव

वे सिर्फ किताब बेंचने वाले ही नहीं थे बल्कि अवध की सजी हुई महफिल थे।उनकी इस महफिल में राजा,नवाब,टिचर्स,स्टूडेंट्स और किताबों में रूचि रखने वालों का जमवाड़ा रहता था।वह विदेशों से आने वाले इतिहासकार और रिसर्च स्कॉलर्स की मदद किया करते थे।

Update: 2016-03-09 11:47 GMT

लखनऊः हजरतगंज की वह दुकान जो हर वक्त अध्ययन का स्वाद रखने वालों की चहल पहल से भरी रहती थी। अब बंद है क्योंकि दुकान के मालिक राम आडवाणी का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। 1921 में लाहौर से भारत आए आडवाणी ने लखनऊ में किताब बेचने का व्यवसाय किया। उन्हें नवाबी शहर से इतना लगाव हो गया की वह अपने जीवन के अंतिम दिनों तक यहीं रूके रहे।

वह अवध की सजी हुई महफिल थे

-लाहौर से पलायन के बाद इनके पिता भारत चले आए।

-उन्होने हजरतगंज के मीनिर सिनेमा की इमारत में ‘राम आडवानी बुक सेलर्स’ के नाम से दुकान खोली।

-वे सिर्फ किताब बेंचने वाले ही नहीं थे बल्कि अवध की सजी हुई महफिल थे।

-उनकी इस महफिल में राजा,नवाब,टिचर्स,स्टूडेंट्स और किताबों में रूचि रखने वालों का जमवाड़ा रहता था।

-वह विदेशों से आने वाले इतिहासकार और रिसर्च स्कॉलर्स की मदद किया करते थे।

दुकान बनी महफिल

-देश में तरह तरह की गतिविधियां हो रही थी।

-जिससे मैं विचलित हो गया था लेकिन लखनऊ वासियों ने मेरा दिल जीत लिया।

-उनके किताबों की दुकान महफिलों का केन्द्र बन गया।

-जहां इतिहास,भाषा,शायरी,संस्कृति और सभ्य समाज पर घंटों विचार विमर्श होता था।

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