इंसान में खुशी तो भीतर ही है, दुख हमने बटोर रखे हैं, आलोक रंजन की "हैप्पीनेस एंड वेलबीइंग" दिखाती है खुशियों की राह
पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने आज होटल क्लार्क्स अवध के रंग महल हॉल में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी नई पुस्तक "हैप्पीनेस एंड वेलबीइंग" का विमोचन किया।;
खुशी तो इंसान की नैसर्गिक चीज है, उदासी,खिन्नता वगैरह तो हम बटोर कर अपने में ले आये हैं। खुशी ढूंढने से नहीं मिलती, वह कोई मंजिल नहीं है वह तो हमारे भीतर है।
यूपी के पूर्व चीफ सेक्रेटरी और सीनियर आईएएस आलोक रंजन जब ये बात कहते हैं तो जीवन का सार ही उसमें उतार देते हैं। आलोक रंजन कहते हैं कि खुशी किसी भौतिक चीज, किसी खास मुकाम से नहीं मिलती। ये हमारे भीतर, हमारी आत्मा में समावेशित है।
आलोक रंजन अपनी नवीनतम पुस्तक "हैप्पीनेस एंड वेलबीइंग" के विमोचन के अवसर पर उपस्थित लोगों के सवालों के जवाब देने के साथ साथ अपनी राय व्यक्त कर रहे थे। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित "हैप्पीनेस एंड वेलबीइंग" का विमोचन होटल क्लार्क्स अवध के रंग महल हॉल में किया गया। जहां पूर्व सीनियर आईएएस अनूप चन्द्र पांडे, एके गुप्ता, हीरालाल, अमितचंद्र समेत शहर के जानेमाने लोग उपस्थित थे। मंच पर आलोक रंजन के साथ पैनल में लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अरविंद मोहन, जयपुरिया इंस्टिट्यूट की प्रोफेसर कविता पाठक, यूनिवर्सल बुकसेलर्स के चंदर प्रकाश, उद्योगपति किरण चोपड़ा उपस्थित थे।
पैनल चर्चा से लेकर आलोक रंजन के संबोधन और उपस्थित श्रोताओं के सवाल जवाबों तक बातें सिर्फ हैप्पीनेस यानी खुशियों पर केंद्रित रही। खुशियों को कैसे हासिल किया जा सकता है, हम क्या महसूस करते हैं, समाज में क्या चल रहा है, इन सभी बातों पर बेबाकी से और खुशनुमा माहौल में चर्चा हुई। ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत की बहुत खराब रैंकिंग पर एक सवाल के जवाब में आलोक रंजन ने कहा कि जरूर जीडीपी बढ़ाने से कहीं ज्यादा भारत की जनता की हैप्पीनेस बढ़ाने की है। हैप्पीनेस इंडेक्स को नकारने की बजाए ये पता करना चाहिये कि लोग खुश क्यों नहीं हैं। अलोक रंजन ने कहा कि प्रशासनिक सेवा के दौरान उन्होंने हमेशा लोगों की खुशियों को प्राथमिकता दिया। उन्होंने कहा कि जीवन के अनुभव को पुस्तक के रूप में सामने लाये हैं। पुस्तक में व्यक्ति, संगठनों और नीति निर्माताओं के लिए खुशी को बढ़ावा देने के लिए व्यावहारिक जीवन के उदाहरणों को दर्शाया गया है।
पूर्व सीनियर आईएएस अनूप चंद्र पांडे ने आलोक रंजन की कार्यशैली की तारीफ करते हुए बॉस और मातहतों के बीच खुशी के रिश्ते की चर्चा की और कहा कि जब अच्छा बॉस वही माना जाता हो जो मातहत को उलझाए ही रखे तो भला कोई खुश कैसे रह सकता है।
चर्चा में काम के घण्टों की बात भी हुई। हफ्ते में 70 घण्टे, 90 घण्टे काम करने के बयानों पर आलोक रंजन ने कहा कि सिर्फ घण्टे गिनने से बेहतर है क्वालिटी पर ध्यान दिया जाए, खुशी से किया गया काम ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हैप्पीनेस यानी खुशी और वैल्बीइंग यानी सुख दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें से एक के न रहने पर दूसरा नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि पुस्तक में जिंदगी के विभिन्न चुनौतियों को दर्शाया गया है। हमारा जीवन, पैसा, स्वास्थ्य, सामाजिक बंधन और अध्यात्म की डोर में बंधा हुआ है। व्यक्ति खुश रहने के लिए जीवन के इन्हीं पहलुओं में संतुष्टि तलाश करता है। उन्होंने कहा कि सभी को अपने भीतर ही खुशी तलाशनी चाहिए और अपने इर्दगिर्द खुशियों का ही वातावरण बनाना चाहिए।