Hoarding Problem in Cities: सड़क किनारे लगे होर्डिंग बन रहे हादसे की वजह, क्या सरकार को लगा देना चाहिए बैन ?
Hoarding Problem in Cities: सड़क किनारे लगे होर्डिंग्स के चक्कर में होने वाली ये कोई पहली दुर्घटना नहीं है। इससे पहले साल 2018 में पुणे में मेटल की बनी एक विशालकाय होर्डिंग फ्रेम अचानक गिर गई थी। जिसके चपेट में आकर चार लोगों की मौत हो गई थी।
Hoardoing Problem in Cities: राजधानी लखनऊ स्थित भारत रत्न अटल बिहार वाजपेयी इकाना क्रिकेट स्टेडियम के पास कल शाम जो दर्दनाक हादसा हुआ, उसे लेकर एकबार फिर शहरों में होर्डिंग्स की जरूरत पर बहस शुरू हो गई है। सोमवार शाम आई आंधी में स्टेडियम के पास लगा विशालकाय होर्डिंग जो कि मेटल से बना था, नीचे सड़क से गुजर रही एक कार पर जा गिरी। इस हादसे में कार के परखच्चे उड़ गए और अंदर बैठे तीन में से दो लोगों की मौके पर ही जान चली गई, जबकि तीसरा शख्स जो कि ड्राइव कर रहा था अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है।
इकाना हादसे ने शहरों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर बेतरतीब ढंग से लगे होर्डिंग्स के खतरे को एक बार भी उजागर किया है। सड़क किनारे लगे होर्डिंग्स के चक्कर में होने वाली ये कोई पहली दुर्घटना नहीं है। इससे पहले साल 2018 में पुणे में मेटल की बनी एक विशालकाय होर्डिंग फ्रेम अचानक गिर गई थी। जिसके चपेट में आकर चार लोगों की मौत हो गई थी।
ट्रैफिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि 20 प्रतिशत सड़क हादसों के लिए ये होर्डिंग्स ही जिम्मेदार होते हैं, जो अमूमन हर शहर के प्रमुख चौक,चौराहों और रास्तों पर लगे होते हैं। इन पर दिखने वाले विज्ञापन को काफी आकर्षक ढ़ंग से तैयार किया जाता है ताकि वहां से हर गुजरने वाले हर शख्स की ध्यान इस और जा सके। गाड़ी चालक कई बार इन होर्डिंग्स में लगे विज्ञापनों या अन्य शुभकामान संदेशो को पढ़ने के चक्कर में हादसे के शिकार हो जाते हैं।
देश में कोई एक ऐसा शहर नहीं है, जहां अनाधिकृत ढंग से होर्डिंग्स न लगाए गए हों। इनमें से ज्यादातार को स्थानीय राजनीतिज्ञों का संरक्षण प्राप्त होता है। इन होर्डिंग्स में ज्यादातर राजनीतिक हस्तियों की जन्मदिवस की बधाई, किसी कंपनी के प्रोडक्ट का विज्ञापन जिसमें कोई प्रसिद्ध या लोकप्रिय चेहरा मौजूद होता है, प्रमुख राजनीतिक नेताओं के आगमन संबंधी स्वागत प्रचार, धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व- त्योहार की शुभकामनाएं लिखी होती हैं। इस तरह के होर्डिंग्स से पूरे शहर को पाट दिया जाता है।
अदालत को देना पड़ा दखल
ऐसा नहीं है कि इन अवैध होर्डिंग्स के खिलाफ कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है। शहरों में नगरपालिका या नगर निगम के पास इससे जुड़े पॉवर होते हैं। उसकी अनुमति के बाद ही शहर में होर्डिंग्स लग सकते हैं। लेकिन भष्ट अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर पूरे शहर को अवैध होर्डिंग्स से पाट दिया जाता है। निगमों की अकमर्ण्यता के कारण मामला अदालत की दहलीज तक पहुंच गया। साल 2017 में इससे जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि जब-जब इनमें शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की बारी आती है, तब इनके पक्ष में प्रभावशाली राजनीतिक धड़ों की दखलअंदाजी के कारण पुलिस-प्रशासन एक्शन कोई एक्शन नहीं ले पाता। साल 2021 में कर्नाटक हाईकोर्ट और 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अवैध होर्डिंगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश राज्य सरकारों को दिए थे।
क्या सरकार को लगा देना चाहिए बैन ?
सड़क किनारे लगे होर्डिंगों में चमकदार विज्ञापन और आकर्षित करने वाली तस्वीरें हर समय दुर्घटना को दावत देती है। होर्डिंग देखने के चक्कर में कई बार ड्राइवर अपना संतुलन खो बैठते हैं और गाड़ी हादसे का शिकार हो जाती है। इसके अलावा शहरों में सड़क के किनारे और हाईवे के बेहद नजदीक लगे इन होर्डिंगों के आंधी में गिरने का खतरा भी बना रहता है। क्योंकि मेटल के बने इनके फ्रेम अक्सर तय मानक के अनुसार नहीं होते हैं। जिसके कारण जब कभी यह भारी भरकम लोहे का ढांचा किसी चीज के उपर गिरता है तो उसे पूरी तरह से ध्वस्त कर देता है।
कुल मिलाकर सरकार अगर पूरी तरह से इसे बैन न भी करे तो कम से कम शहर के मुख्य एवं भीड़-भाड़ वाले रास्तों और हाईवे से दूर लगाने का प्रावधान जरूर करे ताकि भविष्य में इकाना स्टेडियम जैसा जानलेवा हादसा न हो सके।