UP By Election 2024: यूपी की नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा दांव पर
UP By Election 2024: भाजपा, सपा से लेकर बसपा, असद्दुदीन ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद सभी यूपी विधानसभा की इन नौ सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में पूरी जोर आजमाइश लगा रहे हैं।
UP By Election 2024: उत्तर प्रदेश की दस में से नौ रिक्त चल रही विधानसभा सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होना है। यूपी विधानसभा की यह नौ सीटें सभी राजनीतिक दलों के काफी मायने रखती है। राजनीतिक दलों के सियासी भविष्य के लिहाज से यह उपचुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि ये सभी सीटें अवध, पश्चिमी यूपी, बृज से लेकर पूर्वांचल की है। इस उपचुनाव के जरिए राजनीतिक दलों को अपनी साल 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी और जनता के बीच अपनी पकड़ का अंदाजा लग जाएगा।
भाजपा, सपा से लेकर बसपा, असद्दुदीन ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद सभी यूपी विधानसभा की इन नौ सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में पूरी जोर आजमाइश लगा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी जहां इस उपचुनाव के जरिए लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त का हिसाब बराबर करने के फिरार में है।
वहीं समाजवादी पार्टी साल 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त को बरकरार रखने में जुटी हुई है। बसपा जो कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती। वह भी इस उपचुनाव के जरिए अपनी खोई जमीन हासिल करने के लिए प्रयास कर रही है। वहीं ओवैसी मुस्लिम वोट को अपनी तरफ खींचने और यूपी में राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए कवायद कर रहे हैं। तो चंद्रषेखर दलित वोट इस उपचुनाव से दलित वोट को अपने पाले में खड़ा करना चाह रहे हैं।
नौ विधानसभा सीटों के लिए हो रहा उपचुनाव
यूपीकी जिन नौ विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं उनमें गाजियाबाद, खैर, कुंदरकी और मीरापुर सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आती हैं। मझवां और फूलपुर विधानसभा सीट पूर्वांचल की हैं। वहीं मैनपुरी की करहल सीट बृज इलाके में आती है। तो सीसामऊ और कटेहरी सीट अवध क्षेत्र की है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तों इन नौ में से चार सीटें सपा के कब्जे में थीं।
वहीं तीन सीटें भाजपा, एक आरएलडी और एक-एक निषाद पार्टी के खाते में आयी थीं। उपचुनाव में सपा और बसपा ने सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। यूपी उपचुनाव में कांग्रेस सपा को समर्थन दे रही है। वहीं भाजपा आठ और उसकी सहयोगी आरएलडी एक सीट से चुनावी रण में उतरी है। असद्दुदीन ओवैसी के दल एआईएमआईएम ने तीन सीटों पर कैंडिडेट की घोषणा की है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जयंत की प्रतिष्ठा दांव पर
2024 के लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद भाजपा के लिए यह उपचुनाव प्रतिष्ठा से जुड़ गया है। इस उपचुनाव को किसी भी कीमत पर भाजपा जीतने का प्रयास कर रही है। यहीं नहीं यह उपुचनाव यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। इस उपचुनाव में हार मिले या जीत दोनों का ही क्रेडिट सीएम योगी आदित्यनाथ को ही मिलेगा।
भाजपा ने इस उपचुनाव में पांच ओबीसी, दो ब्राहमण, एक ठाकुर और एक दलित को मैदान में उतारा है। इसके जरिए भाजपा सभी जातियों को साधने की कोशिश कर रही है। भाजपा के सहयोगी दल आरएलडी ने पाल समुदाय के प्रत्याशी को उतारा है। साल 2022 में मीरापुर सीट सपा के समर्थन से आरएलडी ने जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार आरएलडी भाजपा के साथ है। ऐसे में यह मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा। मीरापुर सीट पर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के सामने इस सीट पर जीत दर्ज कर खुद की साख बनाये रखना बड़ी चुनौती है।
2027 के लिहाज से सपा के लिए उपचुनाव अहम
यूपी विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इन नौ में से चार सीटें करहल, कटेहरी, सीसामऊ और कुंदरकी सपा के कब्जे की हैं। इन सीटों को अपने पाले में ही रखना और अन्य सीटों पर लोकसभा के फार्मूले के तहत कब्जा करना अखिलेश के लिए चैलेंज से कम नहीं है। सपा ने उपचुनाव में पीडीए फॉमूले के तहत ही चार मुस्लिम, तीन ओबीसी और दो दलित को चुनावी रण में उतारा है। अखिलेश यादव उपचुनाव में पीडीए फॉर्मूले को दोहराते हुए 2027 के विधानसभा चुनाव में इसे हथियार के तौर पर तैयार करने की तैयारी कर रहे हैं। इस तरह उपचुनाव में जीत हासिल कर अखिलेश सियासी माहौल बनाने में जुटे हुए हैं।
खोई जमीन वापस लाना मायावती के लिए चुनौती
चुनाव दर चुनाव बहुजन समाज पार्टी का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। जहां साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को केवल एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा। वहीं साल 2024 के लोकसभा चुनाव में तो बसपा का खाता ही नहीं खुला। ऐसे में बसपा का कोर वोट से उससे छिटक सा गया है। बसपा का वोट शेयर मात्र 09.39 प्रतिषत ही रह गया है जोकि बसपा के माथे पर लकीर लाने के लिए काफी है।
बसपा प्रमुख मायावती ने संगठन को फिर से खड़ा करने और वोटर को जोड़ने के लिए उपचुनाव में उतरने का निर्णय किया। बसपा ने उपचुनाव में तीन ब्राहमण, दो मुस्लिम, दो ओबीसी, एक दलित और एक ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन उपचुनाव में केवल प्रत्याशी उतारने मात्र से ही जीत का अंदाजा नहीं लग सकता। जब तक बसपा प्रमुख मायावती खुद जनता के बीच न पहुंचे। लेकिन बसपा प्रमुख ने एक भी प्रचार नहीं किया। ऐसे में इस उपचुनाव में भी बसपा जीत का स्वाद चख सकेगी। इस पर थोड़ा संषय ही है। लेकिन यह उपचुनाव बसपा प्रमुख के लिए अग्निपरीक्षा की तरह ही है।
ओवैसी और चंद्रशेखर के लिए भी है चैलेंज
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी की मीरापुर, कुंदरकी और गाजियाबाद विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं। इन तीनों ही मुस्लिम बहुल सीटों के जरिए ओवैसी का मुख्य मकसद इस वर्ग पर अपनी पकड़ मजबूत करना है। ओवैसी की तरह दलित नेता चंद्रशेखर आजाद भी उपचुनाव में अपनी जगह को और मजबूत करने में जुटे हुए है। उन्होंने मीरापुर, कुंदरकी, खैर सहित कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। नगीना सांसद चंद्रशेखर इस उपचुनाव के जरिए दलित वोट को साधने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।