मुंबई। महाराष्ट्र में चल रही राजनीतिक उठापटक के बीच पिछले सप्ताह कुछ नए समीकरण बनते हुए भी नजर आये हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सप्ताह के पूर्वार्द्ध में मनसे प्रमुख राज ठाकरे से मुलाकात की थी। वैसे तो यह मुलाकात बंद दरवाजों के पीछे हुई है, लेकिन इस मुलाकात से कई कयास लगाए जा रहे हैं।
राज ठाकरे - फडणवीस की मुलाकात
इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक गलियारों में दोनों दलों के साथ आने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। इस बीच ऐसी खबरे भी आ रही हैं कि मनसे अपनी पार्टी में कई तरह से आमूल चूल परिवर्तन लाने जा रही है। सूत्रों के हवाले से ऐसी खबरें भी आयी हैं कि मनसे अपने झण्डे में भारी फेरबदल करने जा रही है। मनसे के झण्डे में अभी तक नीला, भगवा और हरा रंग शामिल है। लेकिन अब खबरें आ रही हैं मनसे का झण्डा भगवा किया जा सकता है और साथ ही साथ इस पर शिवजी महाराज का चित्र भी होगा। दरअसल इन सभी आ रही खबरों के जरिये ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि मनसे मात्र मराठी मानुस के अपने मानक से विचलन करते हुए हिंदुत्व की राह पकड़ सकती है।
पिछले मंगलवार को पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस मुलाकात को एक औपचारिक मुलाकात कह कर टाल गए थे। लेकिन गुरूवार को उनकी बात से कुछ बात निकलती नजर आ रही है। गुरूवार को फडणवीस ने कहा कि फिलहाल राज ठाकरे की पार्टी से गठबंधन संभव नहीं है, लेकिन यदि वे अपनी विचारधारा बदलते हैं तो गठबंधन संभव भी है। सत्य तो यह है कि महाराष्ट्र में शिवसेना से भाजपा की दोस्ती टूटने के बाद अब भाजपा एक नए दोस्त की तलाश कर रही है और वह दोस्त मनसे भी हो सकती है।
मनसे की छवि
अभी तक की स्थिति में मनसे की छवि एक कट्टर मराठी पार्टी की रही है। उत्तर भारतीयों का जबरदस्त विरोध करके ही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की इस छवि का निर्माण किया गया है। लेकिन यहाँ विरोधाभास यह है कि भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र एवं मुंबई में समर्थन प्रदान करने वालों में एक बड़ा तबका उत्तर भारतीयों का है। इसलिए अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि मनसे - भाजपा की युति होती है, तो मनसे मात्र मराठी मानुस के अपने मानक से विचलन करते हुए हिंदुत्व की राह पर आ सकती है। वैसे भी मनसे के लिए अपनी पार्टी का पुनर्गठन करना आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान में पार्टी की स्थिति कुछ अच्छी नहीं है, और ऐसे ही चलता रहा तो उसका अस्तित्व संकट में आ जाएगा।
वैसे तो यह राजनीति है और इसमें कुछ भी संभव है, लेकिन लोकसभा चुनावों के दौरान, चुनाव न लड़ते हुए भी राज ठाकरे का रैलियों के माध्यम से नरेंद्र मोदी और भाजपा का विरोध अभी तक लोगों को याद है। इन रैलियों में भारी भीड़ इकठ्ठा हो रही थी और राज ठाकरे ने नरेंद्र मोदी के "तब और अब बयानों" के तुलनात्मक वीडियोज के जरिये खूब तालियां बटोरी थीं। जबकि 2014 के लोकसभा चुनावों में राज ठाकरे ने नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन किया था।
विरोधाभास के बावजूद आस
विरोधाभास अपनी जगह पर है, पर वर्तमान स्थितियों में महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ भी संभव है ? भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना कांग्रेस-राकांपा से हाथ मिला सकती है तो अब महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ भी संभव है। कांग्रेस-राकांपा के साथ मिलकर सरकार चला रही शिवसेना के नेता लगातार इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं जिससे उसकी हिंदुत्ववादी छवि को नुकसान पहुंच रहा है।
भाजपा नेता ने यह भी कहा कि राज ठाकरे से हाथ मिलाने से पहले पार्टी को 10 बार सोचना होगा। महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों की बड़ी आबादी है जो फिलहाल भाजपा के साथ है। उन्होंने कहा कि यदि राज ठाकरे मनसे की छवि बदलने के लिए तैयार हों तो कुछ हो सकता है पर इसके लिए उन्हें अपना उत्तर भारतीय विरोधी रवैया पूरी तरह से बदलना होगा।
23 जनवरी की सभाएं
इस बीच 23 जनवरी को बालासाहेब की जयन्ती है और इस दिन शिवसेना और मनसे दोनों मुंबई में एक बड़ी सभा करने जा रहे हैं। इन सभाओं में बड़ी संख्या में महाराष्ट्र के लोग इकट्ठे होंगे। शिवसेना नेता एवं मंत्री अनिल परब ने इस रैली के सन्दर्भ में कहा भी है कि शिवसेना का मुख्यमंत्री बनने के साथ उद्धव ठाकरे द्वारा बालासाहेब को दिया गया एक वचन पूरा किया गया है। इस रैली में इस वचनपूर्ती के लिए उद्धव ठाकरे का सम्मान किया जाएगा। शिवसेना की यह रैली बांद्रा कुर्ला काम्प्लेक्स में स्थित मैदान पर आयोजित की गई है।
जबकि मनसे द्वारा भी 23 जनवरी को गोरेगाँव में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया है। मनसे की इस रैली को राज ठाकरे सम्बोधित करेंगे और ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि मनसे की इस सभा के माध्यम से राज ठाकरे अपनी भविष्य की रणनीति पर भी बात कर सकते हैं। 23 जनवरी को मुंबई में मनसे के इस सम्मलेन से पूर्व महाराष्ट्र की राजनीति के इन दो दिग्गजों का मिलना अहम् माना जा रहा है। सूत्रों की मानें तो शिवसेना के कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिलाने के बाद भाजपा राज्य में अपने हिंदुत्व के मुद्दे को धारदार बनाए रखने के लिए मनसे को अपने साथ लेने की तैयारी में है।