Meerut News: देश में हर साल 1300 करोड़ का अनाज खा रहे कीड़े, ऐसे करें बचाव
Meerut News: भारत में वार्षिक भण्डारण हानि का अनुमान 14 मिलियन टन है जिसकी कुल अनुमानित क्षति लगभग रू 7000 करोड़ में से अकेले कीटों द्वारा लगभग 1300 करोड़ की क्षति होती है।
Meerut News: उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) मेरठ मंडल मेरठ अशोक कुमार यादव ने बताया कि कृषि पद्धति में बुवाई, जुताई से लेकर कीट रोग प्रबंधन, पोषण प्रबंधन तथा कटाई के बाद उपज का भण्डारण भी प्रमुख कार्यों में शामिल है। असुरक्षित अन्न भण्डारण में कीडे़, कृतक, सूक्ष्म जीवों आदि के कारण फसल कटाई के बाद होने वाली क्षति खाद्यान्न का लगभग 10 प्रतिशत होता है। भारत में वार्षिक भण्डारण हानि का अनुमान 14 मिलियन टन है जिसकी कुल अनुमानित क्षति लगभग रू 7000 करोड़ में से अकेले कीटों द्वारा लगभग 1300 करोड़ की क्षति होती है। फसल कटाई के उपरान्त भण्डारण में होने वाली क्षति में से अकेले कीटों का योगदान 2-4.2 प्रतिशत है। भारत में भण्डारित उत्पादों में कीटों की लगभग 100 प्रजातियों आर्थिक क्षति पहुंचाने का कारण बनती है। अतः सुरक्षित अन्न भण्डारण के उपाय करने से प्रतिवर्ष होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है तथा अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त किया जा सकता है।
इस वजह से बढ़ते हैं कीट
भण्डारण में यदि 10 प्रतिशत से अधिक नमी होती है तो कीटों की संख्या बढ़ने लगती है तथा अनाज में फफूँद भी तेजी से बढ़ती है जिससे अनाज में जमाव क्षमता कम हो जोती है और यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होते है। आक्सीजन की उपलब्धत यदि भण्डारण कक्ष या पात्र में पर्याप्त आक्सीजन उपलब्ध है तो कीटों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है। जिसको नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। कीटों के विकास के लिए 25-27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। भण्डारण कक्ष में उपयुक्त तापमान बनाये रखने के लिए कीट हीट स्पॉट विकसित करते है। भण्डारण कक्ष का तापमान कम रखते हुए कीटों का विकास रोका जा सकता है।
अनाज घर में यहां से आते हैं कीड़े
खेत से सूंड वाली सुरसरी, छोटा पतंगा एवं पल्स बीटल बोरों या खेत में खड़ी फसल के दानों पर जो किसान की बिना जानकारी के विभिन्न अवस्थाओं में भण्डारण कक्ष में आ जाते है। मड़ाई के स्थान पर कुछ कीट थेसिंग फ्लोर पर पहले से ही उपलब्ध रहते हैं जो मड़ाई के समय अनाज के साथ भण्डारण कक्ष में आ जाते है। कुछ कीड़े ट्रैक्टर, ट्राली, बैलगाड़ी आदि में पहले से ही छिपे रहते है जो अनाज के साथ अनाज घर में आ जाते है। पुराने भण्डार कक्ष में कुछ कीट पहले से ही छिपे रहते है जो अन्न भण्डारण के समय अनुकूल परिस्थितियों देखकर अनाज पर संक्रमण कर दते हैं।
किड़ों से बचने के उपाय
यदि गोदाम में भण्डारण करना है तो फर्श पर 2.5 फिट मोटी, साफ, सूखा एवं नये भूत्ते की तह लगाकर बोरों की छल्ले दिवार से 2.5 फिट की दूरी पर लगाना चाहिए जिससे गोदाम में नमी से बचत होती है। यदि भण्डारण कक्ष में बोरियों में भण्डारण करना है तो पूरी ऊँचाई का 1/5 भाग छोडकर ही बोरियों की छल्ले लगाना चाहिए। कीटों की सुरक्षा की दृष्टि से एल्यूमीनियम फास्फाइड पाउडर पाउच 50 प्रतिशत 10 ग्राम पैकिंग का 150 ग्राम/100 घनमीटर या एल्यूमीनियम फास्फाइड 15 प्रतिशत 12 ग्राम पैकिंग का 600 ग्राम/100 घनमीटर की दर से बोरियों के बीच रख देते हैं तथा भण्डारण कक्ष को अच्छी तरह से बंद कर वायु रोधी कर देना चाहिए। एल्यूमीनियम फास्फाइड पाउडर पाउच 56 प्रतिशत के पैकेट को किनारे से काटकर अन्दर पाउच को निकालकर वैसे ही बोरियों के बीच में रखना चाहिए जबकि एल्यूमीनियम फास्फाइड 15 प्रतिशत की टेबलेट को कपडे़ में लपेट कर रखना चाहिए। यदि अनाज का भण्डारण कुठलो या बखारी में करना है तो एल्यूमीनियम फास्फाइड 50 प्रतिशत 10 ग्राम पाउडर की एक पाउच या एल्यूमीनियम फास्फाइड 15 प्रतिशत 12 ग्राम पैकिंग का एक टेबलेट का मे०टन अनाज में पूर्व में बताये गये तरीके अनुसार अनाज के बीच में रखकर कुठला या बखारी को पूरी तरीके से वायु रोधी कर देना चाहिए।
बचाव से मिलेगा उचित मूल्य
भण्डारण पात्रों की पेंदी पर बीच-बीच में एवं अनाज के साथ नीम की सूखी पत्तियों रखने पर कीट का प्रकोप नहीं होता है। अनाज को बखारी या बोरों में भण्डारित करने से पूर्व नीम सीड करनल/निमोली पाउडर 1 किग्रा० प्रति कुंतल अनाज की दर से मिला देने पर कीट का प्रकोप नहीं होता है। प्याज और आलू के भण्डारण से पूर्व फर्श पर बालू की मोटी तह बिछाकर रखने से उच्च तापक्रम से बचा जा सकता है। बीज में प्रयोग हेतु भण्डारित किये जाने वाले अनाज को मैलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर 250 ग्राम प्रति कुंतल मिलाकर भण्डारित करना चाहिए। उपर्युक्त दिये गये सुझाव एवं संस्तुतियों में रसायनों का प्रयोग किसी तकनीकी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए। सुरक्षित अन्न भण्डारण से कीटो द्वारा अनाज/उपज की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती है जिससे कृषको को अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त होता है।