Mission 2024: BSP में कभी भी हो सकता है बड़ा विस्फोट! कई नेता कर सकते हैं पार्टी से किनारा
Mission 2024: बसपा के अधिकांश नेता खासकर सांसद टिकट के दावेदार जिनमें वर्तमान सांसद भी शामिल हैं चाहते हैं कि पार्टी को लोकसभा चुनाव में तालमेल करके ही चुनावी मैदान में उतरना चाहिए।
Meerut News: बहुजन समाज पार्टी में कभी भी बड़ा विस्फोट हो सकता है। सूत्रों की मानें तो 15 जनवरी तक यदि बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ने का अपना निर्णय नहीं बदला तो बसपा के कई बड़े नेता जिनमें पार्टी के सांसद भी शामिल हैं पार्टी छोड़ कर जा सकते हैं। दरअसल, बसपा के अधिकांश नेता खासकर सांसद टिकट के दावेदार जिनमें वर्तमान सांसद भी शामिल हैं चाहते हैं कि पार्टी को लोकसभा चुनाव में तालमेल करके ही चुनावी मैदान में उतरना चाहिए। यही वजह है कि पार्टी के कई सांसद भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी की तरफ नरम रुख दिखा रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों का घटनाक्रम देखें तो बसपा के सांसद सपा-भाजपा के बड़े चेहरों के इर्द-गिर्द देखने को मिले हैं। संसद में भी बसपा सांसद नरेंद्र मोदी सरकार की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। मौजूदा लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के 10 सांसद हैं। इनमें अमरोहा के सांसद दानिश अली को कांग्रेस के प्रति प्रेम दिखाना भारी पड़ा। बसपा ने उनको पार्टी से निकाल दिया है। बहुजन समाज पार्टी के बिजनौर के सांसद मलूक नागर ने बजट सत्र पर लोकसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी। मलूक ने यहां तक कहा था कि “बजट में आम लोगों को राहत दी गई हैं, जिससे बजट शाहरुख खान की फिल्म पठान की तरह हिट बन गया है।
मलूक नागर के भी भारतीय जनता पार्टी में जाने की अटकले गर्म हैं। हाल ही में जौनपुर के सांसद श्याम नारायण यादव ने खुलकर कहा कि पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव में तालमेल करके लड़ना चाहिए। यही नहीं श्याम सिंह यादव यूपी के सीएम योगी से भी मुलाकात कर चे हैं, जिससे उनके बीजेपी में जाने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि अभी तक उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। अंबेडकरनगर के बसपा सांसद रितेश पांडे समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं। मायावती के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि आखिर किस-किस को पार्टी से निकाला जाए। क्योंकि पार्टी के करीब-करीब सभी सांसद बसपा के अकेले लड़ने के पक्ष में बिल्कुल भी तैयार नहीं दिख रहे हैं। वेस्ट यूपी से जुड़े पार्टी के वरिष्ठ नेता तालमेल करके चुनाव लड़ने की पार्टी नेताओं की सलाह को गलत नहीं मानते हैं।
उनका कहना हैं कि यह बिल्कुल सही है कि बसपा के पास अब बहुत सीमित वोट आधार बचा है, जिसकी मदद से वे किसी दूसरी पार्टी या गठबंधन को तो फायदा पहुंचा सकती है लेकिन खुद चुनाव नहीं जीत सकती है। इसलिए बसपा के सांसद तालमेल के लिए दबाव बना रहे हैं। खास बात यह भी की पार्टी के मुस्लिम सांसदों को छोड़ दिया जाए तो बाकी सांसद किसी भी पार्टी के साथ जाने के लिए तैयार है फिर वह चाहे बीजेपी ही क्यों ना हो। राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि अकेले दम पर बसपा का चुनाव मैदान में उतरना आत्महत्या करने जैसा होगा।
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ी गई 38 सीटों में से 10 सीटें जीती थीं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले उतरने पर बसपा शून्य पर सिमट कर रह गई थी। यही कारण माना जाता है कि मायावती ने पार्टी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अपने धुर विरोधी सपा से हाथ मिलाया था और सूबे की 80 में से 38 सीटों पर ही चुनाव लड़ने को तैयार हो गईं थी। 2022 के विधानसभा चुनावों में भी बसपा ने यूपी में अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया था, केवल एक सीट जीती थी। बहरहाल,मायावती पार्टी को बड़ा टूट से बचाने के लिए क्या निर्णय लेती है इस पर सभी की नजरें लगी हैं।