Meerut: गंगा में बढ़ा सफाई दूतों का कुनबा, छोड़े गए 500 कछुए, कमिश्नर ने किया हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का दौरा

Meerut News: उत्तर प्रदेश में 15 प्रजाति के कछुए हैं। इनमें से 12 प्रजाति के कछुए हस्तिनापुर सेंक्चुरी क्षेत्र में पाए जाते हैं। छह प्रजाति के कछुए विलुप्त होने की कगार पर हैं। उनके संरक्षण का प्रयास जारी है।

Report :  Sushil Kumar
Update: 2024-01-03 17:30 GMT

मेरठ की कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे. निरीक्षण करते हुए (Social Media)

Meerut News: सफाई का दूत कहे जाने वाले कछुओं का कुनबा गंगा में बढ़ने जा रहा है। हस्तिनापुर में बुधवार (03 जनवरी) को वन संरक्षक एवं डीएफओ मेरठ ने वन्य जीव अभ्यारण्य में गंगा नदी में विश्व प्रकृति निधि (wwf) संस्था के साथ मिलकर 500 कछुआ छोड़े। साथ ही, हस्तिनापुर में नेचर ट्रेल, ट्रेनिंग सेंटर एवं रेस्क्यू सेंटर का निरीक्षण भी किया। 

डीएफओ राजेश कुमार ने बताया कि, मेरठ की कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे. (Selva Kumari J.) ने आज हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का दौरा किया। इस दौरान हस्तिनापुर के भीम कुंड में गंगा नदी में 500 कछुओं को छोड़ा गया ।पारिस्थितिक स्थिति का आकलन करने के लिए नौकायन किया। नेचर ट्रेल, वन परिसर, व्याख्या केंद्र और कछुआ नर्सरी का निरीक्षण किया। एफ डी एफ ओ राजेश कुमार के अनुसार, इसके बाद कमिश्नर ने बचाव एवं पुनर्वास केंद्र कार्यों का भी निरीक्षण किया।

छह प्रजाति के कछुए विलुप्त होने की कगार पर 

आपको बता दें, दुनिया में करीब 300 प्रजाति के कछुए पाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में 15 प्रजाति के कछुए हैं। इनमें से 12 प्रजाति के कछुए हस्तिनापुर सेंक्चुरी क्षेत्र में पाए जाते हैं। छह प्रजाति के कछुए विलुप्त होने की कगार पर हैं। उनका संरक्षण जरूरी है। इस लिहाज से पालन केंद्र चलाया जा रहा है। कछुओं के कई महत्व हैं। इसे नदी का सफाई कर्मचारी भी कहा जाता है। यह मांसाहारी और शाकाहारी होते हैं। ये नदी की खाद्य श्रृंखला के उच्च उपभोक्ता हैं।

2013 में खोला गया था पहला कछुआ पालन केंद्र

बता दें कि, गंगा नदी के किनारे वर्ष 2013 में हस्तिनापुर में पहला कछुआ पालन केंद्र खोला गया था। केंद्र की सफलता के बाद विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की टीम ने कछुओं के संरक्षण के लिए तीन हैचरियां खोलने का निर्णय लिया। इसके बाद मुजफ्फरनगर के हंसावाला में, मेरठ के मकदूमपुर में और बुलंदशहर के कस्बा आहार में गंगा किनारे स्थापित की गईं। इनका संचालन में वन विभाग की मदद डब्ल्यूडब्ल्यूएफ कर रही है।

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