Loksabha Elections 2024: भाजपा के साथ मिलकर क्या पश्चिम में चौधराहट कायम रख पाएंगे जयंत?

Loksabha Elections 2024: भाजपा के साथ जाने की बात है तो यूपी में भाजपा और रालोद ने साल 2002 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था।

Report :  Sushil Kumar
Update:2024-02-09 13:32 IST

राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी (Social Media)

Loksabha Elections 2024: राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के भाजपा में जाने की अटकलों ने पश्चिमी यूपी की राजनीति में हलचल मचा रखी है। लेकिन यहां एक बड़ा सवाल सामने है कि क्या जयंत चौधरी भाजपा के साथ मिल कर वेस्ट यूपी में परिवार की चौधराहट को कायम रख पाएंगे? बता दें कि आरएलडी का सियासी आधार पश्चिमी यूपी में ही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी को 8 सीटें मिली थी, जो खतौली जीत के बाद 9 विधायकों वाली पार्टी बन गई है। जाहिर सी बात है कि जयंत के बीजेपी में आने से बीजेपी के जाट नेताओं की मुश्किल बढ़ेगी। 

वैसे, बीजेपी के साथ आरएलडी पहले भी हाथ मिला चुकी है। दरअसल, चौधरी परिवार राजनीतिक नफा-नुकसान देख पाला बदलता रहा है। जहां तक भाजपा के साथ जाने की बात है तो यूपी में भाजपा और रालोद ने साल 2002 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था। यही नहीं 2009 में ही जयंत चौधरी अपना पहला लोकसभा चुनाव भी मथुरा लोकसभा चुनाव क्षेत्र से भाजपा के साथ गठबंधन में ही जीत सके थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने रालोद को सात सीटें दी थी, जिनमें पांच पर रालोद ने जीत दर्ज की। बागपत से अजित सिंह, बिजनौर से संजय चौहान, मथुरा से जयंत सिंह, हाथरस सुरक्षित सीट से सारिका बघेल, अमरोहा से देवेंद्र नागपाल सांसद चुने गए थे। जबकि नगीना से मुंशीराम पाल और मुजफ्फरनगर से अनुराधा चौधरी चुनाव हार गई थीं। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनीं और करीब ढाई साल बाद रालोद भी सरकार का हिस्सा बन गया। चौधरी अजित सिंह को केंद्रीय उड्डयन मंत्री बनाया गया था।

इससे पहले 2002 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन रहा था, जब बीजेपी के साथ उनका गठबंधन था और उन्होंने 14 सीटें जीतीं थी। लेकिन चुनाव के बाद दोनों दलों की राह फिर अलग हो गई। इसके बाद 2007 में आरएलडी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और 10 सीटों पर उनके उम्मीदवार जीते। 2012 का चुनाव आरएलडी ने कांग्रेस के साथ लड़ा और 9 सीटें जीती। अगर भाजपा के साथ आरएलडी जाती है तो पिता की मौत के बाद ये जयंत चौधरी का पहला चुनाव होगा जब उनकी पार्टी भाजपा के साथ कोई मिलकर चुनाव लड़ेगी।

पश्चिमी यूपी को जाट और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है। यहां लोकसभा की कुल 27 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि 8 सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा किया था। इनमें 4 सपा और 4 बसपा के खाते में आई थी। लेकिन, आरएलडी को किसी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी। यहां तक कि जयंत चौधरी अपने पुश्तैनी क्षेत्र बागपत से बीजेपी के डॉ. सतपाल मलिक से 23 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। मथुरा से आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमा मालिनी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह जाटों के लिए बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली मुजफ्फरनगर सीट से अजित सिंह पहली बार चुनाव लड़े थे और बीजेपी के संजीव बालियान से 6500 से ज्यादा वोटों से हार गए थे। अजित और जयंत चौधरी को सपा-बसपा के अलावा कांग्रेस का भी समर्थन मिला था। यह लगातार दूसरा आम चुनाव था, जब चौधरी परिवार को खाली हाथ रहना पड़ा था। इससे पहले 2014 के चुनाव में भी आरएलडी को निराशा हाथ लगी थी और एक भी सीट नहीं मिली थी। शायद यही मजबूरी एक बार फिर आरएलडी को बीजेपी के करीब ले आई।

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