Meerut News: INDIA और एनडीए को ना बोला! अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान करने वाली बसपा को साथी की तलाश

Meerut News: 2014 में 20 फीसदी वोट मिलने के बाद भी एक भी सीट नहीं हासिल करने वाली बसपा का वोट अब घटकर 13 से 14 फीसदी के करीब पहुंच गया है।

Update:2023-07-30 15:42 IST

Meerut News: ‘इंडिया’ और एनडीए को ना बोल अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती को लगता है कि इस कड़वी सच्चाई का ज्ञान हो गया है कि 2024 का चुनाव बगैर किसी से तालमेल के अकेले दम पर बिल्कुल नहीं लड़ा जा सकता है। इसलिए मायावती अगले लोकसभा चुनाव से पहले किसी तरह से तालमेल करने का रास्ता तलाशने में जुट गई है।

राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव भी अकेले लड़ने इरादा

मायावती ने इसका संकेत देते हुए कहा है कि वे चुनाव के बाद तालमेल कर सकती हैं। हालांकि अभी उन्होंने राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का अपना इरादा नहीं छोड़ा है। लेकिन, लोकसभा चुनाव उन्होंने अकेले अपने दम पर लड़ने का इरादा त्याग दिया है। ऐसा उनके करीबी नेताओं का कहना है।

लोकसभा चुनाव में 10 सीटें दांव पर

दरअसल, आगामी आम चुनाव से पहले इस साल के अंत तक जिन चार राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होना है। उन राज्यों में उनका कुछ भी दांव पर नहीं है। इसलिए इन राज्यों में मायावती अकेले चुनाव लड़ने को लेकर बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं। लेकिन, लोकसभा चुनाव में उनकी 10 सीटें दांव पर हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी (सपा) और बसपा ने मिलकर लड़ा था। उस चुनाव में बसपा ने 10 सीटों पर जबकि सपा ने महज़ पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। उससे पहले 2014 में अकेले लड़ी थीं और 20 फीसदी वोट लाने के बावजूद उनका एक भी सांसद नहीं जीता था।

BSP के अकेले लड़ने का फायदा बीजेपी को मिला!

अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम मायावती ने 2022 में भी लिया था, जब उन्होंने सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव बसपा ने अकेले ही लड़ा था। लेकिन उसका प्रदर्शन बहुत ही ख़राब रहा। महज़ एक ही सीट पर जीत मिली और वोटों में भी ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई। पार्टी सिर्फ़ 12.7 फ़ीसद वोट ही हासिल कर सकी। विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में लोकसभा की दो और विधानसभा की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव भी उन्होंने अकेले लड़ा। लेकिन सफल नहीं हुई। अलबत्ता, उनके अकेले लड़ने का फायदा बीजेपी को जरुर मिला।

पार्टी सांसदों को लोकसभा चुनाव में बसपा के साफ़ होने का डर

2014 में 20 फीसदी वोट मिलने के बाद भी एक भी सीट नहीं हासिल करने वाली बसपा जिसका वोट अब घट कर 13 से 14 फीसदी के करीब पहुंच गया है। अकेले अगर चुनाव लड़ती है तो यह एक तरह से उसके लिए आत्मघाती बात होगी। क्योंकि 2024 में अकेले लड़कर वे एक भी सीट शायद ही जीत पाएं। इसी आशंका के चलते सपा के साथ गठबंधन के चलते जीते बसपा के सभी 10 सांसदों को अगली बार बसपा के साथ रहकर जीतना मुश्किल लग रहा है। उन्हें लग रहा है कि भाजपा और इंडिया के सीधे मुक़ाबले में विधानसभा की तरह लोकसभा चुनाव में भी बसपा साफ़ हो जाएगी।

जीरो पर आई, तो मायावती की राजनीति खत्म

इसलिए पार्टी के अंदर से भी मायावती पर तालमेल का भारी दबाव है। अमरोहा से पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली पहले ही मायावती से गठबंधन में शामिल होने की अपील कर चुके हैं। उनको पता है कि पिछली बार समाजवादी से तालमेल होने की वजह से ही वे जीते थे और अगर मायावती अकेले लड़ीं तो वे नहीं जीत सकते हैं। जाहिर है कि अगर लोकसभा में भी बसपा जीरो पर आती हैं तो पार्टी में भारी भगदड़ मचनी तय है। ऐसे में मायावती की राजनीति खत्म होगी। इस सच्चाई से वाकिफ मायावती अगले लोकसभा चुनाव से पहले किसी तरह से तालमेल करने का रास्ता तलाश रही हैं। अब यह देखने की बात होगी कि 2024 में उनका साथी कौन होगा। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस 2024 में बसपा की साथी हो सकती है। बताते हैं कि इस संबंध में दोनो तरफ से बातचीत का सिलसिला शुरु हो भी चुका है। दरअसल, मायावती कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लेकर चिंता में हैं। उनको लग रहा है कि आने वाले चुनाव में दलित वोट खड़गे की वजह से कांग्रेस की ओर जा सकता है। वैसे, उनके विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की भी अटकले हैं। अगर ऐसा होता है तो ‘इंडिया’ को बड़ा फायदा हो सकता है। बहरहाल, अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि अपनी पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए मायावती कौन सी नई राजनीतिक पटकथा लिखती हैं।

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