UP Politics: बसपा से निकाले गए दानिश अली का अगला कदम क्या कांग्रेस होगा?

Danish Ali News: साल 2019 में मुसलमानों का रुझान सपा की तरफ था। ऐसे में दलित-मुस्लिम समीकरण में दानिश अली चुनाव जीतने में सफल हो गए थे। लेकिन,वर्तमान माहौल में दलित भी पहले की तरह बसपा में पूरी तरह नहीं है। मुसलमानों का रुझान कांग्रेस की तरफ अधिक है।

Report :  Sushil Kumar
Update:2023-12-09 20:49 IST

Danish Ali (Social Media)

UP Politics: बहुजन समाज पार्टी (BSP) से निकाले जाने के बाद सबकी नजरें वेस्ट यूपी के कद्दावर मुस्लिम नेता अमरोहा से सांसद कुंवर दानिश अली के अगले कदम को लेकर है। राजनीतिक हलकों में कहा यही जा रहा है कि उनका (दानिश अली) अगला ठिकाना कांग्रेस हो सकती है।

इशारों में दानिश अली ने बहुत कुछ कहा 

दरअसल, संसद में बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी (BJP MP Ramesh Bidhuri) द्वारा अपशब्दों का इस्तेमाल किए जाने के बाद दानिश अली (Kunwar Danish Ali) से मिलने राहुल गांधी पहुंचे थे। इसके बाद वह कई मौके पर संसद में कांग्रेस के साथ खड़े नजर आए। बसपा से निकाले जाने के बाद एक्स पर दानिश अली की जो प्रतिक्रिया सामने आई है उससे एक बात साफ है कि उनका अगला ठिकाना कुछ भी हो। लेकिन,उनका मन अब बसपा में रहने का बिल्कुल भी नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने बसपा से अपने निष्कासन पर पार्टी नेतृत्व को किसी तरह की सफाई देने की बजाय पार्टी नेतृत्व द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज ही नहीं किया, बल्कि पार्टी नेतृत्व की ताजा कार्रवाई को ही दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए एक तरह से खुद को शहीद के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है।

लोकसभा चुनाव से पहले बसपा से इस्तीफा तय था

वैसे कुंवर दानिश अली के नजदीकी लोगों की मानें तो बसपा ना भी निकालती तो भी दानिश अली का लोकसभा चुनाव से पहले बसपा से इस्तीफा तय था। वजह बसपा का लोकसभा चुनाव में अकले लड़ने का निर्णय है। कुंवर दानिश अली यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि बिना गठबंधन के वे बसपा के टिकट पर दोबारा जीत नहीं पाएंगे। इसकी चुगली अमरोहा संसदीय क्षेत्र के पिछले चुनावो के आंकड़े भी करते हैं। यहां अकेले लड़कर न तो सपा जीत सकती है और ना ही बसपा. अमरोहा सीट पर बसपा को अकेले लड़ने पर दो लाख के नीचे वोट मिलते रहे हैं और सपा को दो लाख के थोड़ा ऊपर. इन दोनों में वोटों के बटवारे से तीसरी पार्टी जीतती रही. साल 2004, 2009 और 2014 का चुनाव इसकी बानगी हैं। साल 2019 में जब बसपा और सपा ने साथ चुनाव लड़ा तब उसके उम्मीद्वार दानिश अली जीत सके।

मुस्लिम रुझान को देखकर तो नहीं बदला पाला 

साल 2019 में मुसलमानों का रुझान सपा की तरफ था। ऐसे में दलित-मुस्लिम समीकरण में दानिश अली चुनाव जीतने में सफल हो गए थे। लेकिन,वर्तमान माहौल में दलित भी पहले की तरह बसपा में पूरी तरह नहीं है। वहीं मुसलमानों का रुझान भी कांग्रेस की तरफ अधिक है। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इसका प्रमाण है। इन चुनावों में बेशक कांग्रेस को एक राज्य में ही जीत मिली हो।लोकिन,जिस तरह मुस्लिमों का रुझान कांग्रेस की तरफ रहा है उससे यह साफ है कि देश में फिलहाल मुसलमानों की पहली पसंद कांग्रेस ही है। इसीलिए ये कहा जा रहा है कि मायावती के अकेले लड़ने के ऐलान के बाद दानिश अली को अपनी हार साफ दिखाई दे रही थी। वे पाला बदलने के मूड में थे ही. लेकिन, मायावती ने उनके अगले कदम को भांप लिया और झटके में बहुजन समाज पार्टी से निकालने का पत्र जारी कर दिया।

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