Shardiya Navratri 2023: नवरात्र के प्रथम दिन जयकारे से गूंजा माता विंध्यवासिनी का धाम, भक्तों की जुटी भारी भीड़

Shardiya Navratri 2023: अनादिकाल से भक्तों के आस्था का केंद्र बने विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी का प्रथम दिन शैलपुत्री के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है।

Report :  Brijendra Dubey
Update:2023-10-15 10:30 IST

Shardiya Navratri 2023


Shardiya Navratri 2023: आदिशक्ति जगतम्बा का परम धाम विन्ध्याचल केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि प्रमुख शक्तिपीठ है। वर्ष में पड़ने वाले नवरात्र में लगने वाले विशाल मेले में दूर दूर से भक्त माँ के दर्शन के लिए आते हैं। रविवार को उदया तिथि में शारदीय नवरात्र भोर की मंगला आरती से आरम्भ हो गया। नवरात्र में आदिशक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है । पहले दिन हिमालय की पुत्री पार्वती अर्थात शैलपुत्री के रूप में आदिशक्ति का पूजन अर्चन करने का विधान है। प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ का यह स्वरूप सभी के लिए वन्दनीय है। विन्ध्यपर्वत और पापनाशिनी माँ गंगा के संगम तट पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी शैलपुत्री के रूप में दर्शन देकर अपने सभी भक्तों का कष्ट दूर करती है। नवरात्र के पहले दिन श्रधालुओं ने पूरी श्रद्धा के साथ आदिशक्ति माँ विंध्यवासिनी का दर्शन पूजन किया। घंटी घडियालों से पूरा विन्ध्य क्षेत्र गुंजायमान रहा।

अनादिकाल से भक्तों के आस्था का केंद्र बने विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी का प्रथम दिन शैलपुत्री के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है। शैल का अर्थ पहाड़ होता है कथाओं के अनुसार पार्वती पहाड़ो के राजा हिमालय की पुत्री थी। पर्वत राज हिमालय की पुत्री को शैलपुत्री भी कहा जाता है उनके एक हाँथ में त्रिशूल और दूसरे हाँथ में कमल का फूल है।


भारत के मानक समय के लिए विन्दु के रूप में स्थापित विन्ध्यक्षेत्र में माँ को विन्दुवासिनी अर्थात विंध्यवासिनी के नाम से भक्तों के कष्ट को दूर करने वाला माना जाता है। प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ शैलपुत्री सभी के लिए आराध्य है। आठ दिन माँ दुर्गा मन, वचन, कर्म सहित इस शरीर के नौ द्वार से सभी भक्तों की मनोकामना को पूरी करती हैं । भक्तों को जिस - जिस वस्तुओं की जरूरत होती है वह सभी माता रानी प्रदान करती हैं। विद्वान आचार्य बताते हैं समूचे ब्रम्हांड में इससे आज के दिन साधक के मूलाधार चक्र का जागरण होता है। 

पं० राजन मिश्र ने बताया कि सिद्धपीठ में देश के कोने - कोने से ही नहीं विदेश से आने वाले भक्त माँ का दर्शन पाकर निहाल हो उठते है। दर्शन करने के लिए लम्बी लम्बी कतारों में लगे भक्त माँ जयकारा लगाते रहते हैं। भक्तों की आस्था से प्रसन्न होकर माँ उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं। जो भी भक्त की अभिलाषा होती है माँ उसे पूरी करती हैं। माँ के धाम में पहुंचकर भक्त परम शांति की अनुभूति करते है। उन्हें विश्वास है कि माँ सब दुःख दूर कर देंगी।


नवरात्र में माँ के अलग - अलग रूपों की पूजा कर भक्त सभी कष्टों से छुटकारा पाते हैं। माता के किसी भी रूप में दर्शन करने मात्र से प्राणी के शरीर में नयी उर्जा, नया उत्साह व सदविचार का संचार होता है और माँ अपने भक्तो के सारे कष्टों का हरण कर लेती है । नवरात्र भर विंध्य क्षेत्र में लाखों भक्त माँ का दर्शन पाने के लिए आते रहेगें। 

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