Mission 2022: जाट-मुस्लिम एकता से BJP को हो सकता है नुकसान, रालोद लाभ उठाने को तैयार
पिछले तीन चुनावों से दौड़ता आ रहा भाजपा का विजय रथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट मुस्लिम एकता के कारण रुक सकता है। अगले विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण के बदले माहौल के कारण पार्टी के 'मिशन 2022’ को गहरा झटका लग सकता है।
लखनऊ: पिछले तीन चुनावों सें दौड़ता आ रहा भाजपा (BJP) का विजय रथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western UP) में जाट मुस्लिम एकता के कारण रुक सकता है। अगले विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण के बदले माहौल के कारण पार्टी के 'मिशन 2022' (Mission 2022) को गहरा झटका लग सकता है।
यहां यह बताना जरूरी है कि 2013 के मुजफ्फरनगर कांड के बाद मुस्लिम वोट जहां छिटककर समाजवादी पार्टी बसपा और कांग्रेस के खाते में बंट गया। वहीं जाट वोट पूरी तरह से भाजपा के पाले में आ गया। इसका भरपूर लाभ भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिला जिसके कारण पार्टी का बेहतरीन सफलता हासिल हुई । 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव तथा 2017 के विधानसभा चुनाव जाट वोटों क दम पर भाजपा सत्ता के शिखर तक पहुंच गयी।
इन तीन चुनावों के बाद अब जिस तरह से किसान महापंचायत के बहाने मुजफ्फरनगर में हर हर महादेव और अल्लाह हो अकबर के नारे लगाए गए उससे साफ हो गया कि अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलामानों की आबादी
एक अनुमान के अनुसार जहां तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातिगत आंकड़ों की बात है यहां मुसलमानों की संख्या करीब 20 प्रतिशत है। पश्चिमी यूपी में एक दर्जन सीटे ऐसी हैं, जहां मुसलमानों की आबादी 25 से 51 प्रतिशत तक है। मुसलमानों में कोई अनुसूचित जाति नहीं होती इसलिए इस वर्ग में कोई मुस्लिम जाति शामिल नहीं है। पिछड़ा वर्ग की जो सूची है उसमें नाई, अंसारी, दर्जी, रंगरेज, मिरासी, भिस्ती, कुंजडा, धुनिया फकीर घोसी डफाली धोबी और मलिहार शमिल हैं। लेकिन साक्षरता का प्रतिशत कम होने के कारण यह लोग आरक्षण का भी लाभ नहीं उठा पाते।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिन्दू वोटों में ब्राह्मण पंजाबी, वैश्य, पाल, बघेल, यादव, कोरी, कश्यप जाट गुर्जर जातियां है। इस बेल्ट में 21 प्रतिशत के आसपास दलित है। 13 प्रतिशत यादव, 5 प्रतिशत कुर्मी, 17 प्रतिशत जाटव, 15 प्रतिशत ब्राम्हण 13 प्रतिशत ठाकुर 19.3 प्रतिशत मुसलमान तथा 19.7 प्रतिशत अन्य जातियां है।
राष्ट्रीय लोकदल को मिलेगा लाभ ?
पिछले तीन चुनावों से कमजोर पड़ चुके राष्ट्रीय लोकदल के लिए अगला विधानसभा चुनाव ताकत दे सकता है। किसानों के इस आंदोलन में पार्टी के अध्यक्ष जयंत चौधरी लगातार मौजूद रहे। इसके अलावा चौ अजित सिंह के निधन का भी रालोद को भावानात्मक लाभ मिल सकता है। किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत उनके बेटे चो अजित सिंह ने संभाली और किसानों के दम पर ही कई सालों तक सत्ता से जुडे रहे पर 2014 में 'मोदी उदय' के बाद उनकी राजनीति कमजोर पडती गयी। 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद को केवल एक सीट छपरौली पर ही विजय मिल सकी। लेकिन रालोद विधायक ने बाद में भाजपा में विलय कर लिया। इसी तरह 2019 में भी रालोद का प्रदर्शन दयनीय रहा और उसे एक भी सीट नहीं मिल सकी।
इसके बाद उनके बेटे जयंत चौधरी ही उनकी विरासत संभाल रहे हैं, लेकिन अब तक किसानों को लेकर उन्होंने कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया। अब इस आंदोलन के बहाने वह अगले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल को चुनावी लाभ दिलाना चाहते हैं। जयंत चौधरी ने किसानों को अपने दादा चौ चरण सिंह और पिता स्व अजितसिंह के किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के वर्षो पुराने सम्बन्धों का हवाला देकर आंदोलन से भावानात्मक रूप से जोड़ने का प्रयास किया है।