लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थन में खड़े संघ परिवार को विश्व हिन्दू परिषद् के नेता प्रवीण तोगड़िया से तगड़ा झटका लगा है। इन दोनों के न चाहने पर भी तोगडिय़ा ने फिर से विश्व हिन्दू परिषद् की सर्वोच्च कुर्सी हथिया ली है। हालांकि तोगडिय़ा को हटाने के लिए पूरा जोर लगा दिया गया था।
सर्वविदित है कि तोगडिय़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक हैं। उनका मानना है कि हिंदुत्व के मुद्दों को मोदी ने किनारे लगा दिया है। मोदी की नाराजगी के कारण ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इस बार भुवनेश्वर के अधिवेशन में चुनाव करा कर तोगडिय़ा को विदा कर देना चाहता था। तीन साल पर होने वाले इस बार के इस चुनाव में संघ ने मोदी समर्थक हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल जस्टिस वी. एस. कोगजे और दूसरा नाम जगन्नाथ शाही को अपने पैनल में उतारा लेकिन दोनों ही बुरी तरह हार गए।
तीन साल के लिए वीएचपी के अध्यक्ष राघव रेड्डी और अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा को ही बनाना पड़ा। जानकार इसे अब उदार हिंदुत्व और मध्यम मार्गी हिंदुत्व की राजनीति के ध्रुवीकरण के रूप में देख रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद संघ का ही एक आनुषांगिक संगठन है और ऐसे में संघ की न चल पाना गंभीर बात तो है ही।
भुवनेश्वर में तीन दिन की राष्ट्रीय बैठक में वीएचपी के अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष का भी फैसला होना था। संघ सूत्रों के मुताबिक मोदी समर्थक खेमा नहीं चाहता था कि प्रवीण तोगडिय़ा को फिर से वीएचपी का अध्यक्ष बनाया जाए। सूत्रों के अनुसार इस संबंध में 13 दिसम्बर को संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों की दिल्ली में मीटिंग हुई थी।
इस मीटिंग में प्रवीण तोगडिय़ा को वीएचपी अध्यक्ष पद से हटाने के लिए दो नाम सामने करने का फैसला हुआ। तय फैसले के अनुसार ही भुवनेश्वर में हुई बैठक में अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष के लिए दो नाम सामने किए गए। एक नाम हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल जस्टिस वी. एस. कोगजे और दूसरा नाम जगन्नाथ शाही का लिया गया। नौबत वोटिंग तक पहुंच गई। तब तोगडिय़ा समर्थकों ने उनके पक्ष में आवाज बुलंद कर दी।
जब तोगडिय़ा का नाम लिया गया तो मीटिंग में मौजूद करीब 250 प्रतिनिधियों में से करीब 70-75 प्रतिनिधियों ने खड़े होकर ‘ओम’ कहा। संघ में सहमति के लिए ‘ओम’ कहा जाता है। मीटिंग में मौजूद प्रतिनिधि वीएचपी के अलग-अलग राज्यों के अध्यक्ष और दूसरे देशों के वीएचपी अध्यक्ष थे। जब ज्यादातर लोगों को तोगडिय़ा के पक्ष में ‘ओम’ कहते देखा गया तो फिर वोटिंग टाल दी गई, जिसके बाद फिर से तीन साल के लिए वीएचपी के अध्यक्ष राघव रेड्डी और कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा बन गये।
क्या है विश्व हिन्दू परिषद
विश्व हिंदू परिषद एक हिंदू संगठन है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक अनुषांगिक शाखा है। विहिप का चिन्ह बरगद का पेड़ है और इसका नारा है - धर्मो रक्षति रक्षित:।
विश्व हिंदू परिषद की स्थापना 29 अगस्त, 1964 में हुई। इसके संस्थापकों में स्वामी चिन्मयानंद, एसएस आप्टे, सतगुरु जगजीत सिंह, केशवराम काशीराम शास्त्री, मास्टर तारा हिंद थे।
कौन हैं तोगडिय़ा
जब देश में राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी, तो उस वक्त के सबसे बड़े नेताओं में प्रवीण तोगडिय़ा का नाम शुमार था। 1983 में 22 साल की उम्र में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े तोगडिय़ा पेशे से डॉक्टर हैं। राम मंदिर आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका देखते हुए पहले तो उन्हें विश्व हिंदू परिषद का महासचिव और फिर 2011 में अशोक ङ्क्षसहल की जगह पर उन्हें विश्व हिंदू परिषद का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। तोगडिय़ा गुजरात के सौराष्ट्र इलाके से
आते हैं।
अब तोगडिय़ा की नाराजगी
नरेंद्र मोदी पर सवाल तोगडिय़ा ने अपनी लिखी नई किताब सैफरान रिफ्लेक्शन : फेसेज ऐंड मास्क के जरिए उठाए हैं। तोगडिय़ा ने अपनी किताब में लिखा है-
‘राजनीति ने हिन्दुओं के सामने राम मंदिर को किसी गाजर की तरह ये कहकर हिलाया है कि आज बनेगा, कल बनेगा, राम मंदिर अवश्य बनेगा।’
तोगडिय़ा ने लिखा है-
राम मंदिर, धारा 370, कॉमन सिविल कोड, बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजना, गोवंश हत्या बंदी, विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं को फिर से बसाने के सवाल पर भी बीजेपी ने धोखा दिया है. जब चुनाव आए, इन मुद्दों को उठाकर हिन्दू यूफोरिया खड़ा किया गया और सत्ता मिलते ही यू टर्न ले लिया गया।
ऐसा पहली बार नहीं है, जब तोगडिय़ा इतने मुखर हैं। उन्होंने गुजरात चुनाव के वक्त भी किसानों की दिक्कतों और युवाओं की बेरोजगारी का सवाल उठाया था।