यूपी का फूलवाला :बचपन से था फूलों से लगाव, अब खुशबू फैल रही है देश विदेश
48 साल के मोईनुद्दीन ने सन 2001 में अपने माँ बाप के कहने पर लखनऊ विश्विद्यालय से एल एल बी की पढ़ाई पूरी की लेकिन वो कभी भी वकील नहीं बनना चाहते थे उन्हें बचपन से फूलों से लगाव था।
लखनऊ: 48 साल के मोईनुद्दीन ने सन 2001 में अपने माँ बाप के कहने पर लखनऊ विश्विद्यालय से एल एल बी की पढ़ाई पूरी की लेकिन वो कभी भी वकील नहीं बनना चाहते थे उन्हें बचपन से फूलों से लगाव था।
मोईनुद्दीन कहते हैं ,“हमलोग पुश्तैनी किसान हैं... मेरे घर में कभी कोई बहार नहीं निकला, पीढ़ी दर पीढ़ी हम खेती ही करते आए हैं। मुझे बचपन से फूलों से बड़ा लगाव था और मैं अपने घर के छोटे से बागीचे में किस्म – किस्म के फूल लगता रहता था। मेरे दादा, पापा और चाचा हमेशा से चाहते थे की मैं गाँव से बाहर निकलूं और पढ लिख के एक बड़ा वकील बनूँ। सबके कहने पर मैंने वकालत की पढाई की लेकिन अपने चाहत के चलते मैं वापस गाँव आ गया और कुछ ऐसा करने की सोची जिससे मेरे घर वालों को मुझपर नाज़ हो”, ।
मेरे घर वालों ने लाख कोशिश की मुझे वापस लखनऊ भेजने की पर मैंने उनसे ये कह कर थोडा समय ले लिया की अगर मैने 2 साल में कुछ नया नहीं किया जिससे उनको मेरे उपर गर्व हो, मै लखनऊ चला जाऊंगा और वकालत करने लगूंगा”, वो कहते हैं।
मोईनुद्दीन बाराबंकी के दफेदार पुरवा गाँव के रहने वाले हैं और काफी रिसर्च करने के बाद उन्होंने फूलों के खेती करने के ठानी।
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तीन एकड़ जमीन पर की ग्लेडीयोलस की खेती
शुरुआत में उन्होंने सन 2003 में तीन एकड़ जमीन पर ग्लेडीयोलस की खेती की और पहले साल उनका शुद्ध मुनाफा 1.5 लाख रहा। “इसके बाद मेरे घर वालों को लगा की मैं इस काम से अच्छा मुनाफा कमा सकता हूँ तो उन्होंने मुझे और जमीनों पर फूल उगने की इज़ाज़त दे दी। सन 2009 तक अपनी और अपने रिश्तेदारों की मिला कर मेरे पास 15 एकड़ ज़मीन थी और मैंने बड़े पैमाने पर फूलों की खेती शुरु कर दी।
उसी साल मैंने प्रदेश में पहली बार पाली हाउस तकनीक की शुरुआत की। ये इजराइल की तकनीक है और इसका पता मुझे इन्टरनेट पर सर्फिंग करते वक्त चला। मैंने इसपर गहन शोध किया और कुछ शुरुआती मुश्किलों के बाद मैंने इसको अपनाया।
इस तकनीक को अपनाने के बाद मैंने ग्लेडीयोलस के साथ ज़ुर्बरान जैसे विदेशी फूल और गेंदा, गुलाब जैसे स्वदेशी फूल उगने शुरु किये।
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शुरुआत में और गाँव वाले और किसान मेरा मजाक उड़ाते थे और कहते थे की तू फूल उगा और मजार पर दुकान लगा। लेकिन आज ये आलम है की मेरे और आस पास के लगभग 25 बड़े किसान और 1500 छोटे किसान मेरे साथ जुड़े हैं और फूलों की खेती कर रहे हैं। धीरे धीरे उनकी समझ में आया की फूलों की खेती में दूसरी परंपरागत फसलों से ज्यादा मुनाफा है और मेहनत भी कम है।
उदाहरण के तौर पर अगर आप 1 एकड़ में ग्लेडीयोलस और ज़ुर्बरान उगते हैं तो आपका शुद्ध मुनाफा 25 लाख हर साल होगा, वहीं दूसरी तरफ अगर आप इतनी ही ज़मीन में आलू या धान उगते हैं तो आपका मुनाफा केवल 75000 प्रति वर्ष होगा।
आज मैं अपनी 25 एकड़ ज़मीन पर फूलों की खेती करता हूँ और इसके अलावा लगभग 100 एकड़ में दूसरे किसान फूलों की खेती करते हैं।
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रेलवे का मिला साथ
शुरुआत में मुझे अपने फूलों को दुसरे शहरों और बाजारों में भेजने में दिककत आई। मैंने अपनी फसल ट्रक और ट्रांसपोर्टरों के द्वारा भेजना शुरू किया पर उसमें काफी दिककते आयी । फूल बड़ी मात्रा में ख़राब हो जाते थे, खेप के समय से डिलीवरी नहीं होती थी वगैरा – वगैरा। पर मैंने इसका भी समाधान निकला और रेलवेज के अधिकारियों से एक मीटिंग की। उनको मैंने एक प्रेजेंटेशन दिया और मेरे प्रयासों से खुश हो कर उन्होंने मेरे फार्म से करीब 9 किलोमीटर दूर फतेहपुर रेलवे स्टेशन पर कुछ ट्रेनों का स्थाई हाल्ट बना दिया। इससे मुझे ज्यादा फायदा हुआ और मेरे फूल बिना खराब हुए अपने गंतव्य पर समय से पहुँचने लगे।
पहले मैंने अपने फूल लखनऊ में बेचने शुरू किये और धीरे धीरे अब मेरे फूल दिल्ली, मुंबई, गुजरात, कोलकता और अन्य मेट्रो शहरों में जाते हैं। हाल में ही मैंने अपने फूल कुछ खाड़ी देशों में भेजना शुरू किया है और कुछ और देशों के व्यापारियों से भी बात चीत चल रही है।
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कार्यशाला और ट्रेनिंग प्रोग्राम का भी आयोजन करते हैं
कुछ धार्मिक शहर जैसे अयोध्या, देवा शरीफ, वाराणसी के थोक सप्लायर भी मेरे परमानेंट ग्राहक हैं और इनके लिए मै गुलाब, गेंदा और दू सरे देशी फूलों (जिनका पूजा पाठ और अन्य धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में होता है) की खेती अलग से करता हूँ।
फूलों की खेती के अलावा अब मोईनुद्दीन फूलों की खेती के तरीकों पर कार्यशाला और ट्रेनिंग प्रोग्राम का भी आयोजन करते हैं। “किसानों के अलावा फिछले साल 100फसरों के लिए भी एक कार्यशाला का आयोजन किया।अभी कुछ महीनों पहले, करीब 100 PCS और PPS अफसरों के एक बैच के लिए भी कार्यशाला का आयोजन किया गया था।
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मिला सर्वश्रेष्ठ किसान (floriculture) का पुरस्कार
मोईनुद्दीन आगे बताते है की उन्हें कई राजकीय और राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। “सन २०१३ में जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने मुझे सर्व्श्रेठ किसान (floriculture) का पुरस्कार दिया था। सन 2012 में अबुल कलाम जी (तत्कालीन राष्ट्रपति) मेरे फार्म पर आए थे और मुझे गुणवत्ता का सर्टिफिकेट दिया था। साथ ही उन्होंने मुझे राष्ट्रपति भवन भी बुलाया और वहाँ अपने बागीचे के स्टाफ के लिए एक कार्यशाला का आयोजन करवाया”।
छोटी सी प्रयोगशाला और डिस्प्ले सेंटर
धीरे धीरे अब फूलों की खेती का प्रचार प्रसार दुसरे राज्यों में भी हो रहा है और अब मैं लगभग हर महीने किसी न किसी राज्य के किसानों को प्रशिक्षण देने जाता रहता हूँ। अपने फार्म पर मैंने एक छोटी सी प्रयोगशाला और डिस्प्ले सेंटर भी बनाया हुआ है और लगभग हर 10-15 दिन पर किसी स्कूल या किसी विभाग की टीमें यहाँ प्रशिक्षण लेने आती रहती हैं। मेरे अलावा अब दूसरे किसान जो फूलों के खेती करते हैं, उन्होंने भी अब प्रसिक्षण देने की महारत हासिल कर ली है और अब वो भी इन कार्यशालाओं में मेरा हाथ बटाते हैं। मेरे गाँव के अलावा आस पास के लगभग 25 गाँव के किसान अब फूलों की खेती कर के अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और अपने साथी किसानों को भी फूलों की खेती करने के किये प्रेरित कर रहे हैं।